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व्यंग्य

कईसन कब झटका लग जही…..

काय करबो संगी जिनगी मा जीये बर हे ता खाये-पीये ला परही। करू-मीठ दूनों के सुवाद ला घलो ले बर परही। येदे जिनिस करू हरे नई खावन, येदे गिनहा हे नई खान केहे मा नी होवय। खाबे तभे होही ना, सुवाद ला लेबे तभे तो। अइसने जिनगी मा बने-गिनहा सबो जिनिस ला जाने-अनजाने मा करेच ला परथे तभे जिनगानी ला जीये के रद्दा हा बनत जथे। अईसने हमन सबो के जिनगानी मा कोनो न कोनो रूप मा झटका घलो लगत रिथे। इही झटका ले सीख घलो मिलथे। बिगर झटका खाय जिनगी चलय घलो निही।

पहिली लोगन मन तो ‘झटका’ अतकेच भर ला सुनतीन तीहि मा थर-थर कांपे, काबर येहर अईसने जीनिस आय। पहिली सबो झन ला एकेच झटका लगे ‘बत्ती के झटका’ येहर बने-बने ला थर खवा देथे। येकर कोनों माई-बाप होवय न संग- संगवारी। एक घाव कोनो येकर सपेड़ा मा आगे ता बिन झटका देके छोड़बे नई करय चाहे कोनो मरे या बाचे। लईका-सियान कोनो ला नई चिनहे- सपड़ भर मा आना चाही, तहाने अपन रूप अऊ कसर ला बताय मा कोनो कमी नी करे। इही झटका के नाव ले बड़े-बड़े मनखे मनके पोटा कांप जथे फेर काय करबे, बड़े-बड़े मन ये झटका ले बांचेके उदीम घलो खोज लेथें अऊ बांच घलो जथें। फेर छोटे मनखे मन अईसे झटका खाथें कि तीनों तिलिक घलो, देखे ला नई मिले।
मेंहा जेन झटका के गोठ ला करेंव तेन कोनो नवा गोठ नोहे। सबो मन जानत हो। ये झटका हा तो हमर जिनगी के पड़ाव के एक ठन अंग बरोबर हो गेहे। फेर आघू बर जेन झटका के गोठ ला मेंहा करत हों वोहा बिलकुल उलटा हावे। दूनो झटका मा इही खूबी हावे कि पहिली गोठ करेंव तेन झटका मा सुने भर मा तन के रोंवा-रोंवा कॉंप जथे।अऊ दूसरैय्या झटका हा आज के जुग बर लोगन के बड़े-बड़े सपना ला पूरा करेके अधार बन गेहे।
दिहात ला देखन ते सहर सब एक दूसरा ल झटका देके फेरा मा लगे रथे। चाहे गोठ-बात मा होय चाहे काम-धाम मा होवय। कईसे झटका दे जाय के चारों खाना चीत हो जाय। इही फेरा मा जिनगी के अपन अमोल बेरा ला गवात जथन। आघू डहार ले झटकारत नई बने ता पाछू डहार ले झटकार दे। ऊपर डहान ले बने नही ता तरी कोती ले झटकार दे। फेर झटका देबर नी छोड़ना हे।
बैसाखी मा चलैय्या सरकार ला अपन समरथन देवैय्या नेता मन , अपन चलत नी दिखे तहाने झटका के डर देखाथें, उहू मा बात नई बने तहाने, जब पाये तब झटका दे दे कोनो बेरा होय। इही ‘बिया’ हा आज अचछा तमासा बन गेहे। बड़े मन छोटे ला झटकार के आघू बढ़त हें। बेरा पाके बेटा हा बाप ल घलो अपन सुवारथ बर झटका देबर नई छोड़त हें। कोन हा कब कोन ला झटकार दिही येकर ठिकाना नई हे ददा। येकर चिन्हारी करेके कोनो उपाय घलो नई हे जेकर ले संभले जाय। जिंकर-जिंकर कर पईसा हे , वो मन सबला झटका देके सामरथ रखथें। इही ये जमाना के सार बन गेहे। आजकाल एक ठन अऊ फे सन बन गेहे, कते नौकरी-चाकरी मा कते काम – बूता मा जादा झटका हे। नौकरी-चाकरी वाला मन आजकाल अपन तनखा जे जादा झटका ल अधार मानथें। कहां ले कतका झटका मिलही , इही सनसो मा मनसे धुना खात मर जथे। फेर झटका खाके मरे बर नई डर्राय, इही बड़ सोंच के बिषय हरे। झटका देवैय्या अऊ झटका खवैय्या, दूनो के बीच सोजहा रद्दा मा चलके जीने वाला बर भारी बिपत समात जाथे। सबेके झटका खाय सही हालत ल देखके- झटका खाय सही अपने-अपन लागत रिथे। ये झटका ले बाचेके कोनो रसता कभू दिखही, येकरो असार दूरिहा-दूरिहा ले दिखत नई हे।
काय करबो बबा… जईसने सबो के होही वईसने हमरो होही। हमरो जिनगी हा कोनो ‘झटका’ मा लिखाय होही ता, तेकर ले येहू ला काय करबो. भगवान भरोसा छोड़ देथन….।

दीनदयाल साहू