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व्यंग्य

कुरसी नी पुरत हे

का जमाना आगे हे भगवान, तुही मन बताव काय करना चाही। जमाना कतका आघु बढ़त हे। तेनहा काकरो ले लुकाय नई हे। कुछु समझ नी आय काय करना चाही। आज के बेरा मा खुरसी के मरमे ला देखलव। पहिली जमाना मा सुघ्घर घर लीप के पहुना ला भुंईंया मा बईठारयं। घर के मनखे संग बईठके सुघ्घर गोटियावंय। पहिली के मन ला अईसने सगा माने मा बिक्कट मजा आय। बेरा के बदलाव संग धीर-धीर येहु मा बदलाव अईस।

सबो मा बदलाव आवत हे ता येहु मा बदलाव तो आनाच हे अउ येकर बाद सरकी मा बईठाय के बेरा अईस। सरकी ला जठाबे ता वोहा धरती ले थोरकिन उपर रिथे तेनला सबे जानत हन। तेकरे सेती मनखे के येमा बईठे ले मान थोरिक उचहा होय लगिस। इही बेरा ले मनखे ला अपन मान के सुरता अईस होही तईसे लागथे। फेर येमा थोरिक बदलाव अईस तहाने धीरलगहा सगा ला पीड़हा देके चालु होईस। येमा अउ लोगन के मान उचहा होय लगिस। अब पीड़हा घलो नंदागे। त येकर बदला खुरसी के जमाना आगे। खुरसी के महत्ता हा दिनोंदिन बाढ़त जात हावे। तेकरे सेती आनी-बानी के खुरसी देखे ला मिलथे। महत्ता बाढ़ना बने बात हावे फेर येकर ले मोर बिचार मा कुरसी अतका उचहा होथे कि वोमा बईठने वाला ला लोगन देख नी सहियारें। तेकरे सेती जेनहा एक घांव बईठ जथे तेहा पोटार के धर लेथे तहाने छोड़बे नी करे भई। सबला देखके महुं हा चार पांच ठन कुरसी बिसाके लायेंव। अउ जेन सगा आथे तेनला वोमा बईठारथों। मेंहा उंकर मान राखे बर भुंईंया मा बईठ जथों। सगा मनला देखथों ते मोरे घर मा मुही ला लाल आंखीं देखाथें। मेंहा सोच मा परगेंव उंकर संग कुरसी मा तीर मा बईठेंव त मोला बड़ मान-सनमान मिलिस। तब ले जान डरेंव-कतका बिचित हे कुरसी के मरम हा तेनला। तेकरे सेती लोगन ला कुरसी बड़ पियारा होथे।
आज जेती देखव वोती कुरसी बर मारामारी हावे। काबर कोनो ला बईठारना हे ता कुरसी च मा बईठारना हे। अउ कुरसी मा उचहा मनखे ला बईठारे जाथे। लोग-लईका मन तो बईठ नी सकय, कोनो बईठ घलो गे त वोकर देखने वाला रखवार चाही नीहिते दनाक ले गिर जही उहु जीव के काल हो जही। चार झन मनखे अउ एक ठन कुरसी लेना त अईसन मा काय कर डारबे। एक ठन में चार झन तो बईठ नी सकय। भुंईंया मा बईठना तो आज अपराध बरोबर हो गेहे।
घर भीतरी घलो घर के मनखे कुरसी मा बईठना चाहथें, लईका होय ते सियान। लईका हा आजकाल थोरिक सजोर काय हो जथे सियान के कुरसी ला नंगाके बईठे ला धर लेथें। ददा हा मोरेच लईका आय छोड़ बिया ला कहिके लईका ला कुरसी दे देथे। कभु कभु लईका सियान मा ठन्नस हो जथे, ददा कहिथे-मोर जियत ले मोर कुरसी मा बईठहु रे तुमन अपन पाहरो मा काहीं करो मोला काय करना हे, तहाने लईका घलो अरदली करथे नीहि गा अब हमला दे तोर खुरसी ला अतेक दिन ले बईठे त तो हमन कुछु नी केहेन। दुनो के घर के कुरसी के लड़ई हा पंचईत ले कछेरी अदालत मा चल देथे। घर मा ये हाल हे त बाहिर मा काय होही।
अईसने मोटर गाड़ी मा जेनहा आघु बईठ जथे तेनहा बाजु के सीट मा गमछा ला डारके जगा ला छेक लेथे। काबर छेके हस जी कहिके कहिदे भला तहाने देखले। कोनो मरे ते बाचे खड़े रथें तेमन टुहु देखत रिथें। अउ एकात ठन खुरसी खाली होईस ते कीरा बरोबर पचास मनखे झूम जथें।
एक घांव अईसने गाड़ी मा जावत रेहेंव त झगरा ल सुनके महुं तीर मा गेंव। देखथों ते एक झन मोटठा असन मनखे हा चार झन के पुरतन जघा ला घेर के बईठे रहाय। जनता मन वोला कुछु किहिन होही त उल्टा उही मन उपर चढ़ई करत रिहिस हे। जनता मन के डिमाग खराब होगे त वोमन भगाय के सोचिन। अतेक मोटठा रिहिस हे के चार झन ले वोहा टस ले मस नी होईस। वोला उठाय बर जतका मनखे रिहिन सबो लगगे। तभो कुछु फरक नी परिस। मोटठा मनखे घलो एक घाव उधेनिस ते जनता मन उलांन बांटी खागें। थर खागें त हतास होके अपन अपन ले तिरियागे।
अईसन कतको किससा रोज देखे ल मिलत रिथे येहा कोनो नवा गोठ नोहे। फेर सबले जादा कुरसी के परभाव हमर परजा तंतर मा होवत हे। येहा अईसन धुनी रमाने वाला हावे के एक घांव जेनहा येमा बईठ गे तेनहा टरे के नावे नी लेवय। ईही हा लोगन ला बड़ गुनई होवत हे। लोगन मा खुरसी मा बईठे बर अंदोलन, बोटिंग, हरताल, जुलुस, मीटिंग होवत हे तेनहा कल्लई होवत हे। हमर देस मा राज करने वाला नेता मन कुरसी मा बईठ के सबो जनता मन ला हलात रिथें। येहा खुरसी के परभाव रिथे। तेकरे सेती खुरसी ला हथियाय बर बारा उदीम करत रिथें। आज देस राज ला खुरसी मा बईठ के जेती मोड़हीं वोती मुड़ही। बेरा के देखत ये खुरसी के परभाव हा कभु नई बदलय तईसे लागत हे। येला बदले बर सब जनता मन ला आघु आय बर परही। काबर ईही खुरसी मा देस के भविस टिके हावय।

दीनदयाल साहू