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कहानी

मंगत रविन्‍द्र के कहिनी ‘दुनो फारी घुनहा’

।। जीवन के सफर में जरूरत होती है एक साथी की।।
।।जैसे जलने के लिये दीप को जरूरत होती है एक बाती की।।

भीख देवा ओ दाई मन…………। ओरख डारिस टेही ल सूरदास के…… जा बेटी एक मूठा चाउर दे दे, अंधवा-कनवा आय। महिना पुरे ए….. गांव म सूरदास, मांगे ल आथे। सियान ले नानकन लइका तलक सूरदास ल जानथे। अब्बड़ सीधवा ए… मन लागती तेकर इंहा मांग के खा लेय। मांगे म का के लाज? चोरी करे म डर हे…।

कभू-कभू तो मुंहटा म लाठी ल भूंइया म ठेंसत गीद घला गा देवै… अंधवा कनवा औं दाई मोला भीख देवा……। नौ बरिस ले जानथ हौं सूरदास ल, ए गली म आवत। रात होथे ता पंचइत भवन के एक तीर म सपट के सूत जाथे। जब पहिली-पहिली भीख मांगे आइस ता रोगहा कुकुर मन भूंकीन… अब को ओहू मन घेखरहा होगीन। कभू-कभू मांगे जांचे रोटी ल पंचइत भवन के एक कोन्टा म बइठ के टोर-टोर के खावत रथे ता लसर्रा कुकुर मन निचट पूंछी ल हलावत सूरदास के मूंह ल मुटुर-मुटुर निहारत रथें। कुकुर के निहारे ले का होही, खवईया देख ही त तो…नानमुन ल फेंकतीस…। उठे ल लाठी ता डर त अल्लरहा डर म ओती रेंग देय….।

गांव के सजन कोचिया के मुंह खजुवावत रथे। आ परै गोठियाए म हक-धक नइै रखै। चाहे ओहर अपन घर के राजा रहै। बड़े ल राम-राम अऊ छोटे ल चुम्मा लेबे करै। मन के साफ… आमा ल आमा अऊ अमली ल अमली कथे। सूरदास ल एक दिन कहिस:-कस रे सूरदास! कतेक ले ए गली ले ओ गली छूछवारत रथस। एक झन मुटियारी ल बना ले ना… सुन के सूरदास, भंगाला मुंह फार के हाँस डारिस….। काकर टूरी अकतीहा आये हे सजन के मोला लइका दिहीं…..। अधंवा-कनवा कभू सुखाये बम्बरी ठुड़गा म चमेली डारा ल चड़न देखे हस……? छी: ग! तोर आंखी ए हर तो मईहर हे बाकी सब तो तन तन हे कहत दुनों झन खल्लक पर जाथें। कह …ता हिले लगा देत हौं। का मसखरी कसथस दीदी….। अरे टूरा…. ओ छें पारा म न भनभनहा के छोकरी लुचकी हर ढमढम ले बाढ़े हे। सगा पहुंना आथे थेथी अऊ बुटिया…. हीन के चल देथें। का थोरथार चरके भांटा ल नई खायें का? नोनी तो थोरिच्च कन थेथी अऊ चनबुटिया हे। कपड़ा लत्ता ल लहर बटोर पहिरथे। बिहाव करबे ता घर ल सम्भार दिही।

पैसा ल जम्मो अइंट- अइंट के धरे हस। घून खवाबे का ? ले जा ना टूरी ल बिहाव करके। जा एको दिन भनभनहा के घर… ओकर सुवारी के चलथे, उही ल कबे…। सूपत हर तोर गोठ ल नई काटय…।

कतेक ल कहबो, लुचकी अऊ सूरदास के बिहाव माढ़गे। लुचकी के रोंट-रोंट, भाई-भउजाईन मन थेाकिन कनुवाईन। भरे सभा म कइसे अंधवा ल समरा के मंउर ल सउंपबो। कइसे कहीं…हमन ल गांव वाला मन के , एमन ल संसार म टूरा नई मिलीस? तेकर ले बेटी ल नदिया म ढकेल देहे रतेन………।

लुचकी ल पूंछिन- कस बेटी ! तोर का मन हे ? अभी ले बने हे पाछु दोष झन देबे। गोड़ हाथ बने हे टूरा के… अइंठ-अंइंठ के जम्मो पैसा ल धरे हे, मांग-मांग के पोस डारही तोला ओकर आंखीच्च हर थोकिन मइहन हे बस….। लुचकी के मन, थोकिन कनुवाइस फेर मन ल समोखे ल परिस। ओकरे संग जिंदगी पहाये ल लिखे होही ता कोन….टारही।

।। जो विधि ने लिख दिया छठी रात के अंक।।
।। राई घटे न तिल बढ़े, रहहु जीव निशंक।।

चार झन के कहना ल माने के ए…. बइहा भूतहा संग तो पारबती हर गनेस जइसे बेटा ल अवतारिस………..।
चइत के नम्मी बर लुचकी अऊ सूरदास के भांवर गिंजरिस। बिगड़े टेक्टर ल नवा गाड़ी संग टोचन फंसाके तीरथें तइसन गठजोरन म लुचकी हर सूरदास ल किंदारिस। बढ़िया मजा ले बर बिहाव होइस। बेरा पहावत हे……….। लुचकी ल फिरो के लाने हें। सखी सजन मन दु:ख, सुख के गोठ पूंछीन। रतिया दाई के कोरा म मूड़ ल मढ़ाके लुचकी हर सुसक-सुसक के रोवत कथे:-डई नई डाँव, बोकड़ बांठी नई डिठै, टमड़ठे अऊ डुठा ल ठवाठे। डोड़ हाँठ ल टमड़ठे, गुडगुडाठे, ठी……..( दाई नई जाँव, ओकर आंखी नई दिखै, टमरथे अऊ जूठा ल खवाथे, गोड़ हाथ ल टमरथे, गुदगुदाथे छी: ……) दाई सुमत, बेटी के लेड़ीपन ल सुन के माथ ल धर लीस….। दुनियां के रीत बर बिहाव करेओं ए तो जेठौनी तिहार के भात खवाये गरूवा कस होगे…. छिदिस-बिदिस… का करतीस, सभा पंचइत के गोठ रहतीस ता चार झन म ढिलतीस। दूसरावन दिन सूपत हर अपन धनी लंग ए गोठ ल सुनाईस। ओहू बेचारा का करतीस। लाजे के कामे तो आय। पिछोत म टारे जून्ना गोलर कस सुन के कठुवा दिस।
दाई ल बेटी के संसो रथे। अइसनहे करथें बेटी….। पहिली महूँ गंवन पाये तो तोरो ददा हर अइसनहे करिस अब नई करै कहत समझाईस। पन्द्राही म सूरदास दमाद, लेहे ल आ-गे। एदे सुघर मजा ले रोठी पीठा बनाके, बेटी दमाद ल धर्रा बंधाये गाड़ा कस भेज दिन…। महिना चारिक कटिस फेर नोनी हर बस के टिकट कटाके उतरे ढुलबेंदरा कस मइके म आ-गे। दाई-ददा ल कहिस अब जाबेच्च नई करौं। फेर अऊ का टेक दिस….. कतको समझाइस तभो ले टूरी जरे भूंजाये के गोठ कहै… एती सूरदास घेरी-बेरी दउडैं। कई पइंत सभा पंचईत होइस आखिर म टूटिक टूटा के लिखापढ़ी होगे…….।

बेरा पहावत हे। लुचकी करोनी खाये कस लोरस म छटपटावत हे ओती सूरदास भूतपूर्व सरपंच कस गांव म लठर-लइया करत हे। रमपुरा गांव… पचपन-साठ के बुढ़वा… निरबंसी……. डोकरी ल सरग बास होये बछर तीनिक हाये हे। ओकर जी हर सुवारी अऊ लइका बर चटपटावत हे। गुनै… कतको जून्ना बोरिेग रही तभो ले टेड़ें ले हउंला भर पानी देथे। कहुँ कती ले बना लेतेओं ता कुल म दीया बर जातीस उज्जर-उज्जर धोती पहिर पंचकोसा म लइका दहावै। सुनीस के भनभनहा के नोनी हर दुच्छा बइठे हे । अंधवा- कनवा बर गये रहिस। अपन भतीजा टेटकू ल धरके भनभनहा घर सगा उतरिस। अंतस के गोठ ल उगलिस। जून्ना खाथों, कोला म कुंआ हे। गरोसा म खेत….तीन खोली के पखरा के घर…दीया बिना अंधियार हे। मन आतीस ता….जीयत नई निकलै, मरे म निकलही। ओकरे हाथ मूठ रही… मोर का बुढ़वा तो आंव-खा के एक कोन्टा म परे रहुँ। घर म दीया बर जातीस… एकरे सेतीर ए उजोग ल करत हौं….।

लुचकी के तपस्या अऊ बुढ़वा के तेल चिकनाही म तियार होगीन चल अंधवा- कनवा ले तो बने हे। आंखी दिखे न कान बिन-बिन खावै आन…। मंगल के दिन संझा चूरी चाखी लान के नवा जोड़ी संग नोनी ल संउ्रप दिन। जून्ना भिथी म फेर देवारी कस चूना लिपागे। बढ़िया मजा ले दार-बरा करिन अऊ बेटी लुचकी ल भेज दिन……।
रमपुरा गांव के मेल्ला गली, पिटाये पचरी घठोन्धा म लुचकी बने रगड़-रगड़ के नहावै। कुंदरू के चानी, पपीता के फोरी रोज-रोज, रकम-रकम के तरकारी म लुचकी के गाल ललियाये लगीस:-

धान मकोईया के भानस, हरि मूंगन के दार,
लाल चचेड़ा बैंगन भांटा उटकर डेना,
कटहर केरा, अधोरी के बरी, चनौरी बरी, छोटे बरी, छोट बरी, ननकी बरी,
ओहू ल घी म तरी, डूवा नाचे घेरी बेरी, उदक के मुंह म परी, लइका रोवै घनौची तरी।
संझा बर झुनगा ए। मझनिया बर मुनगा ए।।
रांधे हे चुट्ट ले, नई पतियास ता खवईया ल पूछ ले….।

महिना दिन के गये ले बुढ़वा हर अपन लुचकी बर गांव के बाजार पसरा म गला के हार बिसा दिस। दांत बत्तीसो नयन कजरा-खुलीस हे नोनी के गजरा…..। चार दिन बने चटक चंदैनी रहिस। बुढ़वा तो आय-जून्ना ओरा कस भिथी म ओधाये परे रहै। हांसे त बहरा के फुटे मुंही कस लागै। टोंड़का बाल्टी म कतको लेपन लगा झेंझरहा होई जाथे। चार दिन तो बने ओंगे गाड़ा कस ढुलीस तहाँ फेर सुखाये नरवा कस डोकरा के पझरा सिरागे। गड़वाही बइला ल कतको हरियर चारा डार-सींग नई मारै…. गोठ न बात, पहागे सारी रात….। लुचकी ल संवार के रेंगइया बियारा के जून्ना खोभा होगे। थूहा के बारी म मया के बइला कइसे पेलही। बने सुख करिहौं कहिके तो बेचारी लुचकी हर जून्ना मुड़ ल धरे रहिस। बिना आंखी कान ले तो बढ़िया हे। चारे दिन तो संगी जउरिहा मन हांसही। अतका ल सहि लिहौं ता आन के तान होगे अब तो जी के हलकान होगे….। बेचारी बर दुनों फारी घुनहा ए….बरिस पांचक के गये ले डोकरा अउंसे तुमा कस सुखाते जावत हे। कतको खवाथे- पियाथे तभो ले अंग म नई लगत ए। बईद गुनिया कराईस रकम-रकम के ओखद मांदी, डब्बा-डब्बा परे हे । एको ठन हर तो काट करतीस। बिरस्पत के बिहना लुचकी के संग छोड़ दिस। पेट म आठ महिना के धरोहल छोड़ के गये हे। लगाये थरहा म पानी सींचे नई पाईस। लुचकी मुड़ ल पटक-पटक के रोवै। जिंदगी अब तो पहार होगे। दु:ख के समुन्दर ले पार नकईया डोंगहा…. सब दिन बर डुब गे…..। अब तो आंखी के आंसू के भवना म सुक्खा पान कस भंवनाए ल परही। सूरूज के बुड़े ले फेर बिहना आ जाथे। बाज के झपटे सुख के चिरइया फेर थांही म नई फुदकै। अभागीन लुचकी के जीवन तरिया म पीरा के गंगई उबक गे… आगू का होही…भगवाने जानही….। जइसे ओकर मरजी….।

कथरी ल सियत रह…
बिड़ी ल पियत रह…
नोनी के दु:ख ल गुनत रह………।
मंगत रविन्‍द्र