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व्यंग्य

मोर लीलावती के लीला

कहां बोचक के जाबे तें। डोंगरी-पहाड़, अलीन-गलीन, जिहां हाबे, तिहां ले खोज के निकालिहौं। सात तरिया में बांस डारूंगा। केकंरा और मुसुवा के बिला मं हाथ डारहूं। अइसे काहत बइहाय गदहा कस किंजरे लगेंव। हुरहा पोस्टमेन हर, भकाड़ूराम चऊंक मा, अभरा तो गे। मैं आंखी छटकावत बिजली कस लउकेंव- ‘कस रे बईमान। तोर माथा मा फोरा परय। ते मनीआर्डर के पइसा ला कहां करथस, सच-सच बता।’
ओ दिन मोर संगवारी संजीव तिवारी संग भेंट होगे। देख के मैं अचरित रहिगेंव। मे केहेंव- ‘कइसे तिवारी जी! आजकल कइसे फुन्नाय-फुन्नाय, हरियर-हरियर दिखत हौ जी? मार दोम-दोम ले भलुआ कस मोटाय हौ।’
ओ कथे- ‘कइसे नई मोटाबो महाराज! जब ले ‘देशबन्धु’ हर ‘मड़ई’ मा छपे रचना के मेहनताना देवत हे, तब ले जम्मो रचनाकार मन गोल्लर कस बदबदाय हें। ‘मडई मा जब-जब हमर रचना छपथे तब-तब हमर दिन हर ‘मेला-मड़ई’ कस हो जाथे। फेर आप मन कइसे हड़हा आमा कस अऊंसाय हौ? आपो के रचना तो मड़ई मा छपथे। तुहूं ला ‘पगार’ तो मिलतेच होही। तुमन बड़ ललचहा आव, तइसे लागथे जी। थोर थार मा तुंहर भोभस हर नई भराय। घातेच सोंसहा आव तुमन।’
सुन के मैं फक्क ले रहि गेंव। केहेंव- ‘कइसे गोठियाथो संजू? मैं तो पहिली घांव तुंहरे मुंहु ले सुनत हावौं के ‘मड़ई’ हर लेखक मन ला रचना के पइसा घलो देथे कहिके। मोला तो आज तक एक ठन छदाम हर नई मिले हे।’
वो कथे- ‘लेवव, देख लव। सम्पादक के दुआभेदी करई ला। कोन जनी तुंहला काबर मिहनताना नई देवत होही त? तुमन थोरिक पूछव तो ओला।’
मोर देंह मा भुर्री तो बरगे। सम्पादक के अनियांव ला देख के मोर बरम हर करला गे। में सनफन-सनफन करत तुरते ‘मुंहबाईल’ ला खीसा ले निकालेंव अऊ घुस्से-घुस्सा में ‘मुंहबाईल’ के दांत (बटन) मन मा अंगरी ला हुरेसे लागेंव। ओ डहर ले गाना बाजे लगीस- ‘दिल जलता है तो जलने दे, आंसू न बहा फरियाद न कर…’ जरे मा नून तो घोंसा गे। मोर एड़ी के रिस हर तरूआ मा चढ़गे। ओ मूड़ा ले आवाज अईस ‘हलोऽऽऽ।’ में भन्ना के केहेंव- ‘हालतेच हन मेडम, हालतेच हन। जतके हलाहू ततके हालबो, अऊ जइसे नचाहू तइसे नाचबो। हमला रचना छपवाय बर हे न। फेर अतका ला तो बता दौ देबी-दई, के मोर संग तुमन अतेक अनीत काबर करत हौं? आने लेखक मन ला तो पैसा देथव अऊ मोला छिंचार तक नई आवन दौ। अतेक बड़ सोसन? मैंने क्या कसूर किया हूं मैडम?’
मेडम अकचका के कथे- ‘ये क्या अलकरहा गोठियाते हो भैया साहब? हमारा हिरदे उपर, फरियर पानी बरोबर फटिंग है। मैं सऊंहत आपके लिए मनीआर्डर भेजवाती हूं। थोरिक आप पोस्टमेन को सोरियाव भई।’ ‘सोंहारी मैडम, आई एम भेरी सोंहारी। अब मेरे को माजरा समझ में आ गया है। समझ में आ गया है। समझ लो पोस्टमेन का पूर गया है। मैं आ रहा हूं पोस्टमेन! अपने बबा-ददा को सुमर ले दोगला।’ अइसे कहिके ‘मुंहबाईल’ के मुहुं ला चपकेंव। मोर देंह मा एक हजार नट-बोल्ट के बिजली दऊंडे लागीस। सरी दुनिया को झंवा के राख कर दूंगा। अइसे केहेंव अउ दांत किटकिटावत दऊंड़ेंव पोस्ट आफिस कोती।
पता चलीस, वो हर चिट्ठी बांटे बर गए हे। मैं बड़बड़ायेंव- ‘कहां बोचक के जाबे ते। डोंगरी-पहाड़, अलीन-गलीन, जिहां जाबे, तिहां ले खोज के निकालिहौं। सात तरिया में बांस डारूंगा। केकंरा और मुसुवा के बिला मं हाथ डारूंगा। अइसे काहत बइहाय गदहा कस किंजरे लगेंव। हुरहा पोस्टमेन हर, भकाड़ूराम चऊंक मा, अभरा तो गे। में आंखी छटकावत बिजली कस लउकेंव- ‘कस रे बईमान। तोर माथा मा फोरा परय। ते मनीआडर के पइसा ला कहां करथस, सच-सच बता। चोरहा बरन के।’
घिघियाके वो कथे- ‘ये काय कहिथो ददा? अतेक जुलूम झन करो भई। मोला अइसन झन सरापो महराज। जब-जब तुंहर मनीआर्डर आथे, में तुरते तुंहर घर अमराथों भई।’
‘लबारी झन मार’ में केहेंव- ‘ते मोला कब, कोन जघा पइसा दे हस बता परलोखिया।’
वो कल्हर के कथे- ‘ये ददा! किसिम, किसिम के गारी काबर देते हो सरकार! न मैं बईमान औं, न लबरा, न परलोखिया। जब मे हा पैसा देहे बर जाथौं तब तुमन डिउटी चल देहे रहिथो। तब मैं हर तुंहर महराजिन ला पइसा ला दे देथौं।’
मोला काटव त लहू नहीं। सुक्खा पर गेंव मैं हर। नठाय चिमनी कस भक्क ले बुझा गेंव। असली मांजरा अब समझ में अईस। में समझ गेंव के काबर ओहा दिनोंदिन उन्ना के दुन्ना ढोलकी बनत हावय।
मोर पत्नी, लीलावती के लीला अपरम्पार हे संगी हो! ओकर लीला के आगू मा बड़े-बड़े मन के लीला बासी मांगथे। तिही पाय के मैं हर ओकर नाम धरे हंव ‘रानी लीलावती’। आजकल राजपाठ के जमाना तो नई हे तेकर सेती के महारानी बने के सेथी ‘लीलावती महारानी’ के पदवी पाय के ओ हर पक्का हकदार हे।
मोर रानी के लीला ला कहूं एकता कपूर हर सुन डारही त पगला जाही। ओ हा, लीला ऊपर जीयत भर सीरियल बनाही, तभो नई सिराय ओकर किस्सा हर। कतका बखान करंव संगी हो, मोर लीलावती के लीला के परताप के।
आजकाल टीवी मा ‘झांसी के रानी’ सीरियल चलत हे। ओला देख-देख के लीलावती के मन मा निचट मलाल होथे के ओहर 1857 के जमाना मा काबर नई होईस? ओहा कछूं ओ बखत अंवतार लेहे रहितीस त अंगरेज मन के का मजाल के ओ मन ये देस मा टिक पातीस। जब करिया घोड़ा मा बईठ के ओ हर तलवार ला उत्ता-धुर्रा भांजतीस त ओ बेर्रा अंगरेज मन भागे के रद्दा नई पातीन।
मोर लीला हर भले सन् 1857 मा नई हो पईस, फेर ओकर बीरांगना-पना हर कहां जाही। जब-जब ओहा झांसी के रानी सीरियल देखथे, ओकर बटलोही कस भुजा हर फर-फर फरके लागथे। अउ ओकर लहू हर कहूं जादा खलभलाय लगथे, त ओ हा थोरिक देर बर, ओ बखत, मोही ला अंगरेज समझ लेथे। तहां एक ठिक चाकर छेना ला मोला धरा के कथे- ‘ले अपना ढाल, और महारानी लीलावती का वार सम्हाल’। अइसे मंजा के डैलाग मार के ओ हा अमली के गोजा ला सटाक ले फटकारथे, अउ तहां ओला तलवार बरोबर हुरहा-धुरहा भांजे लागथे। थोरिक देर मा मोर ढाल हर चूराचूर होके जुध्दभूमि मा बगरे रहिथे। अउ मोर देह मा अतेक जघा लोर उबके रहिथे के गनई-गनई मा आधा घंटा हर निकल जाथे। अतका तो राणा सांगा के देह म घलो घाव नई रहीस होही संगी हो।
मैं हा घायल होके जब ओकर देस (घर) ला छोड़ के पल्ला तान भागथों त मोर महारानी के मस्तक हर अइसे ऊंच हो जाथे जानो-मानो देस हर ओकरे बल मा अभी-अभी आजाद होईस हे। अब मैं हा जात हौं अपन देंह ला सेंधहूं संगवारी हो। अऊ अपन रानी के बीरता के किस्सा ला पाछू सुनाहूं। देंह हर गजब पीरात हे।
के.के. चौबे

बियंगकार परिचय

नाम – कृष्‍ण कुमार चौबे
पिता – स्‍व. शिव कुमार चौबे
पढई लिखई – एम.ए.(इतिहास), बी.एड., संस्‍कृत कोविद
प्रमुख अभिनीत हिन्‍दी नाटक – भूख के सौदागर, घर कहां है, विरोध, हम क्‍यों नहीं गाते, अरण्‍य गाथा, मुर्गीवाला, ईश्‍वर भक्ति, आवरण हटावो
छत्‍तीसगढी लोकमंच – प्रसिद्ध भव्‍य मंचीय प्रस्‍तुति कारी में नायक (बिसेसर) एवं सह निर्देशक, सोनहा बिहान में खलनायक (मालिक राम), हरेली में दोहरी चरित्र भूमिका, लोरिक चंदा म दोहरी चरित्र भूमिका अउ दूसर संसकरन म निर्देशन, अनुराग धारा में अभिनय, नृत्‍य अउ उदघोसना
फिल्‍म – हरेली, लोरिक चंदा, सुबह का स्‍वागत, मैना, संधि बेला, विकल्‍प, जेठू पुनिया
प्रकासन – नाटक, कहानी, लेख, कबिता, गीत, बियंग सुमन सौरभ, चंपक, बालक, हंसती दुनिया, लोट पोट, बालहंस, हरिभूमि, नव भारत, देशबंधु, अमृत संदेश, करार, जुगुर जागर, झांपी आदि म
पुरस्‍कार अउ सम्‍मान – अनेकों पुरस्‍कार अउ सम्‍मान
काम धंधा – उच्‍च श्रेणी शिक्षक
पता – गया बाई, स्‍कूल के बाजू वाली गली, गया नगर, दुर्ग फोन – 0788 2321192