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कहानी

सीला बरहिन नान्हें कहिनी – सत्यभामा आड़िल

सीला गांव ले आय रिहिस, त सब ओला सीला बरहिन कहांय। अपन बूढ़त काल के एक बेटा ल घी-गुड़ खवावय, त देवर बेटा मन ल, चाऊर पिसान ल सक्कर म ए कहिके पानी मं घोर देवंय। देवरानी जल्दी खतम होगे देवर तो पहिलिच खतम होगे रिहिस। नान-नान लईका देवर के फेर सीला बरहिन के बेटा ह सबले छोटे रिहिस।

देवर के बड़े दूनों बेटा मास्टर होगें मेट्रिक पढ़े के बाद। सीला बरिहन अपन बेटा ल देवर बेटा घर पहुंचईस पढ़े बर। हर आठ दिन मं घी, चाऊंर ले के आवय। सांझ होवत चल दंय। रंग-रंग के खाय-पिए के कलेवा बना के लानय। अपने बेटा ल बईठार के खवावय-पिलावय अऊ चल दय। दू झन देवर बेटा मन छोट  रहिन-फेर ओ मन ल तीर मं नई ओधन दय। घर के सियान ए, बड़े दाई के हुकुम चलय दूनों बड़े देवर बेटा के बिहाव करिस त बहूमन के दाईज-डोर के गाहना-गुरिया ल तिजोरी मं भर के राखे रहाय। देवर बेटा मन नई बोले संकय, न पूछे सकंय, बहू मन के बोले तो बातेच दूरिहा हे।

दिन बीतस गिस। दूनों छोटे देवर बेटा मन, अऊ सीला बरहिन के बेटा ह मेट्रिक पढ़ के निकलिस तहां ले खेती के काम देखे लगिस। बड़े देवर बेटा कोसिस करके सीला बरहिन के बेटा ल घलो मास्टरी मं लगा दिस।
बिहाव होईस तीनों झन के। तहां ले सीला बरहिन बंटवारा कराय बर पंचमन के बईठक बलईस। ओखर बहू के गहना-गुरिया जादा नई आय रहिस। देवर बेटा मन के बिहाव म चारों बहू के गाहना-गुरिया मं तिजोरी भर गे। सीला बहरिन के खोट नियत मं सबो गाहना दू भाग मं बांटिस। पंचमन करा सबो जायदाद अउ गाहना बरतन ल दू भाग मं बंटवईस। एक बांटा में चार देवर बेटा, दूसर बांटा मं ओखर एक बेटा। चारों देवर-बेटा बहू मन के गाहना-गुरिया बंटागे। धार-मार के रोईन बहू मन। बड़े-बड़े घर के बेटी दू-दू, तीन-तीन परत के गाहना, गुरिया आय रहिस कदराही झुमका, चारों झन के। सीला बरहिन अपन डाहर ले लिस। काहीं नई बोलिन देवर बेटा मन। अपन-अपन घरवाली के मुंह बंद करके राखिन ओमन। होगे बंटवारा। खंड़गे अंगना। ए पार चार भाई, ओ पार एक भाई।
चार भाई के बेटा-बेटी होईन। पढ़-लिख के कालेज पहुंचिन। चारों के चार बेटा इंजीनियर बनगे। बेटी मन घलो कॉलेज पढ़के, घर बसईन। पढ़े-लिखे नौकरिहा दमांद मिलिस। सबो झन खुसी-खुसी अपन दिन बितईन- सहर मं रिहिन। गांव मं तीसरा नंबर के बेटा भर रिहिस।
सीला बरहिन के बेटा गांव के इस्कुल मं मास्टर रहिस। एक झन के छह बेटी-बेटा होगे। पालत-पोसत, पढ़ावत-लिखावत थकगे सीला बरहिन के बेटा ह। चार बेटा मन ले दे के मेट्रिक पास होईन। बेटी मन के घलो तीर-तखार के गांव मं बिहाव होईस। सीला बरहिन छहों नाती-पोता देख के मरिस। ओखर बांटा मं मिले सबो जेवरात-गाहना गुरिया सीरागे, खेती कमतियागे, आधा खेत मन बेचागे।
दू झन बेटा बिमरिहा होगे। तीसर बेटा खटिया धर लिस। एक झन बेटी खाली हांथ होगे। दूसरे बेटी निरबंसी होगे। गांव वाले मन देखयं अउ लीला चौरा मं बईठके बतियावंय-”देखव, का होथे दुनिया मं। ऊपर वाला ह नियाव करथे। सीला बरहिन अब्बड़ तपिस अपन देवर बेटा मन बर। ओखर देवर बेटा मन, गरीब-गुजारा खा-पी के, सादा-सरबदा रहिके पढ़-लिख लीन। अऊ सीला बरहिन के बेटा ह बने खात-पियत घलो बिमरहा होगे। नाती-पोता मन तो अउ गंय। मनखे के करम के सजा भगवान ह लईका मन ल देथे। दुनिया में इही देखथन। करम-करय कोनो, अउ सजा भुगतय बंस मन। वाह! भगवान! कईसन नियाव करथस। मनखे मन ए सब देखके घलो नई सीखंय। बने करम के बने फल मिलथे।”

-सत्यभामा आड़िल
शंकरनगर, रायपुर (छ.ग.)