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कहानी

सुक्खा तरिया म पानी

गांव म पहली पानी बिना अकाल परय। जेमा आदमी मन भूख के मारे मरयं। बिना भात-बासी के शरीर एकदम कमजोर हो जाय, जेकर ले आदमी तड़प-तड़प के मर जाय।
दुकलहा समय के एक झन सीताराम नाव के डोकरा रहय थोरकिन पढ़े-लिखे रहिसे। सब अपन हालत ल जानत रहिसे दुकाल के दीन ल। एक दिन ये बबा हर बइठक जुरे रहै ते मेरा जाके कइथे-थोरकिन मोरो गोठ ल सुन लेतव जी। महाबीर नाव के एक झन कड़कनहा आदमी हर कइथे- का हो ही बबा! काय गोठे तेन ल बता। बबा सीताराम कइथे- पिकरी, डुमर खा-खा के दिन ल पउहाथे ऐकरे सेती ककरो पेट पीरा, कोनो ल उल्टी-दस्त होवथे। हमर लोग-लइका, भाई-बहिनी मन एकदम बीमार पड़ जाथें। कोनो बेरा समय अइसे आथे जेमा आदमी मर तको जाथे। त मैं कहत हाववं गांव तीर के सुक्खा परे हे ते तरिया ल थोरकिन गङ्ढा कोड़ देतेन अऊ बाहर ले पानी आय के रद्दा बना देतेन। जेकर ले पानी तरिया म रूक जाए। बबा के ये गोठ ल सुन के मोहन नाम के आदमी हर कइथे कस बबा ये सब कहत हावस तेकर रोजी-रोटी कोन दिही। बबा सीताराम कइथे- देखव जी, ओ तरिया हमर, ये गांव हमर बन जाही त कम से कम हमर अवइया मन येमा निस्तारी ल करहिं। नहाहिं, धोहीं गाय-गरवा, बइला, भइसा, छेरी, पठरू सब पानी पिहिं अऊ हमर खेती-किसानी के काम ये तरिया के पानी म बढ़िया चलही। बबा के गोठ ल सुनके मोहन हर कहे बर धरलिस तैं सही कहे बबा। येमा हमर सब काम चलही मैं अभी कोतवाल करा जावथंव अऊ हांका पारवाथव। सब घर के एकक-एकक झन मनखे काल सुख्खा तरिया म काम करे बर जाहीं। दुसरइया दिन ले तरिया म काम शुरु होगे। सब मिलजुल के काम करे लागिस। काम चलत-चलत आठ दिन होगे। अबक-तबक पानी गिरैया रहय। काबर चार, आठ दिन बरसात हर बाचे रहै। मानसून हवा गांव म आय ल धरलिस। गांव के सब किसान खुश होय बर धर लीन। ये साल हमर खेती-किसानी बढ़िया होही कहिके। अऊ दू, चार दिन के बाद जोर से पानी गिरीस। किसान मनके आंखी ले खुशी के आंसू गिरे बर लगिस। दुसरइया दिन ले बाऊत करे बर धर लिस। गांव वाला मन अपन मेहनत जांगर म बनाय रहिस हे तरिया, तेन ह पूरा भरगे अऊ छलके बर धर लिस। बाऊंत ल सब किसान मन हली-भली करिस। फेर बियासी म पानी हर भठोदीस। किसान मन धान के फसल ल देखके रोय बर धर लिस। फेर बबा सीताराम मेर जाथे अऊ कइथे बबा सीताराम अब का करिन। हमर सब फसल हर मरत हावय। बबा हर कइथे तुमन काबर रोवत हावव ओ तरिया ल काबर गङ्ढा खने हावव। ये दे अब तुंहर काम आगे न। जावा खेत अऊ अपन-अपन खेत म छापा छीच के पानी पलो लेवव। सब झन अपन-अपन खेत म पानी पलोइन। खेत के धान मरे के पहिली बांचगे अऊ एक महिना के बाद धान पाकगे। बबा सीताराम हर एक दिन फेर कइथे- कस बाबू हो अब जानेव सुख्खा तरिया म पानी कइसे आथे। बिना मिलजुल के काम करे बिना कुछु नई होवय। पानी के पानी बांचगे अऊ हमर तरिया के तरिया भरगे।

श्यामू विश्वकर्मा,
नयापारा डमरू
बलौदाबाजार
जिला-रायपुर