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व्यंग्य

हमर छत्तीसगढ के होगे बिकास … ??

हमर भारत देस के अडबड बिकास होवत हे, संगें-संग हमर छत्तीसगढ राज बने ले ओखरो अडबड बिकास होवत हावय। कई पहरो ले हमर छत्तीससगढ ला गवांर, अनपढ अउ ना जाने का का कहि के हीने जात रहे हे। अगरेज मन के भागे के पाछू घलोक अडबड माय-मौसी के दुख सहे हे फेर अब दिन बहुर गे हे, सियान मन कहंय ‘बाबू घुरवा के दिन बहुरथे रे, एक दिन हमरो दिन बहुरही’। अब वो दिन आ गे हे, हमर छत्तीसगढ के दिन अब बहुरत हे । गांव म ये ‘बिकास’ ला टमडे बर मैं अपन गांव गयेंव त मोला जउन बिकास दिखिस तउन ला आपो देखव।
तइहा गांव जाये बर सडक ले करवाही गडत एकपंइया रद्दा, गाडा रावन ले होदहोद-होदहोत करत जाए ल परय। अब गांव-गांव म डामर चुपरे खउरा उकले परधान मनतरी सडक बन गे, बने फुर्र ले फटफटी म गांव तुरते अमर जाबे। तइहा ओदरत स्कूरल मदरसा म चूहत छांधी के तरी चिरहा टाटपट्टी म बईठ के बाराखडी रटत रहन अउ दोहरे गुरूजी हा बेसरम के सोंटी म सोंट-सोंट के अध्धी-सवइया याद करवाय। अब तो नंवा-नंवा इसकूल के कुरिया बन गे, मोटियारी टूरी अउ टूरा मन गुरूजी बन गे। मदध्यान भोजन करके आराम करे बर अंधियारी कुरिया मन म खटिया बरोबर लग्भा-लग्भा टेबिल बिछ गे। लइका मन नाच-गाना संग अंगरेजी पढे लागिन अउ करमी मन अपन करम के वाजिब पइसा पाये बर हरताल करे लागिन। लइका मन के छुट्टीच-छुट्टी, पढइया मन संग पढवइया मन के घलो मजा – होगे बिकास
पंच-सरपंच अउ सचिव के जनता के पईसा म खुडुआ खेले बर पंचइत भवन बन गे, ओमा रतिहा कन दारू, कोचिया मेर ले वसूली के अध्धी – पउवा चढा के सीडी-बिडिओ म बकनी फिलिम देखे बर टीभी, अउ कम्पोटर सरकार लगा दिस। चिरहा पाल-परदा ला तुनत-तुनत, मंगनी के बाजवट-बांस मांग-मांग के लीला-गम्मत करत हमर दिन बीतिस अब पक्की लीला मंडप बन गे तेमा हमर सुआ-ददरिया-करमा के जघा फिलमी गाना म भडुआ टूरा मन मटके लागिन – होगे बिकास
गांव म गली-खोर म पानी के दिन म माडी भर चिखला अउ घाम के दिन मा गोडी भर धुर्रा उडय तउन हा पक्की- होगे। किच-बिच सबे गांव के सबे घर के बाहिर-भीतर के पानी अब परखर गंगा-जमुना कस पक्की गली म बोहावत हे। पहिली गांव ला रतिहा हा बिरबिट करिया अंधियार म लिले रहय अब गली-गली म बिजली के खंबा गड गे अउ रतिहा कन बिजली के अंजोर बगरे लागे हे, भले गांव म रहइया मन के हिरदे में अधियार मिटे के मत मिटे – होगे बिकास
ये बिकास ह हमर गांव के मनखे के कोठी-ढाबा ला घलव छूये हे। तइहा सरपंच-पंच अउ सचिव के खीसा म खटखटिया सईकिल के पंचर बनाये बर पइसा नइ रहिसे तउन मन अब बडका-बडका फटफटी-जीप म घूमत हें उंखर छितका कुरिया के घर मन सब तिमंजिला महल बन गे, होगे बिकास
नंवा राज बने के पाछू हमर बिकास करे खातिर सरकार हा सस्ता चांउर गांवों-गांव बंटवाये लागिस संग मा दारू दुकान के बिवस्था घलोक करिस। जिहां दारू दुकान नई खुले हे तिहां ठेकेदार के संडा मन कोचिया राख-राख के साग-भाजी कस गली-गली मा दारू बेंचें लागिस, सरकार आपके दुआर – होगे बिकास
हमर भाखा बोली म घलोक बिकास होये लागिस, ओखर सबद मन के अरथ अब बिकसित होके बदल गे। तइहा जउन सबद ला गारी जइसे मानें लाय उही बात मन अब टेस के बात होगे। सस्ता चांउर अउ सस्ता दारू ह रोजी-मजूरी करईया मनखे मन के मन ला किसानी कोती ले घुचा के ठलहा रहे मा बिलमा के कोढिया बना दीस, जवान-जवान मनखे मन मोला झोल्टू राम बना दिये कहि-कहि के मगन होके गाये लागिन। अब जम्मे झन अपन आप ला कोढिया अउ झोल्टू कहे म गरब करत हें, अउ कहत हें हमरो बिकास होगे हे। अब तो माने ल परही भई – होगे बिकास
चारो मूडा होये बिनास अउ जममा बिकास ला देख के लागथे कि हमर गांव ह सहर जइसे टुम-टाम सजे के संउख म अपन असल रूप ला भुला जाही। हमर हिरदे म बसे छलका मारत परेम ला सुखा डारही। हमर घरती ला हमर अजा-बबा के टेम ले धान के कटोरा कहिथे तेखर कटोरा अइसे मा तो रीते जावत हे। जम्मो कमईया मन सस्‍ता चांउर खा के चेपटी पीके मगन माते रहिहीं त खेत म काम नइ करहीं अइसे म फसल कहां ले उबजही अउ फसल जब नई उबजही त किसान काला खाही, कमईया मन ला तो सस्ता चांउर सोसाइटी ले मिल जाही फेर किसान ला घान कहां ले मिलही। परिया परइ ले तो बने हे खेत मन ला अउने-पउने बेंच देहे जाए। असनेहे नसा के सूजी धीरे-धीरे पेले के काम चलत हे। किसान के कम्मर टूट जाए किसान के जम्मा भूंइया बेंचा जाए अउ जगा-जगा फेकटरी खुल जाए। नेता-बेपारी मन जुर मिल के खेल खेलें हें अउ जम्मा किसान मन ला झोल्टू बनाये के उदीम बर ये पासा फेंके हें। तभो ले हम मगन हन अउ कहत हन कि होगे बिकास

संजीव तिवारी
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