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आल्हा छंद

आल्हा छंद : भागजानी घर बेटी होथे

भागजानी घर बेटी होथ, नोहय लबारी सच्ची गोठ I
सुन वो तैं नोनी के दाई, बात काहते हौ जी पोठ I1I
अड़हा कहिथे सबो मोला, बेटा के जी रद्दा अगोर I
कुल के करही नाव ये तोर, जग जग ले करही अंजोर I2I
कहिथव मैं अंधरा गे मनखे, बेटी बेटा म फरक करत I
एके रूख के दुनो ह शाखा, काबर दुवा भेदी म मरत I3I
सोचव तुमन बेटी नई होय, कुल के मरजाद कोन ढोय I
सुन्ना होय अचरा ममता के, मुड़ी धरके बईठे रोय I4I
आवव एक इतिहास रच दव, जिनगी के राह गढ़ दव I
दुनिया दारी के बेड़ी से, आजे तुमन अजाद कर दव I5I
बेटी पढ़ाव बेटी बढ़ाव, बेटी के तुम सनमान कर I
दुनो कुल के मान ये बेटी,सपना म ऊकर उड़ान भर I6I

विजेंद्र वर्मा अनजान
नगरगाँव(धरसीवां)
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