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जीवन परिचय

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पं. दीनदयाल उपाध्याय : व्यक्तित्व अउ कृतित्व
– संजीव तिवारी

जनम अउ शिक्षा
कभू-कभू धरती के जनमानस ल नवा दिशा देहे अऊ जुग बलदे के उदीम ल पूरा करे बर युग पुरूष मन के जनम होथे। ओ मन संकट के समय म जनम लेहे के बाद घलोक अपन जनमजात चमत्कारिक प्रतिभा ले बड़े ले बडे़ काम पूरा करके अन्तरध्यान हो जाथें। बीसवीं शताब्दी के सुरू म भारतीय क्षितिज म कुछ अइसनहे जाज्ज्वल्यमान नक्षत्र मन के उदय होइस। जेमन अपन प्रकाश ले भारत वसुन्धरा ल आलोकित कर दीन। ए काल खण्ड म दू प्रकार के व्यक्तित्व मन के दर्शन होइस, एक तो ओ मन जऊन पाश्चात्य जगत ले शिक्षा दीक्षा प्राप्त करके आइन अऊ उहां के भोगवादी संस्कृति के आकर्षण ले कुछ करे ल लालायित रहिन। दुसर तरफ कुछ अइसन मनखे के भारत के धरा म आगमन होइस जऊन पस्चिमी जगत के वैभव वाले भोगवादी संस्कृति ल नकारत भारतीय संस्कृति ल नवा आयाम देहे म जुट गइन, काबर कि उंखर विश्वास रहिस कि गुलामी के सेती भारतीय सनातन ज्ञान परम्‍परा ला खतम करे के षडयन्त्र रचे गए हे।
स्वामी विवेकानंद अऊ महर्षि अरविन्द के गौरवशाली भारतीय परम्परा ल आगू बढइया प्रखर राष्ट्रभक्ति के अलख जगइया बहुमुखी प्रतिभा के धनी ‘एकात्म मानव वाद’ के प्रणेता महामानव पं. दीनदयाल जी उपाध्याय के जनम 25 सितम्बर 1916 (विक्रम सम्बत 1973, शालिवाहन शक 1938, भाद्रपद अश्विन कृष्ण 13) सोमवार के दिन राजस्थान प्रान्त के जयपुर-अजमेर रेलवे लाइन म स्थित ’धनकिया’ नाम के रेलवे स्टेशन म होय रहिस। पं दीनदयाल जी के नाना पं. चुन्नीलाल जी शुक्ल ’धनकिया’ म स्टेशन मास्टर रहिन। इखंर जनम के समय इंखर माता जी अपन पिता तिर ’धनकिया’ म ही रहत रहिन।
पं. दीनदयाल जी के पूर्वज मथुरा जिला के आगरा मथुरा मार्ग म स्थित ’फरह’ कस्बा ले एक किलोमीटर पिछौत म ’नगला चन्द्रभान’ नाम के गांव म रहत रहिन जिहां दुर्भाग्य ले पण्डित जी कभू नइ रह सकिन। पं. दीनदयाल जी के आजाबबा पं. हरीराम जी शास्त्री अपन क्षेत्र के प्रसिद्ध ज्योतिषी रहिन। शास्त्री जी अपन भाई श्री झण्डूलाल जी भतीजा शंकर अऊ वंशीलाल पुत्र भूदेव, रामप्रसाद अउ प्यारेलाल के संग ए छोट कन गांव म रहत रहिन। पं. हरीराम जी शास्त्री के मृत्यु के पाछू ए कुटुंब म मौत के अइसन सिलसिला सुरू होइस कि पूरा कुटुंब के पुरुष सदस्य मन के कुछु ना कुछु कारन ले मौत होए लगिस। पूरा कुटुंब म सिरिफ विधवां मन भर बांचे रहि गीन, जिंकर जीवन के अधार पं.रामप्रसाद जी के एक मात्र पुत्र भगवती प्रसाद रहिन। भगवती प्रसाद पढ़ लिख के बडे़ होइन अऊ धर्मपरायण श्रीमती रामप्यारी ले उंखर बिहाव होइस। आर्थिक चिन्ता ले बिवश होके ओ मन ल रेलवे म नौकरी करना परिस। उमन उत्तर प्रदेश के जलेसर रोड रेलवे स्टेशन म स्टेशन मास्टर के पद म काम करे लगिन। पूरा कुटुंब के खरचा अउ छोट कन नौकरी, पुरत नई सहिस तेकर सेती भारी पांव के अपन धर्मपत्नी श्रीमती रामप्यारी ल ऊंखर पिता श्री चुन्नीलाल जी तीर ’धनकिया’ (राजस्थान) भेज दीन। अउ पं. दीनदयाल जी के जनम उन्‍हें ’धनकिया’ म होइस। नाना घर म जनम होए के सेती पंडि़त जी ल अपन ननिहाल ले गहरा सम्बन्ध रहिस।
कुछ दिन के बाद पंडि़त जी के माता श्रीमती रामप्यारी अपन पति तिर वापस आ गइन अऊ दू साल के बाद दूसर पुत्र ल जनम दीन जेखर नाम शिवदयाल रखे गीस। पं. दीनदयाल जी के बचपन के नाम “दीना“ अउ शिवदयाल के “शीबू“ रहिस। शिवदयाल के जनम के छः महिना बाद मने पं. दीनदयाल जी के जनम के ढाई साल बादेच इखंर पिता श्री भगवती प्रसाद जी उपाध्याय के निधन हो गीस। दुनों भाई माँ के संग फेर नाना तीर रहे लागिन। पण्डित जी छै साल के रहिस होही उही समें उंखर माता श्रीमती रामप्यारी क्षयरोग बिमारी के कारन स्वर्ग सिधार गइन।
“दीना“ सही म “दीना“ (अनाथ) रहि गीस। पं. दीनदयाल जी के पारिवारिक जीवन अड़बड़ दुःखमय रहिस। बचपन ले उंमन अपन मयारू मन के मृत्यु के दुख ल सरलग सहत आइन। ओ मन कभू अपन पैतृक निवास म नइ रह पाइन। पारिवारिक कारन से उंखर लइकई नाना चुन्नीलाल के संग धनकिया म बीतिस। ढ़ाई बछर के रहिन उही समे उंखर ऊंखर पिताजी के देहान्त हो गए। थेरकेच दिन म विधवा अउ दुखी मां रामप्यारी क्षयरोग ले ग्रस्त गीन अऊ सरग सिधार दीन। वो समें पं. दीनदयाल जी ल छै-सातेच साल के रहिन, दीनदयाल ल माता पिता दुनों के मया नइ मिल पाइस।
एकर पाछू पं. दीनदयाल जी के नाना पं. चुन्नीलाल जी शुक्ल नौकरी छोड़ के “दीना“ अऊ “’शीबू“ के संग अपन गांव ’गुड के मडई’ आगरा चले आइन। ’गुड के मडई’ आगरा जिला म फतेहपुर सीकरी तीर स्थित छोटकुन गांव रहिस। इहीं गांव पं. दीनदयाल जी के सही ननिहाल रहिस पण्डित जी के उम्मर अभी 9 साल रहिस कि ऊंखर पालक नाना श्री चुन्नीलाल जी शुक्ल सितम्बर 1925 म स्वर्ग सिधार गइन। पिता, माता अउ नाना के मया टुटे लइका मन अपन ममा श्री राधारमण शुक्ल के कोरा म पले लगिन। श्री राधारमण शुक्ल गंगापुर म सहायक स्टेशन मास्टर रहिन।
पं. दीनदयाल जी सन् 1925 म अपन मामा श्री राधा रमण शुक्ल के संग गंगापुर सिटी चल दीन इन्हें उंखर पढ़ई सुरू होइस। कक्षा चार तक के पढ़ई उमन गंगापुर म करिन, आगू के पढ़ई के व्यवस्था इन्‍हां नइ होए के सेति इंखर मामाजी ह ’दीना’ ल आगू के पढाई बर कोटा (राजस्थान) भेज दीन। उहां उंखर ’सेल्फ सपोर्टिंग हाउस’ म रहे के व्यवस्था कर दीन। इन्हें दीना ह स्वावलम्बन के पाठ सिखिस। तीन साल के कडा़ मेहनत के बाद उमन मिडिल (कक्षा-7) के परीक्षा पहिली श्रेणी म उत्तीर्ण करिन। पं. दीनदयाल जी जब कक्षा 7 म पढत रहिन उही समें सन् 1930 म ऊंखर पितातुल्य मामा श्री राधारमण शुक्ल के घलोक देहान्त हो गीस। पंडि़त जी के उमर वो समें पन्द्रा साल के रहिस, अब पिता के घर अउ ममा के घर दुनों जघा म परिवार के पुरूष सियान मन सिरा गींन। पिता के घर म दू दादी बांचे रहिन अऊ इहां नानी मामी, आघू के पढ़ई उंखर बर अब समस्‍या होगे। पण्डित जी के मामा श्री राधारमण शुक्ल के चचेरा भाई श्री नारायण जी शुक्ल ’राजगढ’ जिला अलवर म स्टेशन मास्टर रहिन। पण्डित जी के आघू के पढ़ई बर उंमन आश्रय देहे ल तइयार हो गइन। पंडि़त जी सन् 1932 म राजगढ चल दीन। इहां ’दीना’ ह दू साल बिताइन अउ आघू के परीक्षा पास करिन। पं. दीनदयाल जी अपन पढ़ई म अतिक प्रतिभा वाले रहिन कि जब ओ मन कक्षा नौ म पढत रहिन त कक्षा दस के पढ़ईया लईका घलोक उंखर ले गणित के सवाल हल करवावंय।
जब दीनदयाल जी कक्षा नौ म पढत रहिन ओ मन अट्ठारा साल के रहिन कि छोटे भाई शिवदयाल टाइफाइड बिमारी ले पीडि़त हो गीस। लाख उदीम के बाद दीनदयाल जी शीबू ल नइ बचा पाइन। दीनदयाल जी शीबू के मृत्यु ले अत्यन्त विचलित हो उठिन, जिंकर सुरता जीवन म कभू नइ भुला पाइन। अभी तक पं. दीनदयाल जी ह अपन पालक मन के सरलग मृत्यु के दुःख सहन करे रहिन, फेर 7 नवम्बर सन् ।934 को ऊंखर पालित छोटे भाई शीबू के देहान्त ह ओ मन ल अन्दर ले झकझोर दीस। सन 1934 म श्री नारायण शुक्ल (मामा) के स्थानान्तरण ’सीकर’ होए के कारण दीनदयाल जी ऊंखर संग ’सीकर’ आ गईन अऊ महाराजा कल्याण सिंह हाईस्कूल म प्रवेश ले लीन। उन्नीस साल के आयु म सन् 1935 म पण्डित जी अजमेर बोर्ड म पहिली नम्‍बर ले पास होइन, पूरा बोर्ड म उंखर नम्‍बर सबले जादा रहिस।
ये बात ले प्रभावित होके सीकर के महाराज कल्याण सिंह ह उमन ल स्वर्ण पदक ले सम्मानित करिन अऊ आघू के पढ़ई बर ।0 रुपये महिना छात्रवृत्ति अउ 250 रुपया के एक मुश्त आर्थिक सहायता प्रदान दीन। दूसर स्वर्ण पदक अजमेर बोर्ड कोति ले ओ मन ल प्रदान करे गीस। उमन इण्टरमीडियेट के पढाई बर सन् 1935 म ’पिलानी’ (राजस्थान) आ गंय। वो समें पिलानी उच्‍च शिक्षा के प्रसिद्ध केन्द्र रहिस, उमन पिलानी के बिडला इण्टर कालेज म प्रवेश ले लीन। सन् 1937 म इमन इण्टरमीडियेट बोर्ड के परीक्षा म बईठिन अऊ न केवल समस्त बोर्ड म सर्वप्रथम रहिन वरन सब विषय म विशेष योग्यता अंक प्राप्त करे रहिन। बिडला कालेज के ये पहिली छात्र रहिन जऊन हर अतिक सम्मानजनक नम्‍बर ले परीक्षा पास करे रहिन। सीकर महाराज के जइसे घनश्याम दास बिडला ह पंडित जी ल स्वर्ण पदक अउ ।0/- रुपया मासिक छात्रवृत्ति अउ पुस्तक बिसाए बर 250/- रुपया प्रदान करिन। बी.ए. के पढ़ई करे बर सन् 1937 म दीनदयाल जी पिलानी ले कानपुर आइन अऊ एस.डी. (सनातन धर्म) कालेज म प्रवेश लीन।
इहां पढ़त समें उंखर संग श्री बलवन्त जी महाशिन्दे अऊ श्री सुन्दर सिंह भण्डारी घलव पढ़त रहिन। इमन ह पंडि़त जी ल मा. भाऊसाहब देवरस ले मुलाकात करवाइन। देवरस जी पंडि़त जी के प्रतिभा के कायल रहिन उमन पंडि़त जी ल राष्ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ म स्‍वयं सेवक बने ल प्रेरित करिन। पंडि़त जी शाखा म सरलग जाए लगिन अउ बौद्धिक क्रियाकलाप मन म आघू बढ़ के हिस्‍सा ले लगिन। बाबा साहब आमटे, दादा राव समर्थ इंखर छात्रावासे च म रूकत रहिन। स्वतन्त्र्य वीर सावरकर ह दीनदयाल जी के शाखा म अपन बौद्धिक देवंय। वेदमूर्ति पण्डित सातवलेकर जी कानपुर के शाखा म जब आइन अऊ पं. दीनदयाल उपाध्याय से मिलिन। पण्डित सातवलेकर जी शाखा म दीनदयाल के बारे म भविष्य वाणी करिन कि कोनो दिन बड़े होके ये कुशाग्र बालक देश के गौरव बनही। कानपुरेच म पण्डित जी के सम्बन्ध श्री बापूराव जी मोघे, श्री भइयाजी सहस्‍त्र बुद्धे, श्री नानाजी देशमुख अउ बापूराव जोशी जइसे राष्ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता मन ले होइस। इहिंचे उंखर भेंट संघ के संस्थापक परमृपूज्य डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार ले घलव होइस। इही मेर ले पंडि़त जी के सार्वजनिक जीवन म प्रवेश हो गीस। उही समें कमजोर पिछड़ा पढ़ईया लईका मन के पढ़ई के बढ़ोतरी बर उमन एक ’जीरों क्लब’ के स्थापना करिन जेखर उद्देश्य परीक्षा म शुन्य अंक पवइया छात्र मन ल आन छात्र के समकक्ष लाना रहिस। दीनदयाल जी ओ लइका मन मन ल खुदे पढा-लिखाके अतका समर्थ बना देवत रहिन कि ओ कमजोर लइका मन परीक्षा म उत्तीर्ण हो जात रहिन। एखर से विद्यार्थी समाज म पंडि़त जी के लोकप्रियता अऊ व्यापक हो गीस। सन् 1930 म पण्डित जी ह पहिली श्रेणी म बी.ए. के परीक्षा पास करिन। एम.ए. अंगरेजी साहित्‍य के शिक्षा बर आगरा के सेन्ट जॉन्स कालेज म उमन प्रवेश लीन। सन् 1940 म एम.ए. पहिली साल के परीक्षा म पहिली श्रेणी के अंक प्राप्त करिन। इहां वो राजा के मण्डी म किराया के मकान ’रत्ना बिंल्डिंग’ म रहत रहिन। इही समय उंखर एक ममेरी बहिनी रामादेवी बहुत बीमार हो गीस, वो ह इलाज कराए बर आगरा आइस। दीनदयाल जी अपन बिमार बहिन के सेवा करे म व्यस्त रहे लगिन। ए बखत उमन तीन काम एक संग करत रहिन, पढ़ई, संघ के काम अऊ बहिनी के सेवा। एम.ए॰ दूसर साल के परीक्षा लकठियाए रहिस ऊंखर आघू धरमसंकट रहिस कि परीक्षा के तइयारी करंव के बहिन के तीमारदारी करंव? बहिनी के तकलीफ ल देख के पंडि़त जी किताब-पोथी एक कोति रख के जादा बेरा अपन बहिनी के सेवा-दवई अउ इलाज कराए म लगाए लगिन। पंडि़त जी बहिनी के सेवा म रातदिन एक कर दीन, सब उदीम करिन, प्राकृतिक चिकित्सा बर उमन ल पहाड म तको ले गइन फेर रामादेवी नइ बांचिस। ए सब के सेती पंडि़त जी एम.ए॰ उत्तर्राद्ध के परीक्षा म नइ बइठ पाइन। परीक्षा नइ देहे के सेती सीकर अऊ बिडला के दुनों छात्रवृत्ति मन बन्द हो गंय। ममा जी के आग्रह म पंडित जी एक पइत प्रशासनिक परीक्षा म घलोक बइठिन ओमा पास तको होइन फेर ए नौकरी ल ठुकरा के बी. टी. करे बर प्रयाग (इलाहाबाद) चल दीन। सन् 1942 म उमन बी.टी. के परीक्षा पहिली श्रेणी म उत्तीर्ण करिन।
एखर बाद उंखर प्रवेश सार्वजनिक जीवन म हो गीस अउ ओ मन अखण्ड प्रवासी हो गीन। मत्यु ह ऊंखर शिशु किशोर, बाल अउ युवा मन म सरलग आघात करे रहिस तेकर सेती ऊंखर मन म वैराग्य उत्पन्न होगए। उमन नवा-नवा जघा मन म प्रवास करना अउ नवा-नवा अपरिचित मनखे मन ले मिलना, उंखर मन म पारिवारिकता उत्पन्न करना उमन बचपन के ल ही सीखे रहिन, पूरा राष्ट्र उंखर घर-परिवार रहिस। सन् 1942 म राष्ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के लखीमपुर जिला के प्रचारक नियुक्त होके राष्ट्र के कारज बर कटिबद्ध हो गइन। सरलग प्रवास अऊ संगठन के काम म देश के कोना-कोना म लाखों स्‍वयं सेवक मन ले मधुर स्नेहपूर्ण आत्मीय सम्बन्ध के स्थापना ही ह पण्डित जी के एकेच काम रहिस। संघ के विचारधारा ले ओतप्रोत पण्डित जी ह संघ काज अपन जीवन म उतार लीन अऊ इन्‍हें ले ऊंखर सार्वजनिक जीवन के श्रीगणेश होइस।

पुस्‍तक अंश…
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