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गोठ बात

मोला करजा चाही

पाछू बच्छर दू बच्छर ले करजा के अतेक गोठ चलत हे कि सुन-सुन के कान पिरागे हे।फलाना के करजा,ढेकाना के करजा।अमका खरचा करे बर करजा।ढमका खरचा बर करजा।राज के करजा।सरकार के करजा।किसान के करजा।मितान के करजा। दुकान के करजा।
हंफरासी लागगे करजा के गोठ सुनके।दू साल पहिली एक झन हवई जहाज वाला ह करजा खाके बिदेस भागे हे ते लहुटे के नांव नी लेवत हे।एक झन तगडा चौकीदार तको बैठे हे।फेर को जनी का मंतर जानथे वो करजा खानेवाला मन कि वो कतका बेर बुचकथे कोनो थाहा नी पाय।एती चौकीदार गोठियई म मगन हे ओती करजादार मन भगई म मगन हे।
एसो एकझन अउ भागगे।पहिली वाला लहुटे नीहे एती दूसर करजादार फेर बुचकगे।अउ बिदेस जाके हमर देस के बैंक वाला मन के जरे म नून डारथे।फेर राहन दे जी!हमला का करना हे।जौन हे तौन हे।
फेर एसो करजा के गोठ ह गांव गंवई म मंदरस कस मीठ लागत हे।पारा-पारा,गांव गांव म करजा के गोठ ह मनखे ल मगन कर देहे।हमर पारा म दू झन माईलोगन के गोठ चलत राहय।
‘अई!सुनेस दीदी!एसो करजा माफी होही कथे।हमन तीस हजार करजा लेहन ओ।छूट होही ताहन मोर बर नेकलेस लुंहू काहत हे छोटन के पापा ह!’
ओकर गोठ ल सुनके दूसर माईलोगन के थोथना थोरिक उतरगे।ओहा किहिस-“हमर तो करम फूटे हे बहिनी!हमर घर ओकर पापा ह करजा लेना ठीक नोहय कथे।लटपट मोर हुदरई कोचकई म पांच हजार लेहे।वहू ल तुरते धान बेंचके कटवा डरे हे।हमन का भाग जतेन बहिनी!फेर ओकर पापा के लउहा ल का कबे!करजा छूटे बर अतलंग कर डारथे।”
‘हमर घर तो पुरखौती डिफॉल्टर हरन बहिनी।जेकर खाथन ओला कभू नी लहुटावन।तेकर सेती हमन ल फयदा होगे गोई!!’अतका कहिके ओहा रेंग दिस।
ताहने दूनोझन अपन-अपन बुता म रमगे।उंकर गोठ ल सुनके महूं गुने ल धरलेंव।सहीच बात तो आय।पेपर मे तो घलो पढथन कि फलाना कंपनी के कतका कतका करजा ल सरकार माफ कर दिस किके।करजा खानेवाला मन ह मगन होके करजा खाथे।हमर कते सास्तर म तको लिखाय हे कथे”ऋणं कृत्वा घृतं पीबेत्”माने करजा करके घलो घीव पीना चाही।इही फार्मूला म जम्मो मनखे रेंगत हे।करजा देके नवा परंपरा सुरू होगे हे।सरकार काहत हे करजा लो।बैंक काहत हे करजा लो।टीबी,पंखा,मोटर गाडी बेचनेवाला मन घलो हख खवा देथे कि एला लो ओला लो।नगदी मत लो किस्ती म लो।त अतेक करजामोहनी के मारे मनखे कैसे बांचही?
एसो किसान के करजा माफी ल सुनके अफसर अउ कतको सरकारी करमचारी मन के थोथना ओरमत हे।उंकर कहिना हे हमरो घर,सोना चांदी,अलाट-पलाट अउ कार वार के करजा ल घलो माफी करो।कई झन ह काहत हे हमर टेक्स के पैसा हरे।तुमन ल करजा माफी करना हे त अपन पैसा ल दव।अब काकर-काकर गोठ ल किबे।पान ठेला म बैठे सुखरू काहत राहय-एसो हम सरपंच चुनाव म बोट उही ल देबो जी जेन हमर पान ठेला के चोंगी माखुर अउ गुटका-सिगरेट के पैसा ल पटाही।अतेक बिकटहा असर परत हे करजा माफी के।
एकझन मनखे कना गोठिया परेंव।जतका बडे चद्दर ओतकी गोड लमाव।करजा नी लेना चाही।मोर गोठ ल सुनके बिकट जोर से बगियागे ओहा।मोला घुडकावत किहिस-कोन कथे करजा नी लेना चाही।सब करजा लेथे।केंद्र सरकार विश्व बैंक ले करजा लेथे।राज सरकार केंद्र सरकार से करजा लेथे।बडे बडे पूंजीपति मन बैंक से करजा लेथे।छोटे बेपारी बडे बेपारी से करजा लेथे।जेला देख ओहा करजा लेथे।तें का करजा म नी हस का!तोर दाई ददा तोला जनम देहे त उंखर करजा लागत हस कि नहीं?
ओकर अतेक बिस्तार वाला गियान ल सुनके मे ह तुरते माथ नवालेंव।फेर एक झन बबा के गोठ मोला अभी ले सुरता हे।ओहा करजा माफी के गोठ ल सुनके किहिस-अभी तक किसान ह ईमानदारी के अन्न खाके मिहनत ले अन्न उपजावत रिहिन हे बेटा!फेर ए राजनीति के बेपारी मन ह अपन बोट के फसल ल बोंये बर करजामाफी के मंतर म किसान ल बईमान बनाय के उदीम करत हे।दिनोंदिन किसानी के खरचा बाढत हे।खातू-कचरा अउ दवाई पानी के रेट ह आगी लगत हे।ओकर दाम ल घटाना चाही।ए हाथ ले देके वो हाथ म नंगाय के का मतलब होवत हे।किसान ल दवाई बूटी अउ सस्ता दाम म खातू कचरा चाही।करजा माफी ह किसान ल नी उबार सके।फेर जेन किसान ईमानदारी से अपन करजा पटावत हे वहू मन बईमानी के रद्दा धर लेही।अभी जेन मंतर ह बने सुहावत हे उही ह किसान मन के बईमान होय ले जब टंगिया बनके सरकार के मुडी म परही त ओला पता चलही।
अप्पढ सियान बबा के मुंहु ले अतेक गहरा बात सुनके मोर मति चकरागे।फेर थोरिक दूरिहा म गेंव त तीन-चार मनखे मंद मउहा म मतंग होके करजामाफी के जशन मनावत राहय।ओमन ल देखके सोचथंव”बबा के गियान जाय चूल्हा मे।अब मोला करजा चाही।”

रीझे यादव
टेंगनाबासा (छुरा)