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गोठ बात

कोठार देवता के पूजा

संगवारी हो, हमर छत्तीसगढ़ राज ह धान कटोरा धानी राज आय। कला धरम संसकिरिति अउ बहुत अकन रीति रिवाज ह हमर धनी भुईया के चन्दन कस म समाये हे। हमर भईया के गोटी माटी ह किसान मन के मेहनत अउ जागर टोर कमाई ले सोना हीरा जइसे कीमती रतन बन जाथे। तेखरे सेती हमर भुइया ल रतनगरभा भुईया कहें जाथे। धान के कटोरा छतीसगढ़ म किसान मन अपन करम अउ जांगर के चलत ले खेत खार म धान अउ गहु ल उपजाथे। अउ पूरा छतीसगढ़ म सबो तिहार सबो रीतिरिवाज ल किसनहा भाई मन अब्बड़ सुग्घर ढंग ले मनाथे। किसानी के दिन म घलो अब्बड़ अकन परम्परा के सुगन्ध ह हमर माटी के संग ममहाथे। अकती के दिन ले सुरु होय किसानी ल कोठार पूजा करके अंतिम करें जाथे। धान के लुवाई मिंजाई ह जेन दिन भी अंतिम होथे उही दिन कोठार के पूजा करे जाथे। 



धरम परायण हमर किसनहा भाई बहिनी मन धान ल कोठार म सहेज के राखै रइथे। कोठार ह किसान मन के मंदिर आय जिहा अनपूर्णा माता के अचरा के छईहा अउ सउहत लक्चमी देवी ह विराजमान रइथे। तेखरे सेती तो किसानहा कका बबा मन अपन मन्दिर म जभु भी निगथे तब पनही ल हेर के मन अउ वचन के पवित्रता के संग अपन करम के मंदिर म निगथे। किसानी के चार महीना म लुवाई मिंजाई ल आखिरी करथे तब किसान मन कोठार देवता के पूजा पाठ करथय अउ मोखला काटा ल धान के ऊपर रख के सूपा काठा पैली सोली के पूजा करथे। 
मोखला काटा के कोठार पूजा म अब्बड़ महत्व हे। सियान मन ले सुने म आथे की मोखला काटा ह अवइया बछर के किसानी बर सुभ होथे। अवइया बछर के आवत ले किसान मन के जिनगी म कोन्हों अल्हन झन होय तेखर सेती मोखला काटा ल धान के दाबन म रखे जाथे। किसान के जिनगी म कभू काटा झिन गड़य। घर म दाई महतारी मन गुरहा चीला ल रांध के कोठार म पूजा पाठ करे बर आथे। 



खेती किसानी म गुरहा चीला के अब्बड़ महत्तम हवय। सावन म जब इतवारी मनाये जाथे तब आखिरी इतवार के खार म सुग्घर गरभ पूजा करके खेत म गुरहा चीला चईघाये जाथे। वइसने जब मिंजाई ह आखिरी होथे त अनपुरना दाई ल गुरहा चीला के भोग लागये जाथे। गुरहा चीला ह जिनगी म हाँसी खुसी के परतीक आय। गुरहा चीला के भोग लगाके किसान भाई मन लक्छमि दाई ले पराथना करथय की हमर जइसन जम्मो किसान भाई मन के जिनगी म गुरहा चीला कस गुरतुर मिठास ह हमेसा रहे रहय। कोनो भी करू अल्हन ह मत आये अउ हांसी खुसी ले हमर जिनगी के दिन बीतय। 
मिंजाई के आखरी दिन म कोठार पूजा करे जम्मो देवी देवता के प्रति धन्यवाद के भाव जाग जाथे।पूजा म तिरतखार के चराचर जीव बर धान के नान नान ढ़ेरी राख के अवइया बछर बर सहयोग के अपेक्षा करे जाथे। लेकिन आज के विग्यान के समय म ये सब्बो चीज ह नंदावत हे। आजकल तो खेत म मिंज के उही कोती ले मंडी म बेचे बर लेग जाथे।

दीपक साहू “आभा”
मोहदी मगरलोड
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