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कविता

सुग्घर हे मोर छत्तीसगढ़

बड़ सुग्घर हे मोर छत्तीसगढ़,
चारों मुड़ा हरियाली हे।
जेती देखबे तेती संगी,
खुशहाली ही खुशहाली हे।।

बड़ भागी हन हमन भईया,
छत्तीसगढ़ मं जनम धरेन।
ईहें खेलेन कुदेन संगी,
ईहें खाऐ कमाऐन।।
बड़ सुग्घर हे मोर छत्तीसगढ़,
चारो मुंड़ा हरियाली हे।
जेती देखबे तेती संगी,
खुशहाली ही खुशहाली हे।।

छत्तीसगढ़ के मांटी मं भईया,
अजब गजब ओनहारी हे।
बर पिपर के सुग्घर छंईहां,
जुड़ चले पुरवाई हे।।
बड़ सुग्घर हे मोर छत्तीसगढ़,
चारो मुंड़ा हरियाली हे।
जेती देखबे तेती सुग्घर,
खुशहाली ही खुशहाली हे।।

होवत बिहनिया इहाँ भईया,
अंगना दुवारी बटोरावत हे।
बड़े बिहनिया ले इहाँ संगी,
कोईली सुर लमावत हे।।
बड़ सुग्घर हे मोर छत्तीसगढ़,
मया पिरीत के चिन्हारी हे।
जेती देखबे तेती संगी,
खुशहाली ही खुशहाली हे।।

लईका मन हां खेलथे भईया,
गुल्ली डण्डा अऊ बांटी हे।
चन्दन कस हे मोर मांटी संगी,
सुग्घर जंगल झांड़ी हे।।
बड़ सुग्घर हे मोर छत्तीसगढ़,
चारो मुंड़ा हरियाली हे।
जेती देखबे तेती संगी,
खुशहाली ही खुशहाली हे।।

गोकुल राम साहू
धुरसा-राजिम(घटारानी)
जिला-गरियाबंद(छत्तीसगढ़)
मों.9009047156