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कविता

पछताबे गा

थोरिको मया,बाँट के तो देख,
भक्कम मया तैं पाबे जी।
पर बर, खनबे गड्ढा कहूँ,
तहीं ओंमा बोजाबे जी।।

उड़गुड़हा पथरा रद्दा के,
बनके ,झन तैं घाव कर।
टेंवना बन जा समाज बर,
मनखे म धरहा भाव भर।।
बन जा पथरा मंदीर कस,
देंवता बन पुजाबे जी….
थोरको……

कोन अपन ए ,कोन बिरान,
आँखी उघार के चिन्ह ले ओला।
चिखला म सनागे नता ह जउन,
धो निमार के बिन ले ओला।।
बनके तो देख ,मया के बूँद,
मया के सागर पाबे जी…..
थोरको….

छल कपट के आगी ह,
खुद के, घर ला बार दिही।
तोर सजाए मँदरस छाता,
पर ह ,आके झार दिही।।
तब अकेल्ला मुड़ी धरे,
रोबे अउ पछताबे जी…..
थोरको…..

राम कुमार साहू
सिल्हाटी, कबीरधाम
मो नं 9340434893
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