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कविता

पुतरी पुतरा के बिहाव

पुतरी पुतरा के बिहाव होवत हे, आशीष दे बर आहू जी।
भेजत हाँवव नेवता सब ला, लाड़ू खा के जाहू जी।।

छाये हावय मड़वा डारा, बाजा अब्बड़ बाजत हे।
छोटे बड़े सबो लइका मन, कूद कूद के नाचत हे।।
तँहू मन हा आके सुघ्घर, भड़ौनी गीत ल गाहू जी।
भेजत हावँव नेवता सब ला, लाड़ू खा के जाहू जी।।

तेल हरदी हा चढ़त हावय, मँऊर घलो सौंपावत हे।
बरा सोंहारी पपची लाड़ू, सेव बूंदी बनावत हे।।
बइठे हावय पंगत में सब, माई पिल्ला सब आहू जी।
भेजत हावँव नेवता सब ला, लाड़ू खा के जाहू जी।।

आये हावय बरतिया मन हा, मेछा ला अटियावत हे।
खड़े हावय बर चौंरा मा, मिल के सब परघावत हे।।
नेंग जोग हा पूरा होगे, टीकावन मा आहू जी।
भेजत हावँव नेवता सब ला, लाड़ू खा के जाहू जी।।

प्रिया देवांगन “प्रियू”
पंडरिया (कवर्धा)
छत्तीसगढ़
priyadewangan1997@gmail.com