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गोठ बात

पुण्य सकेले के दिन आय अक्ती

हमर देस मा तिहार मनाय के परंपरा आदिकाल से चले आवत हे। भगवान ले मनौती करेबर, अशीस पायबर अउ मनौती पूरा होय के धन्यवाद देयबर तिहार मनाय जाथे। अइसने एक समिलहा तिहार बइसाख महिना के तीज के दिन मनाय जाथे जौन ला अक्ती तिहार कहे जाथे। अक्ती तिहार के छत्तीसगढ़ मा घलाव अबड़ मानता हे। घर परिवार,खेती किसानी, बर बिहाव आदि बर ए दिन ला बहुतेच शुभ मानथे। नउकर अउ मालिक के बीच गठजोड़ होय के तिहार आवय। अक्ती ला अक्षय तृतीया के नाम से जाने जाथे।जेकर मतलब होथे जौन कभू नइ सिराय।अक्तिहा से अक्ती बने हे ,अक्तिहा माने जादा।कहेे जाथे कि अक्ती के दिन जौन भी शुभ काम करही ओखर अक्तिहा फल मिलही। हमर शास्त्र अउ पुरान मन ओकरे सेती बताथे सिखाथे कि अक्ती के दिन जादा ले जादा दान धरम करव।एखर अक्तिहा पुण्य मिलही जौन बछरभर मा नइ सिराय।




हमर छत्तीसगढ़ मा ए दिन ला भक्ति भाव से मनाथे।ए दिन ला देव महुरत मानथे। काबर कि अक्ती के दिन ला अन्नपूर्णा माता के जनमदिन माने जाथे अउ मनाय जाथे। घर मा बरा भजिया, सोंहारी, तसमई बनाय जाथे।अन्नपूर्णा माता के पूजा करे जाथे। कहे जाथे कि बइसाख तीज अक्ती के दिन द्वापर युग मा युधिष्ठिर ला अक्षय पात्र मिले रहिस।ओखर खासियत सहिस कि एमा रंधाय भात साग कभू नइ सिराय अउ जौन माँगे उही मिल जाय। द्वापर के कथा में यहू कहे जाथे कि इही अक्ती के दिन सुदामा अपन नानपन के संगवारी भगवान कृष्ण से मिलेबर एक मुठा कनकी धरके गय रहिस। कृष्ण भगवान ओखर भोग लगाइस अउ ओखर घर भंडार भर दिस।




छत्तीसगढ़ मा अक्ती के तिहार ला किसान मन अबड़ धरम ले मानथे।बिहनिया ले नहाखोर के खेत मा दोना चढ़ाय बर जाथे। मानता हे कि धरती माता ला दोना चढ़ा के कोठी भर धान पाय के मनौती माँगथे। बड़े किसान मन जौन पहटिया ,नउकर चाकर सौंजिया रखथँय, अक्ती के दिन बदलथँय। नवा जुनी करथे। गाँव मा नाऊ, धोबी, चरवाहा, सौंजिया लगाय के परंपरा हे।गाँव मा अक्ती के दिन इँखरो नवा जुनी करे जाथे। छत्तीसगढ़ आदिवासी गाँव वाला राज्य हवय।गाँव परम्परा ला हर तिहार बार मा निभाय जाथे। गाँव के बइगा हा अक्ती के दिन गाँव के देबी देवता,शीतला के पूजा करके दोना चढ़ाथे अउ अरजी बिनती करथे कि बछर भर कोनो किसम के दुख तकलीफ, बिमारी महामारी, हमर गाँव मा झन आवय।



छत्तीसगढ़ मा एकठन अउ बढ़िया परम्परा हे पुतरी पुतरा के बिहाव।जौन निरबंशी रहिथे उहू मन ला कन्या दान करे के मउका मिलथे।पारा भर,गाँव भर मिलके उछाह मनाथे। एक मानता अउ हे कि जेन बेटी बेटा के भाँवर अक्ती के दिन परथे ओखर गृहस्थी कभू नइ टूटे।ये दिन देबी देवता संग पुरखा मन आके असीस देथँय।ये दिन बिहाव मा मिले असीस हा जिनगी भर नइ सिराय। ओखरे सेती छत्तीसगढ़ मा दाई ददा मन बेटी बेटा के अक्ती भाँवर मा बिहाव मढ़ाय के ओखी करते। छत्तीसगढ़ मा अक्ती मिलाय के परंपरा हावय।घर परिवार ले जिनगी भर बर बीते अक्ती के पाछू बछर भर अलग होय माने सरग सिधारे परिजन मन ला अक्ति पानी देय के मिलाय के परंपरा हवय।मर के देवता बने पुरखा मन के असीस पाय बर सब सगा सोदर ला बलाय जाथे अउ मरे सदस्य के निमत से सबो ला अपन पूरत ले भोग प्रसाद बाँटथे।पुरखा मन आके असीस देथय जौन कभू नइ सिराय। एखरे सेती कहे जाथे कि अक्ती के दिन जादा ले जादा दान धरम अउ शुभ फल पाय के उदीम करव।ये दिन मिले असीस हा कभू नइ सिराय।

हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा, गरियाबंद