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कविता

सेल्फी के चक्कर

सेल्फी ले के चक्कर में ,
दूध जलगे भगोना में।
सास हा खोजत हे अब्बड़,
बहू लुकाय कोना में ।
आ के धर लिस चुपचाप सास हा हाथ,
बहू हा देखके खड़े होगे चुपचाप ।
घर दुवार के नइहे कोनो कदर ,
मइके से ला हस का दूध गदर।
एक बात बता ऐ मोबाइल मा का हे खास,
सबो झन करथे इही मा टाइम पास।
चींटू अऊ चींटू के दादा इही म बीजी रहीथे,
थोकिन मांगबे ता जोर से चिल्लाथे।
का जानबे डोकरी आजकाल के ऐप ला,
घर मा पानी नइहे भर दे एक खेप ला।
डोकरी हा भाग गे , बइठगे कुरीया मा,
बहू घलो चुप होगे,  चल दीस धुरिया मा।
थोकिन देर बाद बहू हा बोलिस,
सासू मा आ तहू ला।
बतावत हो मोबाइल के ऐप ला,
बहू बताइस ऐ हरे फेसबुक ,
दुनिया भर के मिलथे ऐमा।
तोरो आइडी बना देथो,
तहू चलाबे फेसबुक।
बहू तुरते आइडी बनाइस,
सास ला ओकर बचपन के,
बिछड़े सहेली से मिलवाइस।
ओकर बाद से बदल गे घर के हालात,
सास बहू दूनो , सेल्फी लेवत साथ – साथ।।

प्रिया देवांगन “प्रियू”
पंडरिया  (कवर्धा)
छत्तीसगढ़
priyadewangan1997@giml.com

One reply on “सेल्फी के चक्कर”

गज्जब,बहुते च बढ़िया

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