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कहिनी: तारनहार

GG2परेमीन गली म पछुवाएच हे, धनेस दउड़त आके अंगना म हॅफरत खड़ा होगे। लइका के मिले लइका, सियान के मिले सियान..। नरेस ह धनेस ल देख खुसी के मारे फूले नई समइस। चिल्लावत बताइस-दाइ ! बुवा मन आगे। भगवनतीन कुरिया ले निकलके देखथे डेढ़सास परेमीन अउ भॉचा धनेस अंगना म खडे हे। भगवन्तिन लोटा भर पानी देके परेमीन संग जोहार भेंट करिस। धनेस के पाँव छूवत चउज करत हॉंसत कहिथे – अलवइन भाँचा फेर आगे दई। भगवन्तिन के गोठ ल सुन के जम्मो झन हाँस भरिन। पाँव छूते साठ भगवन्तिन तीर म खड़े अपन देरानी ल सुर धर के बताय लगिस -इहि भाचा हॅ…. पउर साल आये राहय ,यहा बड़े पुक म मोर मंघार ल मार दिस दाई ! मैं मुड़ धर के बइठ गेव ,तॅंवारा मारे कस होगे। भगवन्तिन के गोठ ल सुन के देरानी देवकी अउ धनेस के महतारी परेमीन एक दूसर के मुॅह ल देखके मिलखियावत हांसे लगिन। परेमीन मुसकियावत पूछथे – काय पुक बहुरिया ? काये किरकेट कहिथे तइसने खेलत रहिस हे – हाथ ल हलावत भगवन्तिन बताइस अउ धनेस ल बोकबाय देखे लगिस। धनेस लजावत मुच-मुच करत एक कोन्टा म खड़ा होगे। गाय -गरूवा मन खाए ल पचोएबर पगुरावत रइथे तइसे भगवन्तिन एक ठन गोठ ल कई घॅव एमेर -ओमेर पचार के पचोथे। देरानी जेठानी अउ गांव भर सब भगवन्तिन ल पचारन कहिथे। भगवन्तिन के मन म काकरो बर घिना -तिरसकार नई राहय। कुछु बात रहय बिगर लाग -लपेट के कहे-बोले के आदत हे भगवन्तिन के। भूले बिसरे कासी गोत तइसे कस नवा -जुन्नी सबो गोठ भगवन्तिन के मुॅहजबानी खाता म रहिथे।
लइका मन अबोध होथे। पानी म जनम के घलो पुरईन पान ह पानीच ल अपन ऊपर नई लोटन दय तइसे लइका मन कोनो बात ल मन म नइ धरय। बडे -बडे मन पांव-परलगी, गोठ बात, हाल -चाल पूछइ म भुलागे त नरेस अउ धनेस दुनियादारी रित -रिवाज सब ल भुलाके अपन खेल -खेलवना, बॅाटी- भॅवरा ,गिल्ली -डंडा ,म रमगे। नफा -नुकसान ,सुख -दुख, मान -सम्मान ,उंच -नीच बडे मन देखथे। लइका मन ल का चाही पेट भर खाना ससन भर खेल। खेल -खेलवना, उछल -कूद ,संग -संगवारी अतके इंकर सनसार ये। सिध महात्मा मन जग के सुख -दुख ले जइसे बेफिकर होथे तइसे कस लइका मन होथे, तेखरे सेती लइका मन ल भगवान माने गे हे।
मझनिया भगेला खेत ले घर लहुटिस । धनेस ल देखके गदगद होगे। भूख पियास अउ सरी जॉगर भर थकान ल कोन्टा के खूंटी म टांग – अरोके भगवन्तिन ल चिहुॅकत कहिथे- हमार तारनहार आगे, लान वो थारी -लोटा ,पीढा -पानी ल, देवता के चरन पखारबो। धनेस घला एकरे अगोरा म मने मन ममा के बाट जोहत रहय। हर दफे अइसने होथे । ममा -भॅाचा दूनो ऐला नई बिसरय। ममा, भॅाचा ल तारनहार समझथे , त भॉचा ह ममा ल काम चलउ बैंक। काबर के ममा – मामी चरन पखार – पांछ के चरनामरित लेथे तहेन भॅाचा ल दान -पुन घलो करथे। भगेला मनखे के पूजा ल भगवान पूजा मानथे। भॅाचे भर के बात नईहे, कोन्हो लइका होय भगेला बर भगवाने सरूप होथे। भगवान , जेला जात -पात उंच- नींच के चिन्हारी नई रहय। ओइसने लइका मन होथे- भोला भंडारी। धुर्रा -माटी, छोटे -बड़े , जात -कुजात नई जानय। माने ए असार जगत के सार ल भगेला भगत सोला आना समझ गेहेे।
मझनिया बेरा धनेस हॅ खेलते खेलत नरेस के बॉंटा रोटी ल झटक के खा दिस। नरेस बोम फार के रोय लगिस। भगेला नरेस ल भुलवार -पुचकार दिस – ले अउ बना लेबो बेटा ! खावन दे, भाई हरे। अउ अपन छाती म अपन करेजा नरेस ल सपटा – थपटके ओकर जीव ल जुड़ोदिस।
घंटा नई बीते पइस भगवन्तिन अचरज म मुंहफार के बोमियाइस – अई हाय ! देखत हस,परलोकिया भॅाचा हॅं खॅवड़ी के चुरत दूध ल ढार के पी डरिस। लइका के जात कइसे करबे ? पीयन दे – भगेला कइथे। भगवन्तिन हाथ ल बीता भर हलावत सांस ल लमाइस- जम्मो ल पी डरे हे, कसेली हॅं ठाढ़ सुख्खा पर गे हे। वा … दूध ल पी दिस त का गाय ह दूधे नइ देही कहिके भगेला हा भगवन्तिन के मॅुह ल तोप -ढांक दिस। भगवन्तिन सरी बात बर टिंगटिंगही त भगेला हा शांति बर ओकर ले डंकाभर आगु। तै डारा डारा त मैं पाना पाना। भगेला ल तीनो पीढ़ी म कोन्हो गुसियावत न देखे हे न सुने हे। जनम के गरूवा आय।
चार -छै दिन रही के धनेस मन महतारी बेटा गांव लहुट गय। भगेला भगवन्तिन भाव भजन भर के बिदा करिन। रतिहा भगवन्तिन पूछ बइठिस- कस जी ! भॉचा मन एकर पहिली कई घॅंव अइस -गइस, पहिली दफे आज तुॅहर आंखी ले ऑंसू ढरकत देखे हॅंव। का बात ये ? अइसन तो तुमन बेटी के बिदई म नई रोय हव। भगेला ससन भर सॉंस ल तीर के कहिथे – तय नई जानस जकली , भाचा ह मोर बर सहिच म तारनहार हे। भगवन्तिन चेंधे बिना नइ रहे सकिस – कइसे ? भगेला बताय लगिस।
एक दिन भगेला अकेल्ला कुरिया म बइठे रहय। धनेस कहां ले आइस अउ पूछथे-कइसे गुमसुम -गुमसुम बइठे रहिथस ममा ,गजब चिन्ता -फिकर करथस तइसे लागथे। भगेला कहिस -का करबे भांचा ! एक तो आधा उमर म बेटा पाएंव। हिम्मत करके पढाय -लिखाय के उदीम करथॅव त नरेस के पढ़इ -लिखइ म चिटिकन चेत नइहे। तैं नम्मी चढ़गे अउ ओला देख। धनेस कहिथे -नरेस काली संझा बतावत रहिस हे के तोर फिसिर -फिसिर ल देख के चिन्ता म नरेस नइ पढ़ सकत हे अउ ओकर फिकर म तैं चुरत -अउंटत हस। नरियर ह निछाय नइहे खुरहेरी के फिकर करत हव। चिन्ता ह चिता कोती तीरथे। तैं अपन इलाज पानी ल बने ढंगलगहा करवा ,भविस के चिन्ता ल छोड। अपन तन ल घुरो -चुरो के धन बचइ लेबे ओला लइका बिगाड़ दिस त का काम के अउ कहॅू कुछू नई बना पायेस , लइका हॅ अपन समझदारी से भविस म कुछु बना लिस त तोर ए चिन्ता फिकर काएच काम के। पुत सपुत त का धन जोरय पुत कपुत का धन जोरय। भगेला ल घर बइठे संसार के गियान मिलगे। जिनगी के आखिरी पाहरो म भगवान, भगेला के आगू म साकछात खड़ा होके गीता सुना दिस। भगेला भांचा भगवान के दूनो पॉंव ल धर लिस – आज तैं मोला जीयत तार दिए ददा अउ भगेला के दूनो आंखी ले तरतर -तरतर गंगा -जमुना के धार फूटके ढरक गे।

धर्मेन्द्र निर्मल
ग्राम व पोस्ट कुरूद भिलाई

One reply on “कहिनी: तारनहार”

बढ़िया कहिनी हे धर्मेन्द्र भैया आपमन ल बधाई हो

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