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व्यंग्य

कामवाली चमेली के पीरा

Har Prasad Nidarझपटराम तसीलदार के दू बेटा हे, बड़े के नाव केकरा अउ छोटे के नाव मेकरा। केकरा पढ़े-लिखे म बहुते चतुरा हे, एकरे सेती दू बछर होगे रयपुर कालेज ले बी.ई. पास करके घर म बइठे हे। मेकरा वोकालत करथे। दुनो भई के बिहाव नई होय हे। एक दिन तसीलदार अपन दुनो बेटा ल रथिया कन जेवन के बखत तीर म बइठार के समझाथे के बेटा हो तुमन अपन-अपन खातिर गोरी-गोरी कइना खोजा, ए बरिख बिहाव करना जरूरी हे, काबर के मोर नउकरी ह जादा दिन जइये अउ कतका दिन ल नउकरानी ह रांध के खवाही। तुंहर दाई ह रतिच त बात दूसर होतिच, ओहा तो उपर जाके अपन बनउकी ल बना डारे हे। दूसर बात मोला सक्कर के बैमारी हो गे हे। रात दिन के तसील के बुता- काम दउड़ा म थक जाथव। घर म बहूरिया मन रही त रांध-पसा के दिही, तुमन ल अराम मिलही अउ महू ल नाती- नतनीन पाये- खेलाये के मन होवथे, तेकरे सेती कहत हंव अपन- अपन बर तुमन लड़की खोजा। अइसे कहिके तसीलदार अपन कुरिया म सूते ल चल दीच। केकरा अउ मेकरा घलो जेवन करके अपन- अपन खोली मं चल दीन।

मेकरा अपन खोली मं वोकलावत के पोथी भारतीय दंड संहिता के पन्ना ल उलट-पुलट के देखत हे, काबर के ओकर एक झन मोवक्किल के कालि गवाही पेसी अउ केस के फैसला होवइया हे, जेमा चारो मुड़ा ले मोवक्किल गरीबदास ह घेरा ग हे, ओला कतेक बछर के सजा हो सकत हे के संसो मं गुनत- समझत धव ओ पोथी ल खोलय धव ओ पोथी ल खोजय अइसने करत रात के बारा बजगे मेकर ल नींद नई आवत ए, काबर के गरीबदास के दू खाड़ी के खेत ल बेचवा के ओला केस ले बरी करे के जुमला ठीका चोबीस हजार रूपिया लेके करे हे। एकरे सेती वोकिल ल नींद नई आवत हे, फेर वोकिल विचार करथे उसनिंदा मं गड़बड़ हो जाही कछेरी मं बहस करे नई सकिहंव कइके चार ठन नींद के गोली खाके सूत जाथे। एती भिनसरहा नउकरानी चमेलीबाई तसीलदार के खोली मं कलेचुप खुसर जाथे अउ झपटराम ल कथे- तसीलदार साहब मैं तुंहर लइका के महतारी होवइया हंव, चार महीना हो गय हे, ये दे मोर हाथ गोड़ घलो ह चिक्कन-चिक्कन दिखत हे अउ कुछु खावत हवं तेहू ह उलटी हो जाथे, पेट म एको दाना नई ठहरत हे। पेट ह बने निकलही त मोला पारा परोस के मन हांसही अउ गारी दिही, दूसर बात हमर सगा मं राड़ी मई लोग ल कोई छोकरा-डोकरा बिहाव नई करंय। तुंहर जात-सगा म चूरी पहिराय के चलन हे, मोला चूरी पहिरा के अपन बना लेवा तभे इज्जत मरजाद ह बांचही, चमेली के गोठ ल सुनके तसीलदार के तरुआ सूखा गे। थूक ल घुटक के तसीलदार कहिस- चमेली का करत मं का होगे। मोर लाज- सरम अउ मरजाद ह अब तोरेच हाथ मं हे, तार दे के बोर दे। रोनहू होके चमली के गोड़ ल धरके तसीलदार कथे- चमेली अभी कोनो ल ए बात ल कानोकान झन बताबे। चल काल जाके डागडर झक्करदास करा कलेचुप लइका ल उतरवा देबो, फेर तोर-मोर मया पिरीत ह तो बंधायेच रही। तै इच घर मं मोरे करा मरत ले रहिबे, तोला नई छोड़व। तोर माटी पानी गदगंगा मैं करिहंव, फिकर झन कर। तसीलदार के अरजी-बिनती ल लतिया के चमेली कहिस- तसीलदार जी मोला चूरी पहिरा लेवा। अइसे करे म मोरो तुहरो दुनो झन के बनउकी बन जाही अउ तुंहर ये पेट के लइका के। मैं ये पेट के लइका ल उतरवा के हतिया नई करे देंव, लइका उतराय के सेती अभीच महुरा खाके नही त फांसी लेके मर जाहूं कहत तसीलदार के खोली ले सुसकत निकल के रंधनी खोली म समा जाथे अउ फरिका ल खड़प ले ओध के बंफार के रोय लागथे। तसीलदार, चमेली के पाछू-पाछू दउड़त आथे अउ चमेली के मुंह ल छबक के समझाथे- ए चमेली झन रो न लइका मन जाग जाहीं त आफत आ जाही। तै जइसे कहिबे मैं ओसनेच करहूं चुप हो जा। इ समे परोस के गफ्फार कसई के गरना के गरना कुकरा मन बासे लागथे। तहसीलदार के गति ल देखके चमेली जोर से किकियाथे। चमेली के किकियई ल सुनके केकरा अउ मेकरा दूनो झन धउड़त जाके अपन ददा ल देखथें फेर समझ जाथें तसीलदार ह महुरा खाये हे। दूनो भई अपन ददा ल आटो रेकसा म जोर के डागडर झक्करदास के ओखदखाना लेगथे। डागडर कथे तसीलदार साहब फौत हो गय हे, जावा घर ले जावा। फेर डागडर कथे- येहर तो जहर खाये हे पुलिस कसे ये, रूका झन लेगा। मैं हर थाना ल फोर करथेंव।

तीन महीना के गये ले तसीलदार ल दुख देहे अउ महुरा खाय ल मजबूर करे के जुरूम म चमेली ल सात बछर के सजा होगे। चमेली रयपुरा के जेलघर मं अपन दिन ल सजा के गिनत हे अउ मने मन गुनत हे के ग्यारा बछर ले तसीलदार अउ ओकर दूनो छोकरा के सेवा करेंव तेकर फल मोला उपरवाला ह बने दीच हे।

हरप्रसाद निडर
जॉंजगीर

भास्‍कर के ‘संगवारी’ ले साभार

One reply on “कामवाली चमेली के पीरा”

very well said, it is really good to 36garhi… I am out of 36garh
for last 25 years hence not able to read any 36garhi material
this has provided good opportunity to read 36garhi stories
thank you very much
LTCOL SG Dwivedy

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