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व्यंग्य

किसीम किसीम के साहित सेवा अउ भोभला बर चना चबेना

संगी हो जय जोहार,

में हाँ दू चार दिन पहिले ये बुलाग के सेवा ले हवं. एखर ले पहिले में हाँ नई जानत रहेवं काला बलाग कथे, जानेवं ता महूँ हाँ अपन गोठियाये के खजरी ला मेटाए बर ये दे बूता ला कर डारेवं, मोर डिमाग ले बुलाग के बूता हाँ बुलाग कम, बुलक दे जियादा हवये, हमन हांना कथन ना “मार के टरक दे अऊ खाके सूत जा” तईसने बूता बुलाग के हवे. अपन गोठ ला गोठिया ले तहां काखरो झन सुन. ओ कोती मूड ला पटकन दे. अऊ एक ठन नवा जिनिस देखेवं, इंहा रिकिम-रिकिम के साहितकार हवय, कई झन ता अलकरहा घलोक हे, रात दिन जागते अऊ लिखत रहिथे पढ़त रहिथे, मोला ता लागथे रात के घुघवा हाँ घलोक सूत जात होही पर ये मन नई सुतय, एखर मन के किस्‍सा कहिनी हा रात भर चालू रहिथे, मोर डिमाग हा नई पुरय. रंग-रंग के नावं हवय, कुकुर बिलाई मन के नावं हा घला नई बांचे हे उहू ला धर डारे हवय, में हा इंहा आके अडबड गियान पायेवं.

साहितकार ओला कथय जेन सब के हित ला सोचय, जम्मो समाज के हित के चिंता करे, साहितकार मन के गोठ हा दिन रात चलत रहिथे, कहिथे ना “बईला ला बांध दे घाट मा, अऊ……….ला फांद दे बात मा.” अइसनेच बूता हवय जान लुहू गा. हमर गाँव मा घलो एक झन साहितकार हवय, में हा घर ले निकलेवं ता ओला भेंट पायेवं राम-राम जोहार होईस ता पुछेवं कहाँ जात हस गा बिहनिया-बिहनिया झोला धर के, ता वो हा किहिस – का बताववं गा एक ठक गीत लिखहूँ सोचत हंव त घर मा लईका मन करत हे हांव-हांव के मारे सबे मामला हा गड़बड़ हो जथे त बांधा पार में बइठ के लिखहूँ, बने साहित के सेवा करत हस गा अइसने होना चाही.

एक दिन टिरेन मा बिलासपुर ले आवत रहेंव त मोर सीट के पाछू मा एक झन मनखे हा जोर लगा लगा के कंही पढ़त रिहीस, दू चार ठन टूरा मन जुरियाये रिहिसे, गोठ ला सुन के महूँ हा लहुट परेवं, देखेंव त उहू साहितकार रिहीस याहा रोठ के डायरी ला धरे रहय अऊ कविता पढ़त रहय, इहु एक ठक साहित सेवा हवे, में हा पुछेवं, का बाबा टिरेन मा घला कबी समेलन चलत हे, ता वो हा किहिस-काखर अगोरा करबे के तोला कबी समेलन म बलाही अऊ परघा के तोर आनी-बानी के गीत अऊ कविता ला सुनही, ये बेरा मा सरोता मन घलोक हुसियार हो गे हवय, तैं कविता पढ़े ला चालु करबे तो बैईव बैईव कहिके नरीयाथे, तेकर इही बने १० रूपया के टिकिस कटा लोकल मा अऊ अपन कविता के पाठ ला चलन दे सरोता घलो मिल जाते अऊ कोनो बोरियात हे ते हा अगले टेसन मा उतर घला जथे, मोला अऊ नवा सरोता मिल जथे, सबले बढ़िया मोला इही मंच हा लागथे, में कहेंव धन्य हस बबा तेहां अतक बड बलिदान साहित बर देवत हस.

हमर तिवारी गुरूजी हवय तहां लकठा के इस्कूल में पढाये बर जाथे, ओखर इस्कूल के पाछू मा एक ठक कुंवा हवय, कुंवा हा सुक्खा हवय कोई १५ हाथ के होही, खाए के छुट्टी के बेरा मा एक बिदयार्थी हा कुंवा मा गिर गे, इस्कूल के छुट्टी होय के बेरा मा गुरूजी हा देखिस एक झन टूरा के बसता हा माढे हवय अऊ टूरा हा गायब हे ओला खोजिस, नई पाईस त कुंवा डहार ला देख लौं कहिके गिस, टूरा हाँ कुंवा में रिहीस अऊ गोटी पथरा ला बल भर उपर डाहर फेंकय, गुरूजी कुंवा मा झांकिस त टूरा हाँ कुंवा मा रिहीस अब ओला हेरे के संसो पर गे गुरूजी हा सोंचिस, लुवाई के टैम चलत हे सब्बो झन खेत खार मा जाये रहिथे कोन बलावं? तभे सुरता आइस गावं में एक झन “बिमरहा” नावं के कवी साहितकार रहिथे, वो हा सिरतोन मा बिमरहा नई ये, कवि बनिस त नावं खोजिस, कोनो नावं नई मिलिस, काबर के सबो नावं ला अऊ कवी मन पोगरा डारे हे त मेहा इही बिमरहा नावं ला धर डरत हवं, अइसे करके ओखर नावं हा बिमरहा परगे, ठेलहा उही मिलही, चल उही ला बलावं, टूरा ला कुंवा ले हेरे मा मदद करही, कहिके गुरूजी ओखरे मेर चल दिस, बिमरहा देखिस गुरूजी आये हवय कहिके खुस होगे, गुरूजी हा अपन पीरा ला बताइस, त बिमरहा कहिथे ये दे गुरूजी बने होगे ते आगेस त अभीच्चे एक ठन नवा गीत लिखे हावव थोकिन सुन ले फेर टूरा ला कुंवा ले हेर देबो अभी वो हा बने सुरकसित जगा में हवय, कांही संसो के बात नईये, जब गुरूजी ओखर खोली मा खुसरिस त देखिस पांच पन्ना के गीत, गुरूजी के ………………….गे, अब नई बांचवं दादा कहिके, गीत ला सुनिस अऊ टूरा ला कुंवा ले हेरिस, अइसने घला साहित सेवा होथे.
अब बिसराम दव संगी हो, 
सब्बो झन ला मोर राम-राम जोहार लेवो.

आपके गंवईहा संगवारी 
ललित शर्मा 
राष्‍ट्रीय महासचिव अर्टिसन वेलफेयर ओआरजी. 
न्यू दिल्ली 
अभनपुर के रहवैया 
मोर ब्लॉग हे- 
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