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व्यंग्य

पईधे गाय कछारे जाए,पटवारी साहेब ला कोन समझाए.

संगी हो जोहार लओ

देखथवं मेहा आज कल समाज सेवा बड चालू होगे हवय, जहाँ देखबे उहां समाज सेवा,ये दे समाज सेवा हा एक ठक बहुत बड़े बीमारी हवय,छुतहा रोग हे,कई झन बड सौख ले करथे कई झन अपन जी पिरान ला बचाए बर करथे,हमर एक झन मयारू मितान हवय,हमन ओला पटवारी भइया कहिके बलाथन, उहू ला समाज सेवा के बीमारी धर डारे हवय,आज कल संस्कार अऊ सेवा,लईका मन ला सुधारे के गोठ,अऊ नाना परकार के गियान फोकट में बाटंत रहिथे,जम्मो गांव भर के मनखे मन ओखर ले अब डराय ला चालू होगे,ओखर समाज सेवा हा,ओखरो बर एक ठक बीमारी होगे हवय नइ कहीही त ओला चैन नई परय,कही दिस त लोगन मन समझ नइ परय,देह हा दुबरागे हवय आंखी हा खुसर गे हवय समाज ला सुधारे के संसो मा दिन रात चैन नइ परय,समाज सेवा हा महामारी होगे,घर मा जाथे त डउकी हा चमकात हे,लईका मन ला समझाथे त ओ मन नई समझे,बड़ा परेशानी मा परगे बपरा हा,ये दे बीमारी के पाछु मा एक ठन कहानी हवय के काबर ओला बीमारी हा धरिस,वो हा सरकारी नौकरी में लगिस त बने पद पा गे,अऊ पटवारी के नौकरी,चित भी ओकरे अऊ पट भी ओखरे चारो मुडा ले पईसाच पईसा,अब ओखर घर मा चंदा मंगईया के लेन लगे रहय,कभू पत्रकार,त कभू गणेस चंदा,त कभू धर्मसाला के चंदा,त कभू सरकारी चंदा, दिन रात हलाकान होगे.
एक बेर हमर गांव में भागवत होइस,ओ हा कान फूका के गुरु बना डारिस,गुरु मेर गियान पागे,अऊ पुस्तक ला पढ़ के उही गियान ला बनते ला धर डारिस, एखर अतका बड़े परभाव परिस कि ओखर मेर सबो झन के आना बंद होगे,अब काय करथे बिहनिया ले चंदा के रसीद ला धरके घर ले नहा खोर के निकल जथे,अऊ हरिदुवार बर चंदा सकेलथे,फोकट मा गियान बाँटथे,अब अइसे होगे हवय,ओला आवत देखथे त मनखे मन अपन रद्दा ला बदल दे थे अऊ त अउ अपन अपन घर मा सब ला चेता डारे हवय के पटवारी हा आही त कही दुहु सियान हा घर में नई ये,अइसन हाल हो गे,एक बेरा रिहिस के पटवारी ह लोगन मन ला देख के लुकावे,अब लोगन मन हा पटवारी ला देख के लुकाय ला धर लिस,जब कोनो हा ओखर ले बात नई करय त ओला भाषण देय के बीमारी घला धर डारिस जीहाँ भी होय जवनो मेर माइक लगे देख डारिस ते ज्ञान के गोठ चालू हो जथे,रुके घला नई,उत्ता-धुर्रा हांके ला धर लेते,देखत रहिथे कोनो उठ के ता नई भगाथे,जेन हा उठ के भागे के उदिम लगाथे तेखरे नावं ला ले के गोठियाथे त उहू हा बपरा हा बैठ जथे.
एक बेर रात के आइस मोर मेर चल त महाराज वोदे गांव में परवचन देना हे रात के ९ बजे ले चालू हवय आपो ला जायेला लागही,उहाँ के के संगी मन हा आप बर बिसेस निमंत्रण दे हवय,आप चलव,महू हा कहेवं रे भाई गंवई ता अपने हवे जाय मा कोनो अलहन नई ये,कहिके मैं हा घलो चल देंव गा,उहाँ जा के देखेवं ता जौन मंच बनाये रिहिसे तेमे बने जगर-मगर लैट हा बरत हे,माइक लगे हवय,सरोता हा नदारत हे,तीन झन बइठे रहाय,मेहा संसो मा पर गेंव कईसे करही बुजा हा इंहा कोनो नई ये,का बताओं संगी हो माइक ला धरिस अऊ उत्ता धुर्रा फेर चालू हो गे,निति अऊ गियान के गोठ हाँ रात भर चलिस जब सुकवा हा उगिस त मीही हां गेंव, देख महाराज अब परबचन ला बिराम देवो,तीन झन सरोता रिहिस उहू मन सूत गे अऊ चउदा झन कुकुर हवय तहु मन धन्य होगे,अगले जन्म मा मनखे बनही ता आपला धन्यवाद देय बर आही,अईसन हमर गियानिक पुरुष हवय पटवारी भइया हा.
संगी हो अभी पटवारी भईया के कहिनी हा सिराय नई हे थोकिन अगोरा करव मेहा लहुट के ओखर नवा किस्‍सा धर के आवत हंव.

जोहार लेव संगी हो .

आपके
गंवईहा संगवारी

ललित शर्मा
(कार्टून : त्र्यंबक शर्मा जी से साभार)