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कहानी

मितानी के गांठ – कहिनी

दाई-दाई! मेंहा काली सलमा दीदी घर रहूं। दीदी ह मोला काली रूके खातिर बड़ किलोली करत रीहीस हे। बड़े बाबू ह घलोक रूके बर मनावत रीहीसे। ममता ह अपन दाई ल चिरौरी करत कहिथे। त दाई ह कथे- तेहां मोला झिन पूछ बेटी, तोर ददा ल जाके बता। ममता ह गांव के पंच कातिक के नोनी हरे अउ सलमा ह रमजान सेठ के नोनी हरे। दूनों ननपन के सहेली आयं। दूनों के जनम ह एके दिन के अरक-फरक म होय रीहीस। जब दूनों लइका के जनम होइस त दूनों घर म पूरा एक हफ्ता ले देवारी कस अंजोर बगरे रीहीस। रमजान सेठ ह ममता नोनी बर सुग्घर अकन चांदी के सांटी बिसा के लानिस त कातिक ह घलो सलमा के छट्ठी के उपलक्ष में पूरा गांव ल नाचा देखाइस। रमजान अऊ कातिक म बड़ मितानी रीहीस।

फेर जइसे काकरो नजर लगगे दूनो के मितानी ल। दूनों झन आज एक दूसर के चेहरा देखना पसंद नइ करंय। पाछू बच्छर के बात आय। गांव म पंचइती चुनाव के दिन आगे। गांव के सियनहा मन बैठका म सकलाइन अऊ कातिक के बड़े भइय्या रामलाल ल गांव के पूरा वोट देवाबोन कहिके सुनता होईन। गांव म सरपंच बने खातिर रामलाल अउ परोसी गांव के केशराम के बीच टक्कर रीहिसे। गांव के जम्मो किसान रामलाल ल बोट देये खातिर एकमत होगे।

रमजान सेठ ह बेयपारी मनखे रीहीस त पास-परोस के गांव के मनखे मन संग घलो बने जान-पहिचान रीहीस। बेवपार के सिलसिला म केशराम संग घलो बइठना-उठना रीहीस। केशराम ह अपन परचार खातिर जब कभू गांव म आये त रमजान सेठ घर थोरिक बेरा जरूर ठहरे।

पंचइत चुनाव ह निपटगे। कातिक के बड़े भइय्या रामलाल ह दू बोट ले हारगे। मात्र दू बोट ले कातिक ह हारे हे। ए बात ह पूरा गांव में जंगल के आगी बरोबर बगरगे। संझौती बेरा म गांव के गौरा-चंऊरा म बइठका सकलागे। कोन हा कातिक ल हराये हे तेकर खोजबीन सुरू होगे। पूरा बस्तीवाला मन के शंखा ह रमजान सेठ ऊपर होगे। जम्मो गांव वाला मन रमजान अउ ओकर गोसईन ल रामलाल भइय्या के हारे के जिम्मेदार ठहरा दिन। एक बात ल कातिक के हिरदे ह नई मानत रीहीस फेर रमजान के केशवराम संग बइठना-उठना ल देखके ओकरो मन भरमागे। रमजान ह अपन नानकुन नोनी सलमा के किरिया खाके पूरा गांव ल भरोस देवाना चाहिस। फेर कोनो ओकर ऊपर विसवास नइ करिन। रमजान ह कातिक तीर जाके अपन अंतस के पीरा ल गोहराइस फेर वहू ह पंचइती चुनाव के नशा म बूड़े रीहीस त रमजान के पीरा ल कइसे समझतिस। दूनों के बीच बइठना-उठना बंद होगे। बातचीत घलो बंद होगे। दूनों सियान अब एक दूसर संग गोठबात नइ करंय। फेर दूनों झन अपन लइका मन के बीच नइ आइन। सलमा अऊ ममता के पक्का सहेली बनगे।

समय बुलकत देरी नइ लगे। आज ममता अउ सलमा ह सग्यान होगे हवयं। ये बीच म तीन ठन पंचइती चुनाव निपटगे। फेर रमजान अउ कातिक के बिस्वास मं परे गांठ ह नइ खुलीस। काली सलमा नोनी के बिहाव होही, कालीचे बरात घलो अवइय्या हे। भले रमजान संग कातिक इ नइ गोठियावय तभो ले रमजान ह कातिक ल अपन नोनी के बिहाव नेवता दे बर नइ भुलाइस।

संझा बेरा म काितक ह अपन खेत खार के काम-धाम ल निपटा के आइस। गोड़ ल धो के अभीचे खटिया म बीड़ी सुलगावत बइठे रीहीस। ओतकी बेरा म ममता ह दऊंड़त आके खटिया म अपन ददा संग बठ जाथे। ममता ह अपन ददा ल कहिथे- बाबू! मेंहा काली सलमा दीदी घर रहूं ग! दीदी के बरात अवइय्या हे। पहिली तो कातिक ह थोरकिन गुस्सा देखाइस फेर तुरते ममता ल सलमा घर जाय के अनुमति दे दिस। अब एती रात भर कातिक ल नींद नइ आवत राहय। सलमा के काली बिहाव होवइय्या हे। बेटी ह एक घांव घर ले निकरथे ताहन लहुट के मइके में नइ आवय। जाय के बेरा म नोनी बिचारी ह मोर रद्दा देखही। पंचइत के झगरा ह तो कब के सिरागे, फेर ओकर रिस ल अबले गंठिया के राखे ले काय फायदा। फेर काली तोर बेटी ह तो घलो काकरो बहू बनही अऊ तोरों बेटी के बिहाव म रमजान नइ आही त? इही सब ल गुनत-गुनत कातिक के नींद परगे।

बिहनिया ले ममता ह सलमा के बिहाव म जाय बर तियार होके चल दिस। एती कातिक ह घलो बड़े फजर ले नहा-धो के पांच हजार रूपिया ल धरिस अऊ साहर जाय बर तियार होगे। ओकर अइसन उदुप ले साहर जवई ल देख के ममता के दाई ह पूछिस घलो- आज कहां जाथस, बड़ तियार होके। खेत डाहर कोन जाही? कातिक ह ओकर गोठ ल अनसुना करके रेंग दिस।

एती सलमा के घर म बरात आगे राहय। निकाह के काम ह निपट गे रीहीसे। जम्मो चिन-पहिचान अऊ लाग-मानी मन अपन अपन शक्ति अनुसार दुलही-दुलहा ल घर गिरहस्थी के जिनीस भेंट करत रहिन हें। उही बेरा म एक ठन गाड़ी ह सलमा घर तीर आके रूकीस। दू झन मनखे मन बड़ जनिक अलमारी ल बोहिके लानत रिहिन अऊ आगू-आगू म कातिक आवत राहय। कातिक ल आवत देख के सलमा के आंखी ले आंसू के धार नइ रूकत रहिस हे, ऐती कातिक के आंखी ले घला आंसू नई थिरावत राहय। कातिक ल अपन अंगना म देखके रमजान सेठ के घला खुसी के मारे बक्का नइ फूटत राहय। रमजान सेठ ह दऊंड़ के अपन मितान ल पोटार लिस। आज कई बच्छर के बाद दूनों मितान जी भर के रोइस। फेर दूनों मितान मिलके अपन बेटी अऊ दमांद ल बिदा करीन। मोर कहानी पुरगे दार भात चुरगे।
रीझे यादव
ग्राम टेंगनाबासा
तहसील छुरा