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गोठ बात

सिक्छक सिखही तभे सिखाही

हमन नान्हेंपन ले पढ़त आवत हन के सिक्छक हा मोमबत्ती कस होथे जेन हा खुद जर के, खुद खुवार हो के दुसर ला अंजोर देथे। ए बात सोलाआना सिरतोन हरय के सिक्छक हा अपन आप ला परहित मा निछावर करइया जीव हरय। जिनगी भर सरलग सिखइया हा ही सिरतोन मा सिक्छक आय। सिखथे अउ सिखोथे अपन बिद्यार्थी मन ला अइसन सिक्छक मन हा। अपन सोच ला, बिचार ला समे के संगे संग सुधारत रहँय, सवाँरत रहय उही सिक्छक हा एक सफल सिक्छक कहाथे। सिक्छक सिखे के सरी उदिम ला अपन हित मा साधथे अउ परहित मा लगाथे। सिखे के नवा-नवा उदिम ले कोनो प्रकार के कोनो बिरोध नइ करँय उही सच्छा अउ अच्छा सिक्छक कहाथे। सिक्छक के सोच अउ सिखोना हा वोला समाज मा इस्थापित कराके मान-गउन भरपुरहा देवाथे। सिक्छक के एकठन मतलब सिखना अउ सिखाना घलाव होथे। सिखे बर सिक्छक ला पढ़े ला परही अउ पढ़त-पढ़त आगू बढ़हे ला परही। जौन हा पहिली खुदेच पढ़ही तौनेच हा पढ़ाही अउ नइ पढ़ही तेन मन हा मुड़ी ला खजुवाही। सबले सरेस्ठ सिस्य उही हरय जउन हा काबर अउ कइसे अपन सरी सवाल मा समोथे। हुँकरवा कस आँखी कान ला मून्द मुड़ डोलवा लइका कभूच सरेस्ठ सिस्य, सरेस्ठ बिद्यार्थी नइ बन सकय। सुनइया, गुनइया अउ पुछइया हर एक बने चेतलगहा पढ़हन्ता अउ गुणवन्ता लइका लहुटथे। जब तक मन मा संतोष नइ होवय तब तक काबर अउ कइसे कहइया हा अड़बड़ आगू जाथे। कोन्दा-बउला कस मुड़ डोलवा हा पाछू डहर धारे धार बोहाथे। इही प्रकार सिक्छक मन हा घलाव होथे उही सिक्छक हा अपन बिद्यार्थी मन के हितवा अउ संगवार होथे जौन हा इँखर मन के सरी सवाल के संतोषप्रद जवाब देथे। सरी सवाल के सहीं-सहीं जवाब देवइया सिक्छक ला सबो सहँराथे। किस्सा-कंथली मा समे कटइया सिक्छक हा पीठ पाछू गारी खाथे। अइसन सिक्छक मन हा गुरु नहीं गरु होथे समाज मा। मोर कहे के मतलब हे के जउन सिक्छक सिख नइ सकय तउन हा कइसे सिखाही। सिखे बर पढ़े ला परथे अउ जउन पढ़ही तेनेच हा पढ़ा पाही। जउन खुद नइ पढ़य, नइ सिखय तेन हा का पढ़ाही का सिखाही?



विद्या हा विनय सिखाथे अउ जेमा विनय नइ हे तेन हा का पढ़ही अउ कोनो ला का पढ़ाही। खुरसी मा बइठते साठ बइठइया हा सर्वज्ञानी हो जाथे। इहाँ खुरसी मा बइठइया मन हा हरदी के एक गाँठ पाय मुसुवा बरोबर हो जाथे जौन अप आप ला दुकादार समझथे। गरब अउ गुमान के रथ मा झप ले सवार हो जाथे। खुरसी के नसा मा, खुरसी के मोह मा अइसे अँधरा हो जाथें के अपन हित अउ अहित काँही हा नइ दिखय ना सुझय। ना कुछू सुनय ना कुछू गुनय। एखर पाछू आज के सिक्छा बेवसथा हा जिमेदार हावय। आज के बजारवाद संस्कृति हा सबले जादा दोसी हावय। आज हमन देखत हन सुनत हन के बड़े-बड़े डिगरी पाये बर अब पछीना बोहाय ला थोरको नइ लागय। आजकाल घर बइठे मनमरजी डिगरी मनचाहे नम्बर मा मिल जाथे। जगा-जगा कुकुरमुत्ता कस बड़े-बड़े विश्वविद्यालय खुलत जावत हे जउन मन हा बिन हाजिरी के सत प्रतिशत नंबर के संग मा अव्वल दरजा ले पास होय के गारण्टी देथें। आजकल अइसन-अइसन काँलेज अउ इस्कूल खुले हे जेमा कक्ष अउ कक्षा के कोनो जरुरत नइ रहय। अइसन इस्कूल काँलेज मा पढ़इया लइकामन के नउकरी चट्टे लगथे। सिक्छा विभाग हा अइसन सिक्छा के दुकान मन के जाँच करे ला अपन समे अउ धन के बरबादी समझथे। सिक्छा विभाग हा गीता के मूल मंत्र ला मानथे के -जउन होगे अच्छा हे, जउन होवत हे तेनो अच्छा हे अउ जउन हो ही वोहू हा अच्छच होही। अइसन सोनहा समे मा कोनो हा पढ़हे अउ पढ़ाय मा अपन बखत ला बरबाद करहीं। घर बइठे सरी डिगरी मिलत हे ता आज जाँगर के टुटत ले कोन हा अउ काबर पढ़ही।

समाज मा एक सच्चा अउ समर्थ सिक्छक के इस्थान हा भगवान ले बढ़के हे कहत हँव ता ये हा कोनो उपराहा गोठ नो हे। अइसन दरजा पाये बर, नाँव कमाये बर एक सिक्छक ला जिनगी भर सिखे अउ सिखाये ला परथे। खुदेच पढ़हे अउ फेर पढ़ाय ला परथे। हमर गुरुजी हा रोजिना रतिहा बेरा दु-चार घंटा अकेल्ला स्वाध्याय करय फेर बिहनिया इस्कूल मा आके वो ही ला पढ़ाय। रतिहा मंथन करय अउ बिहनिया इस्कूल मा वोला समझाय बताय। लइकामन कोती ले अवइया सवाल के अंताज लगा के ओखर जवाब तियार करके हमर गुरुजी पहिली ले राखे रहय। कक्षा मा गुरुजी स्वाध्याय ले नवा आत्मविश्वास अउ उरजा ले भरे दिखय। आजकाल अइसन स्वाध्यायी सिक्छक खोजे मा नइ मिलय। महिनती अउ समरपित सिक्छक अब कहाँ पाबे। आजकाल के सिक्छक इस्कूल के सहीं समे मा अपन इस्कूल हबर जाय इही बहुते बड़े बात हे। इस्कूल मा छै: घण्टा के समे कइसे काटना हे एखर संसो मा कतको झन सिक्छक मा दुबरा जाथे। अपन बिद्यार्थी मन के आदर्श बने के जगा मा बहुत झन सिक्छक मन हा नसा अउ फेसन के दास बनत जावत हे। मोबाइल मा मन ला रमावत हें। आज सिक्छक अपन असल कर्तव्य सिखना अउ सिखाना ला भुलावत जावत हे। मन मस्तिस्क हा चिंतन अउ मनन ले दुरिहा भागत हे। सोच अउ समझ के बिकास बर आज के सिक्छक मन अपन आप ला समरपित करे बर ढेरियावत हें। परिवरतन बर आज के सिक्छक मन हा अपन आप ला तियार नइ कर पावत हें। आज के नवा पीढ़ी मा जोस जादा हे फेर होस कमती हावय तइसे लागथे। सिक्छक आज अपन कर्तव्य सिरिफ इस्कूल मा छै: घण्टा डिपटी बजाना भर हरय अइसे मान के चलत हावय। समाज मा सिक्छक के अचार-बिचार अउ बेवहार के चोबीस घण्टा देख-परख होवत रथे। समाज के प्रति सबले संवेदनशील परानी सिक्छक हा होथे। सिक्छक ले समाज हा सीधा प्रभावित होथे। समाज के दरपन अउ सबके हित करइया साहित्य ले घलाव आज सिक्छक भागत हावय। समाज, साहित्य अउ सिक्छक इही तीनों गियान के तिरबेनी हरय जेमा बुड़े ले मनखे के उद्धार खच्चित होथे। अपन इस्कूल अउ समाज बर ओखर सिक्छक हा एक आदर्श होथे। सिक्छक मन के रेंगना, उठना, बइठना, पहिरना, ओढ़ना, गोठ-बात, आदत-बेवहार अउ सरी गुन-अवगुन के लइकामन हा नकल करथे, अनुकरन करथे। सिक्छक के मान-सम्मान ओखर अपने हाँथ मा हवय। सिक्छक के मान-गउन के घट-बड़ मा समाज हा जिमेदार नइ होवय। अपन मान-अपमान के सिक्छक स्वयं जवाबदार होथे।

आज सिक्छा हा बैपार होगे हे। अइसन बैपार जेमा कभू कोनो घाटा अउ मन्दी के नाँव नइ हे।अब सिक्छा सिरिफ साक्छरता ला बढ़ाय बर देवत हे सरकार हे अइसे लागथे।आजकाल के सिक्छा मा नैतिक मूल्य अउ जीवन जीये के कोनो सोच-विचार नइ हे। अजादी के बाद ले आज तक सिरिफ गरब-गुमान हा सुरसा सरीक बाढ़त हे, गियान हा गवाँवत हे, नंदावत हे। सिक्छा मा स्वाध्याय के जगा सिरावत जावत हे। सिक्छा सोन के पिंजरा बैठे मिट्ठू बन गे हे जेखर बुता सिरिफ रटना हे। सरी किताब, कुन्जी, गाइड ले सिरिफ “तोता रटंत” तियार करे के एकठन सोचे समझे उदिम चलत हावय। रटे-रटाये गियान ना इस्थायी होवय ना मनखे के जिनगी मा कोनो काम नइ आवय। अइसन गियान हा कखरो काँहीं भला नइ कर सकय। अइसन तोता रटंत विद्या हा समाज के का हित करही? अइसन मिट्ठू गियान ले, सिक्छा ले आज समाज मा मनखे अकेल्ला अउ मतलबिया बनत जावत हे। अलाल अउ अल्लर बनत हे। खोज, शोध, नवा गियान, परिवरतन अउ बिगियान ले आगू अघवाय के सरी इच्छा रटे-रटाय गियान ले कभुच नइ मिल सकय। अइसन गियान बिन सिक्छा के एकेठन कारन हे- नैतिक सिक्छा के बड़भारी कमी। नैतिक मूल्य के गियान ला हम भुलावत जावत हावन। बिन नैतिक मूल्य के सिक्छा ले आज समाज मा मनखे अनैतिक होवत जावत हे। जिनगी के नेंव नैतिक गियान हा हरय अउ इही ला छोड़के हमन अपन सपना के महल बनावत हन। का बिन नेंव के कोनो महल टिक पाही? बिन नैतिक मूल्य के जिनगी हा बिन नून के साग जइसे, बिन शक्कर के खीर जइसे होथे। सिक्छा के रीति-नीति कइसनो रहय फेर कम से कम स्वाध्याय ला नइ छोड़ना चाही। खासकरके सिक्छक ला तो कभूच नइ स्वाध्याय ला नइ छोड़ना चाही, नवा-नवा गियान, गोठ-बात ला सिखते रहना चाही। संगे संग अपन सद विचार ले सिक्छक ला समाज मा अगियान के अँधियार ला हरे के सरी उदिम करते रहना चाही। सिक्छक जतके जादा पढ़ही अपन कर्तव्य के बोध जादा कर पाही। समाज मा सिक्छक अपन गियान के अधार मा इस्थापित हो पाही। ए सबो जीनिस हा सिक्छक के अपने अपन सरलग पढ़े लिखे ले हो पाही। स्वाध्याय हा सफलता के सोनहा सरगनिसैनी हरय। कोनो अप्पढ़ नेता मन के तरपौरी चाँटे ले , ओखर आगू-पाछू फिरे ले, जी हुजुरी करे ले सिक्छक के मान-गउन समाज मा कभूच नइ बाढ़य। आजकाल के सिक्छक मन हा नेता मन के पीछलगवा होवत हें। सत्ता अउ सत्ताधारी मन के चाकरी बजाय मा सिक्छक जादा सिक्छित होवत हें। अपन गरिमा ला अइसन करके सिक्छक खुदेच गवाँवत हे। एखर ले पतन अउ का होही के सिक्छक अपन सम्मान करवाय बर सिक्छक दिवस के दिन अपन खरचा ले कार्यक्रम करवाथे। अइसन कार्यक्रम मा कोनो नेता ला बला के, ओखर अगोरा मा उँघा-उँघा के सिक्छक दिवस के मान ला माटी मा मिलाय के सरी उदिम करे मा सिक्छक हा संघरथे। जानबुच के देरी ले अवइया नेता के सिक्छक मन हा पाँव छू-छू के पयलगी करके सिक्छक दिवस के सारथाकता के सतियानास कर डारथे। अपन मान-मरजाद ला बेच के, नाँक ला ऊँच करके नेता मन के अगुवानी करथें। अपन अंतस के अवाज ला कभूच नइ सुनँय अइसन सिक्छक मन हा पढ़े अउ पढ़ाय के पराक्रम, पुरुषार्थ ले दुरिहा भगइया सिक्छक मन हा अपन ले कम पढ़े लिखे नेता मन के देहरी मा हाजिरी लगाथें।



समाज अउ देश के प्रभाव हा सिक्छक के उपर अउ सिक्छक के प्रभाव समाज अउ देश उपर सिरतोन परथे। हमर देश के धरमनिरपेक्षता के रीति-नीति हा आज समाज अउ सिक्छक के उपर परथे। धरमनिरपेक्षता हा देश मा आज जन-जन के जिनगी ला “धरम” ला निकाल के बाहिर फटिक दे हावय। धरम के बिन मनखे करमहीन होवत जावत हे। एखर प्रभाव ले सबले जादा प्रभावित समाज मा सिक्छक हा हावय। आज सिक्छक अपन विद्यार्थी मन के घलाव बड़ा अधरमी अउ मरजाद ले बाहिर बेवहार करे ला धर ले हावँय। अइसन सिक्छक मन हा “गियान के घुन” बरोबर बुता करत हें। इँखर अइसन करम ले समाज अगियान के अँधियार मा समावत जावत हावय। जीयँत जागत सिक्छा बर सिक्छक ला पहिली देश अउ समाज बर सोच अउ समझ के संग बेवहार करे ला परही। लइकामन के आदर्श सिक्छक बने बर तियाग अउ तपसिया के रद्दा मा रेंगे ला परही। सिक्छक के आदर्श बने ले समाज मा रहइया जम्मो जन-जन के अपन-अपन करम ला अपन धरम मान के बेवहार करहीं। अइसे नहीं के आज समाज अउ देश मा सबो सिक्छक समरपित नइ हे, कर्तव्य निस्ठ नइ हे। आज घलो अपन सोच अउ समझ ले समाज के हितवा सिक्छक हावय। अइसन सरेस्ठ सिक्छक मन ला मोर अंतस ले घेरी बेरी पयलगी हे, नमन हे, अभिनंदन हे। फेर संसो घलाव हे के देशकाल अउ बजारवाद ले प्रभावित होवत सिक्छक मन बर समाज मा गिरत सिक्छक के मान ले। सिक्छक गियान के अंजोर बगराय बर खुद दीया कस जलइया जीव हरय फेर आज ए दीया मा संगियान अउ स्वाध्याय के बाती अउ मेहनत के तेल सिरावत हे। अगियान के अँधियारी बाढ़त हे। सिक्छक कभू गियान के पुजारी अउ पराक्रम करइया होवय अउ आज समे के रंग मा रंग के अपन कर्तव्य ले आँखी मूँदत हे। आँखी उघारे के बखत अभी बीते नइ हे। सिक्छक ला समाज मा अपन मान-गउन ला फेर ऊँच करे बर अपन गियान के धार मा चढ़े मुरचा ला माँजे ला परही। सिक्छक ला गियान के धार ला सरलग माँजे बर, चमकाय बर सरलग सिखे के नवा-नवा उदिम करेच ला परही। बिन सिखे, बिन पढ़े सिक्छक का सिखाही अउ का पढ़ाही। सरलग पढ़ही तेनेच हा सर-सर पढ़ाही। ठहराव ले जिनगी थम जाथे। माढ़े पानी हा सरथे, बास मारथे अउ बोहावत पानी जिनगी सँवारथे।

कन्हैया साहू “अमित
परशुराम वार्ड-भाटापारा (छ.ग)
संपर्क~9753322055
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