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व्यंग्य

कलजुग केवल नाम अधारा : व्‍यंग्‍य

परन दिन के बात हरे जीराखन कका ह बडे बिहाने ले उठ के मोर कना आइस अउ पूछिस-कस रे बाबू! अब अधार बिना हमर जिनगी निराधार होगे का?
में ह पूछेंव-का होगे कका? काबर राम-राम के बेरा ले बिगडाहा पंखा बरोबर बाजत हस गा? फेर कनो परसानी आगे का?
मोर गोठ ल सुनके वोहा बताइस-हलाकानी ह तो हमर हांथ के रेख म लिखाय हे बेटा! हमन किसनहा हरन न।फेर अभी हम सरकार के आनी-बानी नियम के मारे थर्रा गेहन जी। काली के बात हरे बेटा!, तोर काकी के तबियत थोरकिन बिगड गे बेटा! ओला असपताल म देखाय बर लेगेंव त उंहा डाक्टर ह आनी-बानी के जांच कराय बर किहिस।में ह पांच सौ रूपिया नगदी अउ पासबुक ल घलो धरके गे रेहेंव। डाक्टर के लिखे रकम-रकम के जांच म जम्मो पैसा ह उरक गे। डाक्टर ल दे बर घलो एको पैसा नी बांचिस।में ह तुरते तोर काकी ल अस्पताल म भरती कराके बेंक में लाइन लगायेंव। एक घंटा बाद मोर नंबर आइस त बेंक के साहब ह मोला पैसा नी मिल सके कहिदिस।
में अकबकागेंव। बेरा कुबेरा काम आही किके हमर परधानमंतरी के बात ल मान के हम उंहा खाता खोलवा के पैसा ल जमा कर दे रेहेन गा!साहब के गोठ ल सुनके हमर नारी जुडागे। हम ओला तुरते पूछेन-का मोर खाता के पैसा ह सिरागे हे साहब?
ओहा बताइस-तोर खाता में पैसा हाबे। फेर तोर खाता ह ऊप्पर से अभी बंद होगे हे। केवायसी जमा कर देबे ताहने फेर तोर खाता ह खुल जाही।
में ह फेर पूछेंव-का जती केहेव साहब! कते दूकान म मिलही! बने फोर के बतावव भई! हमर असन अढहा ह नी समझ सकन।
वो साहब घलो देवता बरोबर रिहिस बिचारा ह। नीते हम कतको साहब देखे हन जे हा एक ले दू पूछबे तेमा चबराहा कुकुर बरोबर हबकथे। ओहा बताइस-इंहा ले एक ठ फारम ले जा।ओमा तोर नाम-गाम के जानकारी भरके तोर फोटू चपका देबे अउ अधार कारड के फोटूकापी संग जमा कर देबे। अउ तुरते मोला एक ठ फारम अपन चपरासी कना मंगवा के दे दिस।



में ह साहब ल फेर पूछेंव-पाछू घनी तो घलो अधार कारड ल जमा करे रेहेंव साहब!
ओहा फेर बताइस-पाछू घनी तोर खाता में अधार नंबर ल लिंक करे बर अधार मांगे रेहेन बबा।
जादा पूछे ले कहुं बगिया जही बिया ह! त काम बिगड जाही किके में ह साहब ल जोहार करके निकलेंव अउ सिद्धा जगमोहन सेठ के दुकान म जाके ओकर कना ले पैसा मांगके डाक्टर ल पैसा देयेंव। तब घर आयेंव। अब तिंही बता बेटा! तोरे पैसा ह जब तोला नी मिलही त रिस नी लागही जी।
में ह ओला केहेंव-अब हलाकानी तो हाबे कका। फेर का करबे सरकार के नियम ल तो मानेच ल परही।
हमर चर्चा ह चलते रिहिस तइसने बेरा म मानकू भैया ह घलो उही मेरन आगे। जय-जोहार करे के बाद वोहा पूछिस-का बात के जबर चर्चा माते हे गा? बडे बिहनिया ले!
में ह जीराखन कका के जम्मो हलाकानी ल ओला बतायेंव त ओहा कथे-सिरतोन म बड मुडपीडवा बुता होगे हे जी ये अधार कारड के चक्कर ह। मोर छोटे टुरा ह कालीचे काहत रिहिसे गुरजी मन ओकर अधार कारड के फोटूकापी मंगाये हे नीते ओला मंझनिया बेरा के इसकूल वाला जेवन नी मिले। अब बता भला! नान्हे लइका मन के जेवन बर घलो अधार जरूरी होगे हे।
हमर तीनों के चर्चा चलते रिहिसे तभे दंतवन घसरत मांहगू महराज उही कोती ले नाहकिस।हमन ल देखिस ताहने वहू पूछिस-काबर सकलाय हव जी? कोनो कथा-पूजा करवाय बर बिचारत हव का? धुन काकरो गिरहा टोरना हे। मोला नहाके आवन दे।सबो कारज ल निपटा दूहूं।अब महराज आगू म आइस त ओकर पैलगी करके ओला हमर हलाकानी ल बतायेन।
ओहा अपन मुखारी ल थोरिक बिसराम देके हमन ल बताइस-एमा का नवा बात हे बेटा? हमर गियानी अउ अगमजानी संत-महात्मा मन तो पहिलीच ले एकर भविसवानी कर दे रिहिस जी।
मोला बड अचरित लागिस महराज के गोठ ह त ओला पूछेंव-का भविसवानी करे हे महराज? थोरिक फोर के बतावव भई!
जीराखन कका अउ मानकू भैया ह घलो मोर हुंकारू भरत बइला बरोबर अपन मुडी ल हला दिस। त महाराज ह मोला कथे-देख बाबू! तुमन आज के नवा लइका हरो जी। मिसकाल अउ मुबाइल के गोठ के सिवा तुमन ल दूसर बुता नी उसरे।कभू पोथी-पुरान कोती घलो धियान दे करव बेटा!रात-दिन मुबाइल म आंखी ल झन गडाय रेहे करव।
महराज के गोठ ल सुनके कका अउ भैया ह मुचमुचाए ल धरलिस। ताहने महराज फेर ओरयाइस-रामचरितमानस म तुलसीदास बबा ह कतेक पहिली लिख के बता देहे-



कलजुग केवल नाम अधारा।
सुमिर सुमिर नर उतरही पारा।।
माने कलजुग में सिरिफ अधार के भरोसा म काम होही।जानेव जी!!
हमन पंडित जी के पांव म माथ नवा के ओला ओकर ले बिदा करेन ताहने बिसाहू कका तको संघरगे।वहू ह अपन दुख बतावत रोवत राहय-खेत-खार के परचा म अधार लिंक कराव,रासन कारड ल अधार लिंक कराव,बेंक खाता ल अधार लिंक कराव, बीमा उमा होही त वहू ल अधार लिंक कराव, अउ ते अउ एक बिता के मुबाइल म घलो गोठियाना हे त वहू ल अधार कारड म लिंक कराना हे! को जनी का का ल अधार लिंक कराबोन ते ददा! हख खागेन जी!!
ए अधार के चक्कर म एक झन गरीबिन के लइका ह तको समे म रासन नी मिले के सेती परान तियाग दिस किके घलो पेपर म पढे हंव जी।मोला समझ नी आवत हे कि सरकार ह हमर सुभित्ता बर अधार बनाय हे धुन हलाकान करे बर ते?
आनी-बानी के स्कीम बनावत हे सरकार ह बेइमान मन ल धरे बर! फेर ओमन ह बोचक जावत हे अउ ईमानदार ह पेरावत हे।
हमन ओकर हां म हां मिलावत अपन चर्चा म मगन रेहेन तइसने बेरा म समारू भैया ह भन्नावत आके पूछथे-कोनो ह गोदनावाली ल देखे हव कि जी?
हमन नहीं किके बतायेन अउ ओला पूछेंव-काबर भैया? अपन बांहा म शेर छपवा के सिंघम बनबे का जी?
ओहा मोला रिस म देखत किथे-तोला ठट्ठा उसरे हे जी। हम हलाकान हन जगा जगा अधार कारड के फोटूकापी देवई म। अपन माथा में अधार नंबर ल गोदवाहुं काहत हों। बनही ना!!
ओकर रिस ल देखके जम्मो झन ओ कना ले कलेचुप खसक देन।

रीझे यादव
टेंगनाबासा (छुरा)
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