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कहानी

सोलह सिनगार

सावन के महिना ल, सहराती महिला मन, बछर भर अगोरय। रंग रंग के पहिर ओढ़ के चटक मटक किंजरय। एक बछर, सावन म, महिला मन बर, नावा किसिम के परतियोगिता राखीस – जे महिला, सावन भर, सोलह सिनगार ले, सजे धजे रहि तेला, सावन के आखिरी दिन, भारी पुरूसकार देके सममानित करे जाही। सिनगार के नाव, कतको उमड़गे। तरी उप्पर गहना जेवर बनवा डरीन। नावा नावा फेसन के लुगरा लाद डरीन। सेंट के सीसी के खपत बाढगे। सावन के आखिरी म, बहुत बड़े जलसा राखे गीस, बिजेता ला, सममान समेत इसटेज म बलाये गीस। ओकर सममान म हरेक महिला उठ के थपड़ी पीटे लागीस। सबले पीछू म बइठे रहय बपरी हा …..जइसे जइसे इसटेज कोती जावत गीस, जेकर लइन ले पार होवय तिही मन, मुहुं ला फार देवय अऊ थपड़ी पिटई बंद कर देवय। इसटेज के चढ़त ले, पदाधिकारी अऊ निरनायक छोंड़, थपड़ी पिटइया कनहो नी बाचीस। बिसवास नी होइस के, सधारन महिला, अतेक बड़ परतियोगिता के बिजेता आय। हरइया महिला मन म, बिरोध उपजगे। बड़े बड़े घर के महिला मन, नराजगी जतावत, इसटेज म चइघे के परयास करीन। फइसला के बिरोध म, नाराबाजी सुरू होगे। पदाधिकारी मन, बिरोध करइया मनला एकेक करके, मंच म बला के अपन बात रखे के मउका अऊ अपन सवाल के उत्तर देबर किहीन।
भड़ास निकाले बर लइन लगगे। पहिलीच महिला चइघतेच साठ माइक तीर पहुंचगे। ओ माईलोगिन कुछु कतीस तेकर पहिली, महिला मनडल के अधियकछा अपन सवाल के जवाब मांगिस। ओला तीर म बलाके किहीस – तैं दिखत तो बड़ खबसूरत हस बहिनी, पहिरे ओढ़हे घला बने हस फेर देखा तोर हाथ ला …..। जइसे देखइस .. …। जम्मो पदाधिकारी मन, मने मन मुसकियाये लागीन। चमचम चमकत नखपालीस के तरी म खादा खादा मइल ……। कान म ठेठा गोंजाये रहय। बोलत रहय त, दुरगंध म, नाक दे नी जावत रहय। ओला किथे – पहिली सिंगार देहें के सफई आय बहिनी, उही निये अऊ सुनदरता के दावा करथस या…..। तोला जे बोलना हे बोल, तहन तोर बात के, उत्तर देबो। बिगन बोले, कलेचुप उतरगे ओहा।
दूसर मईलोगिन ओकरो ले जादा सुनदर बाजर फेर एकदमेच सफैतिन। कुछु बोले के पहिली हांफे लागीस। सोफा लानके बइठे बर किहीस तब वो मईलोगिन, सोफा उठाये बर चुकता मना कर दीस। ओ बतइस के, डाकटर बजन उठाये बर मना करे हे। ओमन पूछीन, तब ओ बतइस के, घर के एक कनी बूता नी कर सकंव, हफरासी लागथे। एक झिन निरनायक ओकर कान म फुसफुसइस – तबीयत ठीक रखना सिंगार के दूसर चरन आय। तोला कुछ कहना हे त, येले माइक। वहू बिगन हुंक्के भुंक्के उतरगे।
मंच म चइघे के आगू, कतको झिन बात ला समझे धर लीन। पोल खुले के डर म, हिम्मत जवाब दे लगीस अऊ चुपचाप खसके धरीन। एक झिन मईलोगिन पाछू डहर ले दमर दमर रेंगत चइघे लागीस। ओला पूछीस – तोर उमर कतका, तोर देंहे के उंचई कतका अऊ तोर बजन कतका। तीनो के माप एक दूसर ले बिलकुलेच मेच नी होवत रहय। थोथना के हिसाब ले नान नान आंखी, देहें के हिसाब ले बड़े जिनीस गोड़, माने पूरा देहें बेडौल। उंचई से बहुतेच जादा बजन। देंहे म एक कनीक सुनदरता नी रिहीस। निरनायक मन अऊ कुछ कतीस अऊ ओला माइक ला धरातीस तेकर पहिलीच जइसे चइघे रिहीस, तइसनेच उतरगे।
आगू म ठाढ़हे मईलोगिन मार घुस्सा के, कनिहा म लुगरा लपेट, सरपट चइघीस। माइक नंगा के कुछु कहितीस तेकर पहिली, माइक उदुप ले बंद होगे। परेम ले बुला के, आयोजक मन ओला समझाइन, तभो ले, बड़बड़ातेच रिहीस। निरनायक, किहीस के, महिला के चउथा सिंगार ओकर शील आय। तोर म कतका शील हे तिहीं देख या जनता ला बतावंव अऊ फइसला करन दंव, माइक चालू होगे, निरनायक के समरथन म बड़ थपड़ी बाजिस। बखानत, अपन कस मुहु करके उतरगे यहू मईलोगिन।
कतको परतिभागी मन के, कुछु केहे के सकती सिराये लागीस। अपन कमी देख, अपन खुरसी ला वापिस पोगराये धर लीन। एक झिन एकदमेच जवनहिन, मंच म चइघे धरीस। नौ हाथ लुगरा तभो देहें उघरा ….न लाज के, न बीज के। ओहा कुछु कहितीस तेकर पहिली दरसक मन ओकर अस हूटिंग करीस के चघे नी सकीस। निरनायक किथे – लज्जा हमर नारी जीवन के पांचवा सिनगार आय।
चुटुक ले सजे धजे अगला परतिभागी मईलोगिन मंच म जाय बर धरीस, तइसना मे उही तीर के रहवइया मन, केहे लागीन, ये काये बोलही, अबड़ चरचरहीन आय…..। परेम से गोठियाबे अऊ पूछबे, तभो चरर चरर कस जवाब देथे….। साउंड सिसटम अइसे लगे रहय, मंच तक इंकर अवाज पहुंचगे। यहू मईलोगिन, उही करा ले गोल होगे। मधुर बानी छठंवा सिनगार आय, मंच ले घोसना होइस।
एक ला छोड़य, दूसर ला धरय। कभू एकर तनी रहय, कभू ओकर तनी। सुभाव म दिढ़ता बिलकुलेच नी रिहीस। मंच तक पहुंचगे। फेर अपन बात ला रख नी सकीस। दिढ़ता, सातवां सिनगार आय। सननाटा के बीच एक झिन चइघिस। परस्न अइस – तोर सास संग म काबर नी रहय नोनी ? परोसी मन तोर संग काबर नी बोलय ? कहींच जुवाब नी रिहीस ….चुपचाप उतरगे। उतरत उतरत जनता के अवाज जरूर सुनई दीस के, कठोर सुभाव के महिला ला कोन भाही। सरल सुभाव ला सिनगार के आठंवा इसटेज बतइन।
सब ठीक रहय फेर, ओकर आचरन म पवितरता नी रिहीस, तेकर सेती, चइघेच के हिम्मत नी करीस मईलोगिन हा। आचरन के पवितरता महिला के नवमा सिनगार आय, मंच ले घोसना होइस। मंच म चइघगे। फेर का कहय ? धीरलगहा एक झिन पूछीस – तोर आदमी कतका कमाथे या नोनी ? ओ किथे – कमई धमइ म ठिकाना निही। नाव के इन्जीनियर। जतका कमाथे तेमा घर नी चलय। तभो ले कतका कमाथे …? वो किथे – सत्तर अस्सी हजार महिना मिल जथे, अऊ ….। सुनइया मन मुहुं फार दीन, अई….. अतेक म सनतोस निये। गलती ले, कमई बता पारीस, अऊ कुछु झिन निकले मुहु ले, सुटुर सुटुर उतरगे। इही सनतोस दसवां सिनगार आय बहिनी, तरी ले अवाज अइस।
चइघिस त ओला पूछथे – तोर काम वाली के, के झिन लोग लइका हे मेडम ? मेडम किथे – एके झिन रिहीसे, तहू ओदिन मरगे किथे। एक झिन किथे – काबर मरीस तेला तैं जानथस ….? मेडम चुपे रिहीस। निरनायक किथे – पनदरा बछर ले बूता करइया बई ला, समय मा, पइसा अऊ अपन गाड़ी के मदद कर देतेस ते, ओ लइका के जिनगी, बांच जतीस। तैं मदद छोंड़, अपन एकलऊता के जनमदिन बर, कामवाली ला धमका के आगेस के, मोर घर काम बहुत हे, नी आबे ते, कल से तोर छुट्टी। पेट खातिर, तोर सेवा म तोर काम वाली, अपन लइका, गंवा डरीस। तोला एक कनीक दया नी लागीस। सब झिन थुवा थुवा करीन। हमर गियारहवां सिनगार के नाव दया आय बहिनी……, मंच ले घोसना होवत रहय।
गलती काकर ले नी होवय। फेर विनमरता पूरवक छमा मांग लेना सोला सिनगार के बारहंवा कड़ी आय। चोरी उप्पर सीनाजोरी करइया मईलोगिन, मंच म चइघ तो गे फेर, कुछु कहे के पहिली बड़े जिनीस पोसटर म नजर परगे। ओमा लिखाये रहय विनमरता महिला के सिंगार आय। कलेचुप उतरगे यहू।
चइघत बेरा, एक झिन लइका के गोड़ म, ओकर लुगरा सनागे। नानुक लइका ला, कस के, एक रहपट जमा दीस। ओकर दिमाग खराब होगे। बिगन चइघे लहुंटगे। छमा तेरहंवा सिनगार आय।
सिरीफ दू झिन बांचे रहय। बहुतेच नामी समाजसेवी रिहीस। असपताल, धरमसाला बनवावय अऊ गरीब मनला सुभित्ता देवय। दिखम म घला बड़ सुंदर। आदत बेवहार म घला बहुतेच बढ़िया। ओकर समरथन म भारी थपड़ी बाजीस। बहुतेच लोकपिरीय। एक परस्न अइस – तोर सास ससुर मन कतिंहा रहिथे बेटी। परतिभागी मन जेकर खड़े होवय, ते करा लाई डिटेक्टर लगे रहय, लबारी नी मार सकय। ओ किथे – मोला ऊंकर मन के सेवा करइ नी भावय, तेकर सेती ओमन ला बिरिद्धा आसरम म डार दे हाबों। ओकर समरथन म थपड़ी पिटइया मन, चिल्ला चिल्ला के केहे लागीन के, जे अपन बड़े बुजुर्ग के सेवा नी कर सकय ते महिला तीर काये गुन…. उतारो येला………। अपन बुजुर्ग के सेवा चौदहंवा सिनगार आय।
एक झिन बांचे रहय। सब गुन म पूरा नमबर पाये रहय। फेर जइसे, ओकर नमबर सीट, ओकर हाथ म अइस, बिगन कुछ केहे उतरे लागीस। दरसक मन जानना चाहीस। मंच ले बताये गीस के, ये लड़की म कहींच कमी निये, फेर एक गुन हईच निये। सब झिन पूछीन – का ? उत्तर मिलीस – ये लड़की म पनदरवां सिनगार, पतिबरता के गुन निये। थुआ थुआ झिन करय कहिके, तुरते बतइस के, ये लड़की के बिहावेच नी होये हे, त पतिबरता के गुन कइसे आही। ये सरी सिंगार, बिहाता बर आय, कुंवारी बर नोहे।
दरसक मन किथे – अभू सिरीफ पनदरहा सिनगार होहे, सोलहवां काये ? मुखिया निरनायक किथे – जेला आम महिला हमेसा धारन करथे तिही, सोलहंवा सिनगार आय। इही सोलहंवा सिनगार ला हमन सोलह सिनगार समझ लेथन। फोर के बतावव, फोर के …. तरी ले अवाज अइस। वो बतइस – साफ सुघ्घर सलीका ले पहिरे कपड़ा, मांग भर सिनदूर अऊ बांहा भर चूरी, छुनुर छुनुर करत गोड़ म सांटी, नाक म फुल्ली, कान म खिनवा अऊ टोंटा म मनगल सूत्र पहिरना, सोलहंवा सिंगार आय। बिजेता माईलोगिन के जम्मो गुन के बखान करत किहीस के, न सिरीफ सावन म, बलकी बछर भर, येहा, इही गुन म, सजे रहिथे।
बिजेता ला सम्मानित करत जलसा के, मई पहुना गरब के अनुभौ करत किहीस – सोलह सिंगार देखाये के नोहे, ओहा आचरन अऊ बेवहार के बिसे आय। जइसे साफ सफई, सुवास्थ अऊ सुनदरता हा सरीर के सिंगार आय, तइसने शील, लज्जा, मधुरबानी, दिढ़ता, सरल सुभाव, पवितरता, सनतोस, दयालुता, बिनय, छमा, बड़े मन के सेवा, अऊ पतिबरता हा, मन, आचरन अऊ हिरदे के सिंगार आय। इही सोलह सिंगार म, जे महिला एक महिना सजे धजे किंजरही, तेकर बर ये गुन आदत बन जही, अऊ तब वो माईलोगिन बर, बारों महिना सावन ……अइसने माईलोगिन हमर देस म पूजनीय अऊ सममानित होथे …..। कतको के हाथ ले थपड़ी, कतको के आंखी ले झरत आंसू, सावन कस बूंद अतरीस निही …..।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा