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आल्हा छंद

24 मई -जेठ दसमी : वीर आल्हा जयंती, आल्हा चालीसा (आल्हा छंद में)

जेठ महीना दसमी जनमे, आल्हा देवल पूत कहाय।
बन जसराज ददा गा सेउक, गढ़ चँदेल के हुकुम बजाय।~9

ददा लड़त जब सरग सिधारे,आल्हा होगे एक अनाथ।
दाई देवल परे अकेल्ला, राजा रानी देवँय साथ।~10

तीन महीना पाछू जनमे, बाप जुद्ध में जान गवाँय।
बीर बड़े छुट भाई आल्हा,ऊधम ऊदल नाँव धराय।~11

राजा परमल पोसय पालय, रानी मलिना राखय संग।
राजमहल मा खेंलँय खावँय, आल्हा ऊदल रहँय मतंग।~12

सिक्छा-दीक्छा होवय सँघरा, लालन-पालन पूत समान।
बड़े बहादुर बलखर बनगे, लागँय राजा के संतान।~13

बड़े लड़इया आल्हा ऊदल, जेंखर बल के पार न पाय।
रक्छक बन परमाल देव के, आल्हा ऊदल जान लुटाय।~14

आल्हा संगी सिधवा मितवा, नइहे चोला एको दाग।
थरथर कापँय कपटी खोड़िल,बैरी बर बड़ बिखहर नाग।~15

बन चँदेल राजा के सेउक, अपन हँथेरी राखँय प्रान।
*नित चँदेल हो चौगुन चाकर, दुनिया भर मा बाढ़य शान।~16

‘अमित’ महोबा के बलवंता, आल्हा आगू कोन सजोर।
बाढ़त नदियाँ पूरा पानी, पुन्नी कस चन्दा अंजोर।~17

झगरा माते बात-बात मा, मार काट अउ हाहाकार।
पोठ लहू के होरी होवय, पवन सहीं खड़कय तलवार।~18

काँही तो नइ भावय इनला, रास रंग अउ तीज तिहार।
फड़फड़ फरकय भक्कम भुजबल, रहँय जुद्ध बर बीर तियार।~19

सुते नींद नइ आवय दसना, बड़ बज्जर बलखर बलबीर।
लड़त-लड़त बीतय दिन रतिहा, दँय झट बैरी छाती चीर।~20

राजपाट राजा रज रक्छक, आल्हा नइ तो चिटिक अबेर।
कुकुर कोलिहा सौ का करहीं, आल्हा ऊदल बब्बर शेर।~21

सतरा बछर उमर मा होवय,आल्हा के शुभ लगन बिहाव।
नैनागढ़ नेपाली राजा, बेटी मछला संग हियाव।~22

राजकुमारी मछला जानय, जादू के जब्बर जर ग्यान।
नाँव सोनवा मछला जानव, रहय एक नइ इँखर समान।~23

बीर बहादुर बघवा बेटा, मछला आल्हा के संतान।
बाप कका कस बड़ बलवंता, इंदल बरवाना बलवान।~24

आल्हा के पराक्रम

राग रागिनी नइ तो भावय, राजमहल अब नइच सुहाय।
बोल बचन सुन महतारी के, बेटा बाघ मार घर लाय।~25

आज बाघ कल बैरी मारव, तब छतिया के दाह बुताय,
बिन अहेर के मैं नइ मानँव, दाई ताना इही सुनाय।~26

जेखर बेटा कायर निकले, महतारी रो-रो पछताय।
सुनव दुनों तुम आल्हा ऊदल, असल पूल जे बचन निभाय।~27

कुकुर बछर बारा बस जीयय, जीयय सोला साल सियार।
बरिस अठारा छत्री जीये, आगू के जिनगी बेकार।~28

मूँड़ टँगागे बाप कका के, माँडूगढ़ बर रुख के डार।
अधरतिया के अध बेरा मा, मूँड़ी बड़ पारय गोहार।~29

आवव आल्हा ऊदल आवव, मोर लड़ंका लठिया लाल।
बँच के आहू माँडूगढ़ मा, बन बघेल के जी के काल।~30

खूब लड़इया लहुआ आल्हा, दूसर ले देवी बरदान।
भगत भवानी सारद माँ के,जइसे सीया के हनुमान।~31

बइठ बछर बारा बन तपसी, मैहर माई के दरबार।
मूँड़ काट अरपन देवी ला, होय अमर आल्हा अवतार।~32

आल्हा ऊदल चलथें अइसे, जइसे रामलखन चलि जाय।
भुजबल भारी भक्कम भइगे, आँखी भभका कस भमकाय।~33

आल्हा ऊदल सिरतों सेउक,समझँय येला अपन सुभाग।
धरम करम हे राजपूत के, लड़त-लड़त दँय प्रान तियाग।~34

धरम धजा कस उड़े पताका, नाँव धराये हे अलहान।
सूरुज बूड़य बुड़ती बेरा, नइ बूड़े आल्हा के शान।~35

जीत-जीत के जिनगी जीयँय, जउँहर जोद्धा जय जयकार।
जेखर बैरी जीयँत जागय, ओखर जिनगी हा बेकार।~36

रन मा आल्हा करँय सवारी, पुष्यावत हाथी के नाँव,
खदबिद-खदबिद घोडा़ दउँड़े, कहाँ थोरको माढ़य पाँव।~37

देशराज बर खाये किरिया, आल्हा जोरय जम्मों जात।
एकमई सब राहव काहय, भेदभाव के छोड़व बात।~38

सबके हितवा आल्हा ऊदल, परहित मा ये भरँय हुँकार।
रक्छक बहिनी महतारी के, बैरी के कर दँय सरी उजार।~39

आल्हा ऊदल बड़ बलिदानी, राज महोबा के बिसवास।
करनी अइसन करें तियागी, अमर नाँव लिखगे इतिहास।~40

कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक ~भाटापारा (छ.ग)
संपर्क ~ 9200252055

अस्वीकरण – इस वेबसाईट के संचालक को श्री सिद्ध प्रताप सिंह के द्वारा दिनांक ०५.०६.२०२३ को मेल किया गया एवं रचना में टंकण त्रुटि के संबंध में ध्‍यान आकर्षित किया गया। रचनाकार से चर्चा के उपरांत  रचनाकार श्री कन्हैया साहू ‘अमित’ के संशोधन अनुरोध (मेल दिनांक १४.०६.२०२३) के उपरांत संशोधन किया गया है।

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One reply on “24 मई -जेठ दसमी : वीर आल्हा जयंती, आल्हा चालीसा (आल्हा छंद में)”

सुग्घर सिरजन सिरजे हे गुरुदेव के किरपा ले।

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