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गोठ बात

अपने घर म बिरान हिंदी महिना

हमर देस म आजकल हिंदू अउ हिंदू संस्कृति के अब्बड़ चिंता करे जावत हे। साहित्यकार अउ संस्कृति करमी मन नंदावत रीत-रिवाज अउ परंपरा के संसो म दुबरात जावत हे। फेर एक ठन बिसय अइसे हे जेकर डाहन काखरो धियान नइ गे हे तइसे लगथे। वो बिसय हे हिंदी महिना अउ तिथी। हिंदी महिना के ज्ञान प्रायमरी कक्छा म देय के औपचारिकता के बाद कोनो मनखे ल हिन्दी महिना अउ तिथी के चिंता करे के सुध नइ राहय। आज कोनो भी अच्छा पढ़े-लिखे आदमी ल हिंदी महिना अउ तिथी बताय ल कबे तो वो हड़बड़ा जही।
हिंदी महिना अउ तिथी के उपयोगिता सिरिफ बिहाव कारड भर म रहि गे हे। इहाँ तक के छट्ठी अउ सोक पत्र अउ कतको आमंत्रण-निमंत्रण पत्र म घलो कोनो भुला के हिंदी महिना अउ तिथी के उल्लेख नइ करना चाहंय। धन तो हमर जम्मो परब तिहार हिंदी महिना अउ तिथी के मुताबिक परथे नइ ते हिंदी महिना अउ तिथी के का दसा होतिस ये कल्पना ले बाहिर हे।




संसोच के बात हरय के हमला अंगरेजी महिना अउ तारिक तो मुअखरा याद रथे फेर हिंदी महिना अउ तिथि बताय बर हम मुहूँ फार देथन। मोर महतारी बारो महिना अकादसी उपास रइथे। अकादसी कोन दिन परही तेन सवाल के मोर करा कोनो जवाब नइ राहय। वो डाहर हम बिस्वगुरू होय के डंका पीटत हन। जेला अपन महिना अउ तिथी के ज्ञान तको नइ हे। आज ये सोंचे के बिसय हरे हिंदी महिना ये दसा म काबर परे हे। यदि ये केहे जाय के ज्ञान उपर पहरा बइठाय के जेन परंपरा आदिकाल ले हमर देस म चले आवत हे तेने ह देस के पिछड़ापन बर सबले जादा जिम्मेदार हे। आजो हिंदी महिना अउ तिथी ह सिरिफ पंडित अउ पुजारी मन के बिसय बने हे एकर पीछू इही कारन आय।
ये हिंदी महिना के दुखभरे कहिनी आय। हिंदी महिना ल चंद्रमास केहे जाथे। काबर के एकर महिना के तिथी चंद्रकला के मुताबिक तय होथे। ये हिसाब ले हिन्दी महिना २८, २९, ३० नइते ३१ दिन के हो सकथे। औसत देखे जाय तौ चंद्रमास के एक बछर ३५५ दिन के होथे। इही पाय के हर तीन बछर म एक महिना बढ़ाय के परंपरा हे। ये महिना ल लउंद महिना, मलमास या अधिमास घलो केहे जाथे। एमा कोनो एक महिना ल ज्योतिसी गिनती के मुताबिक बढ़ाय जाथे। अइसन साल म एक बछर म तेरा महिना होथे। एक महिना ह अंधियारी अउ अंजोरी दू पाख म बंटे रइथे। अधिमास वाले बछर म पहिली महिना के अंजोरी पाख अउ दूसर महिना के अंधियारी पाख ल मिला के परसोत्तम महिना केहे जाथे। हिंदू धरम म परसोत्तम महिना के बड़ महत्तम बताय गे हे।




हर पाख म परवा ले लेके चउदस तक तिथी होथे। अंधियारी पाख के आखरी तिथी ल अम्मावस अउ अंजोरी पाख के आखरी तिथी ल पुन्नी केहे जाथे। तिथी मन के नांव हे परवा(एक्कम), दुइज, तीज, चउथ, पंचमी, छठ, सातें, आठें, नवमी, दसमी, अकादसी, दुवास, तेरस, चउदस अउ आखरी तिथी अम्मावस या पुन्नी। दू पाख मिला के एक महिना होथे। महिना मन के नांव हे- चइत, बइसाख, जेठ, असाढ़, सावन, भादो, कुवाँर, कातिक, अग्घन, पूस, मांघ अउ फागुन।
अब हात उठावव कोन अइसे मनखे हवय जेन अपन जनम दिन या बिहाव दिन ल हिंदी महिना अउ तिथी के मुताबिक मनाथे? का एकर बर कोनो आगू आय बर तियार हे के जनमदिन अउ बिहाव दिन हिंदी महिना के मुताबिक मनना चाही? “गर्व से कहो हम हिंदू हैं” चिल्लाय भर ले कुछू नइ होवय। अरे, हमर ले गरबवान तो आदिवासी अउ बनवासी मन हरंय जेकर मन के नांव जम्मो हिंदी महिना अउ तिथी उपर धराय मिल जथे।
ये हिंदी महिना अउ तिथी के गोहार आय जेकर उपर धियान नइ देय ले अउ बांकी जिनिस असन इहू नंदा जाही। एमा कोनो संखा के बात नइ हे।
जै जोहार!
जै छत्तीसगढ़!!

दिनेस चौहान
छत्तीसगढ़ी ठीहा,
सितलापारा,
नवापारा-राजिम।