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आल्हा छंद

आल्हा छंद : झाँसी के रानी

बरस अठारा में रानी ने, भरिस हुंकार सीना तान।
भागय बैरी ऐती तेती, नई बाचय ग ककरो प्राण।
गदर मचादिस संतावन में, भाला बरछी तीर कमान।
झाँसी नई देवव बोलीस, कसदिच गोरा उपर लगाम।
राव पेशवा तात्या टोपे, सकलाईस जब एके कोत।
छोड़ ग्वालियर भगै फिरंगी, ओरे ओर अऊ एके छोर।
चना मुर्रा कस काटय भोगिस, चक रहय तलवार के धार।
कोनों नई पावत रिहिस हे, झाँसी के रानी के पार।
चलय बरोड़ा घोड़ा संगे, त धुर्रा पानी ललियाय।
थरथर कांपय आँधी देखत, कपसे बैरी घात चिल्लाय।
मारे तोला अब मरन नहीं, चाहे अब काही हो जाय।
जन्मभूमि के रक्षा खातिर, परान घलो अब हमरो जाय।
रानी के बचन सुन सैनिक, घात पै घात करते जाय।
जंगहा तीर कमान ह तको, लाश पै लाश बिछात जाय।
मार काट आगू बढ़त रिहिस, घोड़ा नाला देख डराय।
आगिस शत्रु आगू पीछू ले, सिंहनी वीर गति को पाय।
बुझिस दिया झाँसी के जभे, डलहौजी के मन मुस्काय।
तेईस के उमर में रानी, अईसन इतिहास बन जाय।

विजेंद्र वर्मा अनजान
नगरगाँव (धरसीवां)