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लोक कथा : कोपरी के महल

एक राज में एक राजा राज करय। राजा के छै झन रानी रहय फेर एको झन के लइका नइ रहय। एक झन संतान के बिना राजा ला राजपाट, धन-दोगानी, Birendra Saralमहल-अटारी सब बिरथा लागे। रातदिन राजा ह संसो में पडे रहय कि मोर बाद ये राजपाट के काय होही। संसो के सेती राजा के मुँहु करियावत रहय अउ काया ह लकड़ी कस सुखावत रहय। राजा के अइसन दसा ला देख के एक दिन मरदनिया ह किहिस-‘‘राजा साहेब! जादा संसो झन करव। एक बिहाव अउ कर लेव, हो सकथे करम में कहूँ लिखाय होही ते नवा रानी डहर ले संतान सुख मिल जाय। आप मन कहितेव तै लड़की खोजे के जिम्मेदारी मैहा लेवत हवं।‘‘ राजा ह हव कहि दिस।
मरदनिया ह उही राज के एक झन मांझी के बेटी ला रानी बने के योग्य समझिस अउ मांझी संग गोठ-बात करिस। मांझी घला तियार होगे। कुछ दिन बीते के बाद राजा अउ मांझी के बेटी के बिहाव होगे। धीरे-धीरे समें बीते लगिस। मांझी के बेटी अम्मल(गर्भवती) में रहिगे। ये बात ला जान के राजा के खुसी के ठिकाना नइ रिहिस अब ओखर जादा समें नवा रानी के महल में बीते। सातवां रानी बर राजा के गजब मया ला देख के पहिली वाली सबो रानी मन मांझी के बेटी बर घात ईर्श्या करे। माँझी के बेटी रानी बनगे गजब खुस रहय।
फेर करम के फेर देखव धीरे-धीरे पहिली वाली सबो रानी मन घला गर्भवती होगे। अब राजा के मया नवा रानी बर कम होगे। पहिली वाली रानी मन के भड़कौनी में आके राजा ह नवा रानी ला बारा हाथ के लुगरा भर देके अपन राजफुलवारी के कौउआं हाँकनिन बना दिस।
अब नवा रानी काय करय बपरी ह दिनभर फुलवारी में कौआँ हाँके अउ रतिहा अपन झोपड़ी में चुनी-भंूसी के रोटी रांध के खाय पिये अउ पड़े रहय। अइसने-अइसने समय बीतत रहय। नव ले दस पूरिस तहन सबो रानी मन बने सुंदर-सुंदर राजकुमार मन ला जनम दिन। कौआं हाँकनीन घला अपन झोपड़ी में एक सुंदर राजकुमार ला जनम दिस अउ अपन बेटा के नाव सोनश्री राखिस।
अपन अँगना में नान्हें-नान राजकुमार मन ला खेलत देख के राजा के हिरदे खुसी में गदगद हो जाय। राजा जब कहय-‘‘मोर अँगना तो सरग के अँगना ले घला जादा सुंदर हे। तब उही बेरा में महल के मुंढेर में बइठे कौआं कहय तोर महल कतको सुंदर रहय राजा साहेब फेर कोपरी के महल ले जादा सुंदर नइ हो सके। कौआ के रोज-रोज अइसने गोठ ला सुनके राजा के जीव बिट्टागे। ओखर मन में कोपरी के महल ला देखे के इच्छा होवय फेर ये संसार में कोपरी के महल के नाव कहूं तीर सुनइ नइ देवय। राजा बड़े-बड़े गुनवान मनखे मन ला पूछे फेर कोन्हों कोपरी के महल के पता नइ बता सके। अइसने-अइसने गजब दिन बीतगे, राजकुमार मन जवान होगे। फेर राजा के मन में कोपरी के महल देखे के साध अभी तक पूरा नइ होय रिहिस।
एक दिन राजा ह अपन सबो राजकुमार मन ला बला के किहिस-‘‘जउन राज कुमार मोला कोपरी के महल ला देखाही उही ला अपन राजपाट ला देहूंँ। तुमन सब झन जावव अउ ये कोपरी के महल कहांँ हे तेखर पता लगावव। राजा के बात सुनके राजकुमार मन हड़बड़ागे काबर कि कोन्हों आज तक कोपरी के महल के नाव तक नइ सुने रिहिन। दरबार के नेगी, जोगी, पाड़े-परधान अउ सबो राजकुमार मन राजा ला समझइन, जउन ठउर ये दुनिया में है ही नहीं ओला कोन्हों कहाँ ले खोज सकही? फेर राजा अपन जिद में अड़गे अउ किहिस-‘‘जब तक मैं कोपरी के महल ला नइ देख लेहूँ तब तक भोजन नइ करव भले मोर जीव छुट जाय।‘‘
अब तो राजकुमार मन कोपरी के महल ला खोजे ला जाय बर मजबूर होगे। सब अपन अपन मनपंसद के घोड़ा ला तैयार कराइस। खाय पिये के समान रखिस अउ कोपरी के महल खोजे बर निकलगे।
सोनश्री अपन राजा ददा के प्रण अउ भाई मन के कोपरी के महल खोजे के बात ला सुनिस। तब अपनो ह कोपरी के महल खोजे बर जाय के इच्छा करिस। ओखर दाई ओला समझा के किहिस-‘‘बेटा! ओमन राजकुमार आय अउ तैहा एक कौउआं हाँकनिन के बेटा अस। भले राजा ह तोर बाप आय फेर वोहा आज तक तोला बेटा मानबे नइ करे हे। राजकुमार मन बने-बने घोड़ा अउ खाय-पिये के समान धरके निकले हावे। तोर बर ये सब बेवस्था ला कोन करही? सोनश्री किहिस-‘‘दाई! महूँ ह राजा के दरबार में ये सब जिनिस के माँग करहूँ।‘‘ कौउआं हाँकनिन बहुत समझइस फेर सोनश्री ओखर बात ला नइ मानिस।
बिहान दिन सोनश्री राजदरबार में पहुँच के राजा के आघू में अपन मन के बात ला बता दिस। पहिली तो सबे झन सोनश्री के गजब खिल्ली उड़ा के हाँसिन। फेर एक झन सियनहा मंत्री ला सोनश्री ऊपर दया आगे ओहा राजा ला किहिस-‘‘राजा साहेब! यहू आप मन के बेटा आय। ओ राजकुमार मन ला बने-बने घोड़ा ला दे हव तब यहू ला कोन्हो मरहा-खुरहा घोड़ा ला दे देव। हो सकथे आपके कोपरी के महल ला खोजे के जस एखरे हाथ में लिखाय होही?‘‘ राजा ला बात समझ में आगे वोहा सारथी ला आदेस दे दिस कि सोनश्री ला घला एक ठन घोड़ा दे जाय।
सोनश्री ला घला घोड़ा मिलगे। कौउआ हाँकनिन ह सोनश्री बर चुनी-भूंसी के रोटी रांध के जोर दिस। अब सोनश्री ह कोपरी के महल खोजे बर निकलगे।
सोनश्री ह राजकुमार मन के पाछू-पाछू चले के सुरू करिस। राजकुमार मन के घोड़ा मन तगड़ा अउ जवान रहय ओमन सरपट भागिन फेर सोनश्री के घोड़ा तो सियान अउ कमजोर रहय ओहा कहाँ ले सरपट भागतिस। सोनश्री निचट पछुवागे। ओहा धीरे-धीरे चलत एक ठन नवा राज में पहुँचगे।
ओ राज में एक राजकुमारी रहय जेखर प्रण रहय जउन मोर पाँच प्रस्‍न के जवाब दिही तेखर संग बिहाव करहूँ अउ जउन जवाब नइ दिही तउन ला जेल खाना में बंद करवा देहूँ। ओ राज के सिपाही मन जउन भी नवा मनखे ला उहाँ देखे तउन ला पकड़ के राजकुमारी के दरबार में लेगय। राजकुमारी ह प्रस्‍न पूछय जवाब नइ मिले तब अनगइहा मनखे मन ला अपन जेलखाना में बंद करवा देवय। सोनश्री ला घला सिपाही मन राजकुमारी के दरबार में लेगगे। सोनश्री राजकुमारी के पाँचों प्रस्‍न के सही-सही जवाब दे दिस। अब राजकुमारी ला अपन प्रण के मुताबिक सोनश्री संग बिहाव करना पड़िस। सोनश्री बहुत दिन ले उही राज में राजकुमारी संग रहिगे। एक दिन सोनश्री ह मउका देखके अपन ददा के प्रण अउ कोपरी के महल खोजे के बात ला राजकुमारी ला बताइस। राजकुमारी ओला अनुमति दे दिस तब ओहा उहाँ ले निकलगे।
कोपरी के महल ला खोजत-खोजत सोनश्री ह बहुत दूरिहा एक समुंदर के तीर में पहुँचगे। उहाँ एक झन साधु ह तपस्या करत रहय। सोनश्री तन मन ले ओखरे सेवा जतन करे लगिस। साधु के तपस्या पूरा होईस तब ओहा सोनश्री ला बरदान माँगे बर किहिस। सोनश्री बरदान में कोपरी के महल के पता माँंिगस। साधु किहिस-‘‘बेटा! एखर पता ठिकाना ला तो मैंहा नइ जानव फेर हाँ ये समुंदर में रोज बिहिनया ले इन्द्र लोक के सात झन नर्तकी मन नहाय बर आथे। जब ओमन जलक्रीड़ा करत रही तब तैहा उखर कपड़ा-लत्ता ला लुका देबे। तहन तोर काम बन जाही। साधु के बात सुनके सोनश्री ह बिहिनया के अगोरा करे लगिस।
रतिहा पोहाइस तहन सिरतोन में नर्तकी मन आके समुंदर में जलक्रीड़ा करे लगिन। मउका देख के सोनश्री उखर कपड़ा ला लुका दिस। नर्तकी मन नहाय के बाद अपन कपड़ा ला खोजिन फेर कपड़ा नई मिलिस। ओमन साधु बबा ला पूछिन साधु ह सोनश्री डहर इसारा कर दिस। अब नर्तकी मन सोनश्री ला किहिन-‘‘अरे परदेसिया! तैहा हमर ओन्हा-कपड़ा ला जल्दी दे दे बदला में जउन माँगबे तउन हमन देबो।‘‘ सोनश्री फेर उही कोपरी के महल के पता ओमन ला मांँगिस अउ कपड़ा ला दे दिस। सातो झन नर्तकी मन एक-दूसर ला देख के सुन्ता होईन। अब बड़े नर्तकी कहिस-‘‘कोपरी के महल देखना हे तब तो तोला हमर मन संग सरग जाय बर पड़ही।‘‘ सोनश्री तियार होगे। नर्तकी मन ओला अपन संग सरग ले आनिन।
नर्तकी मन रोज संझाती बने सज-धज के तैयार होके इन्द्र के दरबार में नाचे बर जाय। सोनश्री उंखर संग जाय के साध करे तब किसम-किसम के बहाना करके ओला भुलियार देवय।
एक दिन के बात आय। सब नर्तकी मन नाचे बर गे रिहिन। सोनश्री घर में अकेल्ला रिहिस। तभे काखरो रोय के अवाज सुनाइस। सोनश्री येती-ओती देखिस। कोन्टा में एक ठन लकड़ी के घोड़ा ह रोवत रहय। घोड़ा के ऊप्पर दियांर चढ़े रहय अउ ओहा निचट मइलागे रहय। ओहा रो-रो कहत रहय कि कोन्हों मोर सेवा-जतन करही। मोला धोही-मांजही तउन ला मैहा इन्द्र के दरबार में लेगके नर्तकी मन के नाच देखाहूँ। सेानश्री ओ घोड़ा ला बने धो-मांज के ओखर ठउर में रख दिस। थोड़ेच किन बाद में घोड़ा ह सिरतोन के सादा घोड़ा बनगे। ओखर पंख निकलगे। अब ओहा सोनश्री ला किहिस-‘‘परदेसी भाई! तैहा मोर सेवा-जतन करे हस। चल आज मैंहा तोला इन्द्र के दरबार में घुमाहूँ।
सोनश्री घोड़ा के पीठ में सवार होगे। घोड़ा ह पवनवेग में हवा में उड़िस अउ एकेच कन में सोनश्री ला इन्द्र के दरबार में पहुँचा दिस। इन्द्र के सोना के सतखंडा महल में दरबार लगे रहय। इन्द्र ह डफली वाला ला ईसारा करिस। डफली बाजिस तहन हीरा, मोती, पन्ना-पुखराज जड़े लकलक-लकलक करत कोपरी के महल बनगे। नर्तकी मन सोला सिंगार करके नाचे बर तैयार रहय। राजा इन्द्र ह इसारा करिस तहन बाजा बाजिस नर्तकी मन के नाच सुरू होगे। सोनश्री चुपचाप एक कोन्टा में बइठ के ये सब ला देखे लगिस। नाच गाना बंद होय के पहिली घोड़ा ह सोनश्री ला इसारा करिस तहन दुनो झन उहाँ ले नर्तकी मन के घर आय के पहिली घर आगे। घोडा़ ह फेर अपन ठउर में जाके लकड़ी के बनगे। अब तो येहा घोड़ा अउ सोनश्री के रोज के बुता रहय नर्तकी मन के जाय के बाद दुनो झन इन्द्र के दरबार में जाय अउ चुपचाप कोन्टा में सपट के उंखर नाच गाना ला देखे अउ उखर आय के पहिली घर आ जावय। नर्तकी मन ला ये बात के पता नइ चलय। अइसने-अइसने बहुत दिन बीतगे।
समे बीतत रहय छोटे नर्तकी ला सोनश्री संग प्रेम होगे। ओहा प्रेम के मारे सोनश्री ला संगीत सिखोयवय। संगीत के सिक्क्षा पाके सोनश्री पक्का तबलची बनगे। एक दिन छोटे नर्तकी कहिस-‘‘तोला हमन कोपरी के महल देखाबो कहिके इहाँ लाय रहेन फेर आज ले तैहा कोपरी के महल ला नइ देखे हस। आज तैहा हमन जाबो तेखर बाद ओ कोन्टा में लकड़ी के घोड़ा में सवार होके आ जबे तहन कोपरी के महल ला देख डारबे। सोनश्री हव कहिके मने मन हाँसिस काबर कि ओहा तो इन्द्र के दरबार में रोजेच जावत रिहिस।
नर्तकी मन के जाय के बाद सोनश्री ह लकड़ी के घोड़ा में सवार होके इन्द्र के दरबार में पहुँचिस। दरबार लगे रहय, सब देवता मन सकलाय रहय। नाच गाना सुरू होवत रहय फेर आज तबलची के हाथ तबला में जमबे नइ करत रहय। नाच गाना घेरी-बेरी बिगड़ जाय। देवता मन इन्द्र के अपमान करे लगिन। इन्द्र के जीव खिसियागे। ओहा दरबार में घोशणा कर दिस आज तबला बजा के जउन ह ये नाच गाना ला जमा दिही तउन ला मुँहमंगा इनाम दे जही। छोटे नर्तकी ह सोनश्री ला इसारा करिस। सोनश्री इन्द्र ले अनुमति माँग के तबलची के ठउर में आके बइठगे अउ वहा जोरदार तबला बजाइस के देवता मन विधुन होके नाचे लगिन। राजा इन्द्र घलो खुसी के मारे मार झुमरगे। रतिहा बीतगे जब नाच गाना बंद होइस तब इन्द्र ह सोनश्री ला इनाम माँगे बर किहिस। सोनश्री इनाम में कोपरी के महल माँगिस। इन्द्र देवता वचन में तो बंधागे रहय। ओहा सोनश्री ला ओ डफली ला देे दिस जेखर माया ले कोपरी के महल बनय। महल बनाय के माया मंतर अउ विधि-विधान ला घला बता दिस। सोनश्री ह डफली ला धरके नर्तकी मन संग उहांँ ले निकलगे।
अब सोनश्री नर्तकी मन ला किहिस-‘‘देखव भई! मय जउन जिनिस बर इहाँ आय रहेवं तउन मोला मिलगे हावे। अब तुमन मोला उही समुंदर के तीर में ले जा के छोड़ देव जिहाँ ले मोला लाने रहेव।‘‘
बिहान दिन नर्तकी मन ओला समुंदर तीर के साधु के कुटिया मेरन लाके छोड़ दिन। सोनश्री साधु बबा के आसिरवाद लेके अपन राज आय बर निकलगे।
पहिली ओहा अपन रानी वाले राज में पहुँचिस। अपन रानी ला सब बात ला बताइस अउ ओला कोपरी के महल तैयार करके देखाइस। रानी घला खुस होगे। रानी ह ओला अपन कैदखाना ला देखाय बर लेगिस। कैद खाना में सोनश्री के भाई मन के संगे संग अउ कतको राज के राजकुमार मन धंधाय रहय। सोनश्री ह रानी ला सब कैदी मन ला छोड़े बर किहिस। रानी सबला छोड़वा दिस। राजकुमार मन अपन-अपन घोड़ा में सवार होके चल दिन। सोनश्री ह अपन भाई राजकुमार मन संग चलिस संग में ओखर रानी घला रहय।
सोनश्री के भाई मन ओखर बर देखमरी मरत रहय अउ मउका देख के ओला मारे के उदिम सोचत रहय। संझा के बेरा ओमन एक ठन गाँव तीर में पहुँचिन। आघू में एक ठन बड़ेजान कुआँ रहय। बड़का राजकुमार ह सोनश्री ला किहिस-‘‘भाई पियास के मारे टोटा सुखावत हे। कुआँ ले पानी निकाल के हमन ला पिया देते ते प्राण बाँच जतिस।‘‘ सोनश्री भल ला भल जानिस। ओहा कुआँ के तीर में पहुँच के पानी निकाले लगिस। मउका देख के छयो झन राजकुमार मन ओला कुआँ में धकेल दिन अउ कोपरी के महल बनाय के जादू वाला डफली ला धरलिन। सोनश्री के रानी ला जबरन अपन घोड़ा में बइठार के आधू बढगे।
सोनश्री रातभर उही कुआँ में पड़े रिहिस। बिहान दिन बड़े फजर पनिहारिन मन पानी भरे बर कुआँ में आइन। कुआँ पार में घोड़ा ला खड़े देख के उखर मन में घुरघुस होइस। ओमन कुआँ ला झाँक के देखिन तब उहाँ सोनश्री ह हाय दाई हाय ददा करत पड़े रहय। ओमन तुरते गाँव वाले सियान मन ला बला के लानिन। सब झन मिलजुल के सोनश्री ला कुआँ ले बाहिर निकालिन। गाँव वाले मन पूछिन तब सोनश्री सब ला अपन राम कहानी सुना दिस। गाँव वाले मन किहिन, इही ला कहिथे भाई बरोबर हितवा नही अउ भाई बरोबर बैरी। राजपाट के लालच में भाई मन भाईच ला मारे के उदिम करे हे। गाँव वाले मन सोनश्री ला कुआँ ले बाहिर निकालिन अउ ओखर जतनभाव करिन। कुछ दिन बीते के बाद सोनश्री बने होगे अउ अपन राज जाय बर गाँव वाले मन ला बिदा माँगिस।
जब ओहा अपन राज में पहुँचिस तब काय देख थे कि ओखर भाई मन अपन राजा ददा ला कोपरी के महल ला हमन खोजे हन कहिके डफली ले महल बना के देखावत रहय। ओमन सोनश्री ला देख के अकबकागे काबर कि ओमन सोनश्री ला मरगे कहिके समझे रहिन। सोनश्री राजदरबार में जाके सब बात ला राजा अउ मंत्री मन ला बता दिस। फेर कोन्हों ओखर बात ला पतियावय नहीं। राजकुमारी ह बात ला बताइस तब मंत्री मन सच्चाई के पता लगाय बर निकलगे। मंत्री मन गाँव वाले मन ला पुछिन। समुंदर तीर के साधु बबा ला पुछिन अउ लहुट के सब बात ला राजा ला बताइन।
अब राजा के एड़ी के रिस तरवा में चढ़गे। ओहा अपन छैयो झन मूरख, दोगला, बेईमान अउ हत्यारा राजकुमार मन ला राज ले बाहिर निकाल दिस। सोनश्री ला अपन युवराज बनादिस अउ कौउआं हाँकनिन अपन रानी ला बाजा-गाजा में परघा के फुलवारी ले राजमहल में लान के अपन रानी बना दिस। तभे तो कहे जाथे घुरवा के दिन घला बहुरथे। सोनश्री के दिन घला बहुरगे ओहा कौआं हाँकनिन के बेटा ले आज अपन मेहनत के बल में युवराज सोनश्री बनगे। अब सब झन बने खइन कमाइन राज करिन मोर कहिनी पुरगे दार भात चुरगे।

वीरेन्द्र ‘सरल‘