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मानकीकरन

छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण बर

भाषा ह नाना प्रकार के व्यवहार बोल-चाल, पढ़ई-लिखई, बाजार, मनोरंजन आदि म मन के बात, संवेदना व्यक्त करे के माध्यम होथे। शासन अउ व्यक्तिगत चिठ्ठी-पतरी के माध्यम होथे। कोनो भाषा तभे पोठ होथे जब ओ भाषा हा, ओ भाषा के बोलईया मन के संगे-संग दूसर भाषा के बोलईया मन बर घला आदर्श होवय। कोनो भी बोली पहिली भाषा बनथे फेर एक मानक भाषा के रूप लेके व्यापक रूप मा प्रचारित हो जथे। हमर छत्तीसगढ़ी बोली हा भाषा के रूप ला पागे हे अब येखर मानक भाषा बने के यात्रा शुरू होगे हे।

मनकीकरण के संदर्भ म हमर विद्वान मन के दू प्रकार के विचार देखे ल मलिथे एक विचार धारा के अनुसार- ‘‘मानक भाषा अपन बनावट ले अपन भाषा के नाना प्रकार के रूप ले कोनो एक रूप या एक बोली ऊपर आधारित होथे। येखर मानक बने ले येखर बोलीगत गुण खतम होय लगथे अउ वो क्षेत्रीय ले अक्षेत्रीय हो जाथे। येखर कोनो तय सीमा क्षेत्र नई होवय अउ न ही ये कोनो भाषा-भाषी समुदाय के मातृबोली होवय।‘‘ दूसर विचार के अनुसार- ‘‘मानक रूप के मतलब एक अइसन रूप ले हे जउन भाषा के प्रकृति ला समझत अउ ओखर बहाव ला देखत येला सरल करे जाये ना कि दूसर भाषा के प्रकृति के आधार मा मानकीकरण के चक्कर मा भाषा के प्रवाह ला, प्रकृति ला रोक दे जाये। मानकीकरण के आधार भाषा के मूल रूप मा होनी चाही।‘‘ दूनों विचार के सार एके हे मानक भाषा सरल होवय, अपन प्रकृति म रहत जन-व्यापक होवय।




मानक भाषा के प्रमुख तत्व ऐतिहासिकता, मौलिकता, केन्द्रीयकरण, सहजता, एकरूपता अउ व्याकरण संमत होथे। ये तत्वमन मन मा भाषा के मानकीकरण करत बखत ध्यान दे ल परथे। भाषा के मानकीकरण बर ये दू काम धारन बरोबर होथे – पहिली ओ भाषा के प्रचलित नाना प्रकार के बोली म कोनो एक बोली ला आधार मान के या सांझर-मिंझर भाषा बर शब्द के गठन करे जाये। अउ दूसर ओखर लिखे के लिपी अउ वर्तनी म एक रूपता लाये जाये।

कोनो भी भाषा ला ओखर बोलीमन ओला मजबूत करथे, फेर कोनो भी बोली ओ भाषा ऊपर अपन अधिकार नई जतावय न अपन ल ओखर ले अलग समझय। छत्तीसगढ़ी के खलटाही, कमारी, सरगुजिया, सदरी-कोरबा, रायपुरी, बिलासपुरी, कांकेरी, बस्तरिया, लरिया, बिंझवारी जइसे नाना बोली प्रचलित हे। ये सबो बोली म जेन बोली ल छत्तीसगढ़ के जादा ले जादा मनखे अपन दिनचर्या म उपयोग करथे ओही ल आधार बनाना चाही। ये खोज के विषय हो सकत हे के छत्तीसगढ़ी के कोन बोली ह बोल-चाल म जादा ले जादा उपयोग होवत हे। फेर जेन छत्तीसगढ़ी ल धनी धरम दास, गुरू घासीदास, पं. सुंदरलाल शर्मा, शुकलाल पाण्ड़े, कोदूराम दलित, नारायण लाल परमार जइसे साहित्यकार मन अपनाइन, जेन छत्तीसगढ़ी ला अंतर्राष्‍ट्रीय स्तर म हबीब तनवीर, तीजन बाई, देवादास, डॉ. सुरेन्द्र दुबे मन जइसे कलाकार मन जेन रूप म बगरायें हें, चंदैनी-गोंदा जइसे संस्था छत्तीसगढ़ी के जेन रूप ला दुनियाभर म बगरायें हें, जेन रूप म आकाशवाणी अपन स्थापना के बखत ले आज तक छत्तीसगढ़ी ला पालत-पोषत हे ओही रूप ल मानकीकरण के आधार चुने जा सकत हे काबर छत्तीसगढ़ी के ये रूप ले जादा ले जादा मनखे मन परिचित हे ओखर उपयोग छत्तीसगढ़िया मन के संगे-संग दूसर भाषा-भाषाई मन घला करत हें। आज छत्तीसगढ़ी मा लिखईया साहित्यकार मन, फिल्मकार मन, कलाकार मन घला येही रूप ला चलावंत हे।




मानकीकरण के दूसर धारन लिपी अउ वर्तनी हे। छत्तीसगढ़ी ह देवनागरी लिपी ल अपना चुके हे लिपी के चयन के कोनो समस्या नई हे। अब एके बात बाचथे जेमा विचार करे के जरूरत हे ओ हे- ‘वर्तनी‘। भाषा के वर्तनी के अर्थ हे- ‘‘भाषा मा शब्द मन ला वर्ण आखर ले व्यक्त करना। कई ठन भाषा, जइसे अंग्रेजी उर्दू मा सालों-साल ले वर्तनी (अंग्रेज़ीके स्पेलिंग, उर्दू के हिज्जा) ला रटावये जाथे। हम नान-नान मा अंग्रेजी के बहुत स्पेलिंग रटे हन। ये अभ्यास आज घलो चलत हे। फेर छत्तीसगढ़ी म अभी तक वर्तनी के महत्ता ल परखे नई गे हे। छत्तीसगढ़ी भाषा के पहिली अउ सबले बड़े गुण ‘ध्वन्यात्मकता‘ हे। छत्तीसगढ़ी ल देवनागरी लिपी म लिखे जाथे। देवनागरी लिपी के सबले बढ़िया बात हे- ‘जइसे बोले जाथे वइसने लिखे जाथे।‘‘ बोले गेय ध्वनि ला व्यक्त करना बहुत सरल हे। फेर ये हा कठिन हो जाथे शब्द ला अलग-अलग ढंग ले बोले मा। क्षेत्र अंतर होय मा, बोली के अंतर होय मा षब्द के उच्चारण म अंतर होथे, दूसर भाषा के आये शब्द के उच्चारण ल घला अलग-अलग ढंग ले करे म वर्तनी एक ठन समस्या के रूप म हमर बीच खड़े हे।

छत्तीसगढ़ी के मूल शब्द के मानकीकरण म कोनो बड़े समस्या नई हे। छत्तीसगढ़ी के केन्द्रीय बोली के चयन होत्ते येखर निदान हो जही। सबले बड़े समस्या जउन आज दिखत हे ओ हे- हिन्दी शब्द के छत्तीसगढ़ी म प्रयोग। अभी तक छत्तीसगढ़ी ह हमर मातृबोली अउ हिन्दी ह मातृभाषा रहिस हे। येखर सेती बासी म नून कस हिन्दी ह छत्तीसगढ़ी म घुर गे हे। जेन ल निकालना अब कठिन हे। हां, हमला येखर प्रयोग के ढंग म चिंतन करना चाही। छत्तीसगढ़ी म हिन्दी के प्रयोग अइसे होवय के छत्तीसगढ़ी के अपन खुद के मौलिकता बने रहय। अइसन करत बखत हमला येहू देखना चाही के हिन्दी शब्द के उच्चारण छत्तीसगढ़ी म करत बखत ओ शब्द के ओइसने उच्चारण होवय जेन ओही अर्थ दे सकय जेखर बर येखर प्रयोग करे जात हे। अर्थ के अनर्थ नई होना चाही।




हिन्दी शब्द के छत्तीसगढ़ी अपभ्रंश ल स्वीकार करना चाही के हिन्दी के मूल रूप म। येही हा सोचे के विषय हे। येमा कुछु निर्णय ले के पहिली कुछ जरूरी बात म जरूर सोचना चाही। हिन्दी के छत्तीसगढ़ी अपभ्रंश कइसे बनिस। कइसन शब्द के अपभ्रंश प्रचलित होइस अउ कइसन शब्द ह अपन हिन्दी के मूल रूप म चलत हें। जइसे हिन्दी के घर, छाता, जहाज, कागज जइसे बहुत अकन शब्द ह जस के तस छत्तीसगढ़ी मा प्रयोग होत हे। जेन शब्द के अपभ्रंश रूप चलत हे ओला देखे म मोटा-मोटी दू प्रकार दिखथे ‘आधा वर्ण‘ वाले शब्द अउ ‘संयुक्त वर्ण‘ वाले शब्द। सबले जादा ‘र‘ के पहिली कोनो आधा वर्ण आथे त अउ ‘आधा र‘ आथे त जइसे प्रसन्न-परसन, प्रदेश-परदेश, प्रसार-परसार, प्राथमिक-पराथमिक अर्घ-अरघ, फर्श-फरस आदि। संयुक्त वर्ण म शिक्षा-सिक्छा, श्री-सिरी, विज्ञान-बिग्यान, वैज्ञानिक-बिगयानिक या बइग्यानिक श्राप-सराप, त्रिशूल-तिरसूल आदि। अपभ्रंश रूप तभे स्वीकारे जाये जब येखर अर्थ ह ओही होय जेखर बर येखर प्रयोग करे गे। हिन्दी के प्रदेश, जेखर अर्थ अपन प्रांत, अपन राज्य होथे ओही मेरा येखर अपभ्रंश परदेश ह आन के देश, आन के राज्य के बोध कराथे जेखर प्रयोग उचित नई कहे जा सकय। ‘श्री‘ जेन संस्कृत ले हिन्दी म चलत हे ल ‘सिरी‘ कहे मा ओ अर्थ नई होवय जउन श्री कहे मा होथे। ये मेरन ध्यान दे के बात हे ‘श्री‘ के ध्वनि ला अंग्रेजी म ज्यों के त्यों Shri प्रयोग करे जाथे। फेर छत्तीसगढ़ी म जेखर लिपी ओही हिन्दी के देवनागरी हे तेमा ‘सिरी‘ काबर ? स, ष, श के प्रयोग बर घला सोचे चाही ये सही हे के मूल छत्तीसगढ़ी म केवल ‘स‘ के प्रयोग होथे फेर हिन्दी ले आये शब्द के श अउ ष ल घला स कहिना कहा तक सही हे ? व्याकरण के दृष्टिकोण ले व्यक्ति वाचक संज्ञा भाषा बदले म नई बदलय त कोखरो नाम संतोष ल संतोस, रमेश ल रमेस कहिना कहां तक उचित हे ?




कोनो भाषा के मानकीकरण ले ओ भाषा के प्राण हा बाचे रहय, ओखर प्रकृति लहजा, मिठास हा बाचे रहय। ये चिंता जायज हे के हिन्दी के धडल्ले ले प्रयोग ला सही कहिना छत्तीसगढ़ी ल प्राणहीन कर सकत हे। ये चिंता जतके बड़े हे ओतके बड़े चिंता येहू हे के हिन्दी के अपभ्रंश छत्तीसगढ़ी ले अर्थ के अनर्थ मत होवय। ये दूनों चिंता ला मिला के येखर हल खोजे के उदीम करे जाये। सबले पहिली जेन अर्थ बर छत्तीसगढ़ी शब्द पहिली ले हवय ओखर बर हिन्दी शब्द के प्रयोग कतई नई करना चाही। जेन अर्थ म छत्तीसगढ़ी आसानी से नई मिलय ओ अर्थ म हिन्दी के शब्द ल मूल रूप म स्वीकार करे चाही। काबर के मानक भाषा के रूप सर्वग्राही-सर्वव्यापी होना चाही। येखर बर भाषा म कुछ लचीलापन घला होना चाही। जुन्ना-जुन्ना साहित्यकार मन, कलाकार मन छत्तीसगढ़ी के जुन्ना शब्द जउन नंदावत हे ओला सहेज के नवा मनखे ल देंवय, नवा लइका मन घला छत्तीसगढ़ी लिख-पढ़ सकय येखर बर देवनागरी स्वर, व्यंजन, आधा वर्ण, संयुक्त वर्ण ला महत्ता देवंय। जेन शब्द मूल छत्तीसगढ़ी के हे तेमा आधा वर्ण या संयुक्त वर्ण, ष, श के उपयोग या बिल्कुल नई हे या नही के बराबर हे। ये सबो लफड़ा हिन्दी ले छत्तीसगढ़ी म अपभ्रंश के रूप म प्रयोग करब म होत हे। जब छत्‍तीसगढ़ी म अंग्रेजी के शब्द डॉक्टर, मास्टर, हॉफपेंट, रेल, जइसे शब्द ल बिना अपभ्रंश करे जेंव के तेंव स्वीकार कर ले गे त हिन्दी के शब्द ल मूल रूप म ग्रहण करे बर अतेक न नुकुर काबर।

रमेश कुमार सिंह चौहान

8 replies on “छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण बर”

रमेश चौहान जी, छत्तीसगढ़ी के मानकीकरन उपर लेख बर कोठी-कोठी बधाई। आप मानकीकरन के हर बिन्दु ल बड़ बेवस्थित ढंग ले समझाय के कोसिस करे हव। फेर कुछ बात हे जेमा असहमति हो सकथे ओकर उपर चरचा जरूरी हे। आप मानथव के मूल छत्तीसगढ़ी म एके ठन "स" होथे अउ वर्तनी बदले अउ अपभ्रंस ले यदि अरथ म कोनो फरक नइ  होवत हे तौ ओकर परयोग म आप ल आपत्ति नइ  हे। तौ "श" अउ "ष" ल छत्तीसगढ़ी वर्नमाला म सामिल करे के का मजबूरी हे? "संकर भगवान पारबती ल किहिस…"। ये उदाहरन म साफ ये वाक्य छत्तीसगढ़ी म लिखाय हे तब "संकर" के हिंदी अरथ निकलई ल सही कइसे मान ले जाय? ये पाय के हिंदी के जम्मो वर्न ल छत्तीसगढ़ी म सामिल करना छत्तीसगढ़ी भासा बर पहिली खतरा आय। छत्तीसगढ़िच म न हि हिंदी पट्टी के कतको बोली म  श, ष के परयोग नइ होय। बंगला म तो खाली "श" के उच्चारन होथे। तौ जेन वर्न के सही उच्चारन नइ हो सकय वोला जोड़े के का मतलब? लगथे हम हिंदी के दबाव अउ असर ले बाहिर होय बर डर्रावत हन। आप "श्री" बर अंगरेजी के उदाहरन देय हौ। का "निर्माण" ल अंगरेजी म जेंव के तेंव लिखे जा सकथे? छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी म "रमेश" ल "रमेस" ही केहे जाथे। चौहान जी, महूं मानथंव भासा बर मानकीकरन  जरूरी हे। फेर ये लंबा काम आय । ये धीरे-धीरे होवत रइही । छत्तीसगढ़ी अतेक सरल भाखा आय के वोला जइसे बोले जाथे वइसनेच लिखे घलो जा सकथे। येमा कठिन सब्द तो हइयेच नइ हे ये तो हिंदी के परभाव  के सेती बिगड़ जाथे। छत्तीसगढ़ी लेख म भाई मन जइसे के जघा जैसे, बइसाख ल बैसाख, कातिक पुन्नी ल कारतिक पूरनिमा लिखथंय। आप परदेसी राम वर्मा के उपन्यास अउ कहिनी ल पढ़ेच होहू। का वोला मानक छत्तीसगढ़ी नइ माने जा सकय? छत्तीसगढ़ी ल पहिली इसकुल मन म सुतंत्र बिसय के रूप म अनिवार्य करे के बात होना चाही। मानकीकरन अउ संविधान के अनुसूची म सामिल करे के बड़े-बड़े बात ले ये जादा जरूरी हे।

आदरणीय दिनेश भइया, सादर नमस्कार
आप छत्तीसगढ़ बर कब ले अथक प्रयास करत हंव । आपके ये प्रयास के मैं प्रणाम करत हंव । मैं हिन्दी क ेशब्द जेन छत्तीसगढ़ी म उपयोग होवत हे के वर्तनी म जोर देना चाहत हंव । स्पष्ट करना चाहिहंव छत्तीसगढ़ी के मूल शब्द म कोनो छेड़ छाड़ नई करना हे संग म हिन्दी शब्द के प्रयोग तब तक नई करना चाही जबतक छत्तीसगढ़ी शब्द नई मिलय । निश्चित रूप ले मानकीकरण एक चर्चा के विषय हे । येमा सहमती-असहमती हो सकत हे । फेर चर्चा करके बीच के रद्दा निकालेच ल परही । मानकीकरण कोनो भाषा के होय हे हठधर्मिता ला त्याग के होय हे । जब हम स्कूल म छत्तीसगढ़ी पढ़ाना चाहत हन ।ं जादा ले जादा मनखे छत्तीसगढ़ी लिखय पढ़य कहिके सोचत हन त ये तभे संभव हे जब हम अपभ्रंश ले बची । हिन्दी के अपभ्रंश दूनों भाषा बर घातक हे अइसे मोला लगथे । ‘सिरी‘ छत्तीसगढ़ी शब्द नो हय । येखर छत्तीसगढ़ी होय के कोनो प्रमाण नई दिखय । ये केवल अपभ्रंश आय । अइसन अपभं्रश के जगह मूल हिन्दी शब्द के उपयोग करे के आग्रह करत हंव । हमर राज्य म बहुत विद्वान हे सब चर्चा करके कोनो रद्दा निकालही ये विश्वास अउ आशा म ये चर्चा करे के कोशिश करे हंव ।
चर्चा करे ले ही समस्या के निदान होही असहमती ल सहमती म बदले जा सकही । भाषा के लड़ाई म आप संग हमू खड़े हन भइया ।

कामेश्‍वर पाण्‍डेय जी के टिप्‍पणी, फेसबुक म –
बहुत बढ़िया लेख। मानकीकरण हर भाषा ल परिष्कार देथे। अपभ्रंश के वर्तनी के ढीलापन ल छोड़ के चुस्त-दुरुस्त होए बर परथे। हिन्दी से लेहे शब्द मन के जबरन अपभ्रंश बनाना उचित नइ ए।

हमर भाखा के मानकी करन के पावन चर्चा साहित्य जगत मा अब्बड़ होवत हे।ए हा होना घलो चाही। कहूँ बोली ल भाषा के दर्जा पाये बर मानक रुप जरुरी हे त हमरो मातृ बोली के मानक रुप बना
ये मा कोनो हर्जा नइये।फेर ए काम अपने अपन मा विवाद कर के झन होवय।चर्चा करके होवय।दू के झगरा मेँ तीसरा मन फ़ायदा उठाते हेँ।
श्री रमेश चौहान जी के लेख ए रद्दा मा चले बर बड़ उपयोगी हे। सिरतोन कहना हे अपभ्रंश के प्रयोग आने अर्थ देवय अइसन नइ होना चाही।
हिंदी ह हमर महतारी भाखा के महतारी ए।महतारी के गुन तो आबे करही।एमा परहेज काबर ? हाँ अतका धियान देना जरुरी हे कि दाई ह अपन बेटी ल रातदिन तोपे झन राहय । नही ते विकास रुक जही।अउ वो दिखही घलो नही–साहित्य के अँगना मा।

हमर महतारी भाखा के मानकी करण के सार्थक चर्चा अउ लेख बर भइया संजीव तिवारी जी अउ गुरतुर गोठ ला बधाई।

सुग्घर लेख रमेश भैया
आपके ​बिचार ले पूर्ण् रूप से सहमत हंव,संज्ञा शब्द ल ज्यों के त्यों ​लिखव,दूसर भाखा के आये शब्द ल घलो ज्यों के त्यों ​लेवव, व्यकितवाचक संज्ञा म स,श,ष के पूरा प्रयोग होना चाही तब तो छत्तीसगढी के सही मानकी करण हो पाही, श्री ल सिरी अउ सिरीमती लिखना अनुचित हवय,अइसन करे ले छत्तीसगढी क्लिष्ट हो जाही, बोलचाल के बात अलग ये लेकिन जब लेखन होय त जम्मो संज्ञा शब्द ल ज्यों के त्यों ही लिखना चाही नवा रचानाकार मन खासकर ध्यान देवव

श्री रमेश चौहान भईया के कहना बिल्कुल सही हे कि हमसबो ला हर शब्द ला
अपभ्रंस नई बनाके हिन्दी शब्द ला सिधा-सिधा प्रयोग करना चाही। अउ तीनो स श ष ला तको सामिल कर लेहे मा कउनो परसानी नई होना चाही।
मानकीकरन के समस्या ला छय महिना के सर्वे मा हटाय जा सकत हे फेर का देरी हे सबो साहित्यकार मन ला काम मा लगा के तो देख। छय महिना मा एति के तेतीकर देबो।
।।जय छत्तीसगढ़।।

रमेश चौहान के मानकी करण के लेख बहुत बढ़िया हे।येला सब ल मान लेना चाही ,गुरतुरगोठ के प्रयास बहुत अच्छा हे.संजीव ल अब मेहनत करके सबके लेख के आधार बना के एक लेख प्रकाशित कर देना चाही जेमा सब झन के विचार राहय।येला राज भाषा ल दे देना चाही।
हमन प्रौढ़ शिक्षा बर प्रवेशिका तैयर करे हन “आखर झांपी ” हिंदी म अउ “अंजोर डगर ” छत्तीसगढ़ी म ,येमा हमन हिंदी के सब वर्ण माला ल लेय हन।छत्तीसगढ़ी ले हिंदी डाहर नवसाक्षर मन ल लेगे हन।24 पाठ म नवसाक्षर मन महतारी भाषा ले पढ़ाई शुरु करके हिंदी घलै पढ़े बर सीख जथें।
अब तो मानक बन ही जाना चाही।

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