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व्यंग्य

बड़का कोन

सरग म खाली बइठे बइठे गांधी जी बोरियावत रहय, ओतके बेर उही गली म, एक झिन जनता निकलिस। टाइम पास करे बर, गांधीजी हा ओकर तिर गोठियाये बर पहुंचके जनता के पयलगी करिस। गांधी जी ला पांव परत देखिस त, बपरा जनता हा अकबकाके लजागे अऊ किथे – तैं काकरो पांव पैलगी झिन करे कर बबा ….. अच्छा नी लगे। वइसे भी तोर ले बड़का कन्हो मनखे निये हमर देस म, तोला ककरो पांव नी परना चाही। गांधी किथे – तोर जय होय जनता जी। भारत म तोर से बड़का कन्हो निये जी, मय साबित कर सकत हंव। जनता सोंचत हे, गांधी बबा पगला गेहे कस लागथे। जनता केहे लगिस – हमन हा आज तक, कभू चांटी फांफा ले बड़का नी होय हाबन, तोर कस बड़ मनखे के रहत ले, कइसे बड़का हो जबो। गांधी किथे – जनता के आगू सब नत मसतक हे, तूमन अपन आप ला नानुक काबर समझथव। जनता किथे – जे पाये ते जनता ला, रऊंदत खूंदत, पेलत ढपेलत, गिरावत परावत, हुदरत कोचकत, मारत पीटत, हुदेलत ईंचत, कान खींचत, बाहां मरोड़त, छाती म मूंग दलत, गोड़ मढ‌हावत निकल जथे अऊ तैं जनता बड़े आय कहिके मजाक करथस ……….., तोला कहिं नी लागय बबा ……..। गांधी किथे – जनता ला भारत म जनारदन के दरजा दे हाबे अऊ तूमन अइसन निगेटिव बात काबर करथव। जेला ऊंच म इसथापित करना हे तेला परीकछा पास कराये बर अइसन निगेटिव टाइप के बूता राखे जाथय। जनता किथे – गलत कहत हस बबा तैंहा, निगेटिव बात में नी करत हंव, में सिरीफ बतावत हंव के हमर संग निगेटिव करे के छमता रखइया मन, हमर छाती म गोड़ मढ़हा के, हमन ला दुख दे के ऊंचई पाथे। हमन ला ऊंच राखतिन या हमन ला बड़का समझतिन त, हमर नाव म कतको काम बूता होतिस। तैं सबले बड़का आवस गांधी बबा तेकर सेती, तोर नाव म इनाम, तोर नाव म योजना, तोर नाव म चउक चउराहा, इसकूल कालेज, सरकारी भवन पुल पुलिया हाबे। हमर नाव म काहे तेमा ……….। गांधी किथे – जतका केहे तेमा सिरीफ नाव मोरे हे फेर सब तुंहरेच बर आय ……….., अब तुहीं मन बतावव के कोन बड़े। रिहीस बात नाव के त सुन, जनता के, जनता दुवारा, जनता बर सासन ला, तुंहर नाव ले, जनतंत्र राखे गे हे, देस के पूरा सासन तुंहर नाव ले चलत हे, येकर ले बड़का सममान का हो सकत हे ……… अब तुंहर का कहना हे ….? जनता किथे – सासन म नाव हमर, फेर कती मेर हमन हाबन येमा ………. ?
फइसला होवत नी दिखीस, बात चित्रगुप्त तिर पहुंचगे। चित्रगुप्त किथे – न ये बड़े, न वो बड़े, दुनो बरोबर, बलकी दुनो सबले छोटे …….। चित्रगुप्त के बात सुनके, दुनो सुकुरदुम होके मुहुं ला फार दिस। दुनो पूछिन – कइसे ? चित्रगुप्त किथे – मोर नजर म दुनो बरोबर हव। जइसे हाड़ा हाड़ा अऊ सेफला गांधी दिखत हे तइसनेच जनता घला दिखत हे। जइसने लंगोट म गांधी लपटाहे, तइसनेच फरिया म निरवहन करत हे जनता। बिगन छांय के, चऊंक चउराहा म जइसे खुल्ला धूप, बरसात अऊ जाड़ सेहे बर गांधीजी मजबूर हे तइसने, खदर छानी तरी, मउसम ले जादा छदम योजना के मार सहत, जनता घला मजबूर हे। तूमन सिरीफ एक बेर बड़े बनथव। बाकी समे सबले छोटे रहिथव। दुनो पूछिन – कब ? चित्रगुप्त किथे – जब चुनई आथे तब ………., गांधी के नाव म बोट मिलथे तेकर सेती गांधी बड़े बन जथे अऊ जनता हा बोट देवइया आय तेकर सेती जनता बड़े बन जथे। रिहीस बात सबले छोटे होय के, ओला में का बतावंव, चुनई सिरावन दव ………….., अगले चुनई के घोसना के पहिली तक, तुंहर ले छोटे कन्हो नी रहय ……….।
गांधीजी अऊ जनता दुनों मुड़ी धरके बइठगे। दुनों के गलतफहमी दूर होगे। एक दूसर ला किड़कि‌ड़ ले पोटार लिन अऊ बड़का कोन के बहेस बर पछताये लगिंन अऊ अपन उद्धार बर, सहींच के बड़का मनखे के रसता निहारे लागिन ।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा .