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छंद दोहा

बाहिर तम्बू छोड़ के, आबे कब तैं राम

गली गली मा देख लव,एके चरचा आम ।
पाछु सहीं भुलियारहीं ,धुन ये करहीं काम ।

अाथे अलहन के घड़ी,सुमिरन करथें तोर ।
ऊंडत घुंडत माँगथे ,हाथ पाँव ला जोर ।

मतलब खातिर तोर ये ,दुनिया लेथे नाँव ।
जब बन जाथे काम हा, पुछे नही जी गाँव ।

कहना दशरथ मान के ,महल छोड़ के जाय ।
जंगल मा चउदा बछर ,जिनगी अपन पहाय ।

तुम्हरो भगत करोड़ हे, बाँधे मन मा आस ।
राम लला के भाग ले, जल्द कटय बनवास ।

फुटही धीरज बाँध ये, मानस कहूँ निराश ।
आही परलय जान ले ,होही गंज बिनाश ।

लेके तोरे नाँव ला , सजा डरिन निज धाम ।
बाहिर तम्बू छोड़ के , आबे कब तैं राम ।।

ललित नागेश
बहेराभॉठा (छुरा)
४९३९९६

One reply on “बाहिर तम्बू छोड़ के, आबे कब तैं राम”

बढिय़ा ललित भाई!सरलग लगे रा।दोहा म आनंद आगे

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