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व्यंग्य

इहां… मना हावय

हमर देस मा तुंह जिहां भी कोनो सार्वजनिक जगह, सरकारी जगह मा जाहा तव उहां के भिथियां म कुछु न कुछु बोर्ड मा लिखाय सूचना पाहा। जइसे के “जइसन किसिम-किसिम के सूचना भिथिया म टंगाय रहिथे। फेर हमर देस के मनखे मन के कुछु आने च काम चलथे। इहां मनखे मन जिहां लिखाय देखहिं के “इहां थूकना मना हावय” के बोर्ड ल देखके मनखे के मन मा थूंके के इक्छा कुलबुलाय लगथे अउ तुरते उन पच्च के दे थे। तहां ले उहां ले तुरते निकले लेथे के कोनो देखय झन। हमर सरकार अउ अधिकारी मन ए समस्या के हल निकालत-निकालत थकगे। फेर लोगन मन के पच्च ले देहे के आदत नइ गइस। ए आदत ल छोराय खातिर कइ झिन अधिकारी मन अपन आपिस के भिथिया अउ कोंटा म जम्मो किसिम किसिम के संदेश लिखिवा देथें, फेर वाह रे थूंकइया मन के थूंकाइ जिहां सुघ्घर भिथिया पावत हे तहां ले भइगे पच्च के दे देंथे।




थूंकइया मन ल रोके खातिर तव सरकार ल बिदेस कस दांड भरवा लेना चाहि। थूंकइया दांड ले सरकार के खजाना घलो भर जाहि। अउ एक ठिन उदीम करना चाहि के सूचना बोर्ड म इहां थूकना मना हावय लिखवाय के जगा म इहें थूकना हावय लिखवा के टंगवाना चाहि। काहे के मनखे मन ल जेन काज करे बर कहिया तेन कारज ल नइ करय अउ ओखर उलटा कारज करथें।

मोला त लगथे के हमर आदत कस परगे हे जेन कारज ल करना हे तेला छोरके ओखर उल्टा कारज करना। तुंहू मनन देखत होहा के पारा मोहल्ला मा जिंहा कचरादानी रखाय रहिथे अउ ओमा लिखाय घलव रहिथे के “अेमा कचरा मेंलव” तव देखिहा के कचरादानी सफ्फा रखाय रइ जथे अउ ओखर अगल-बगल म कचरा कुढ़ाय रहिथे। कचरा मेंलइया मन घलव थूंकइया मन ले कम नइ हे इहू मन जिहां सफ्फा जगा देखथें उहें कचरा ल मेल देथे। आजकाल तव जबले पन्नी आयहे कचरा मेंलइया मन ल बने सुभिता होगे हे। जम्मो कचरा ल पन्नी भितरी डाला अउ बने गठियां के दू पइत घुमार के सांय नइ करयं के ए पन्नी ल कोनो गाय गरुवा मन खांवय के कचरा बगरय। बड़का गाड़ी वाले मन घलो अपन घर के कचरा ल जेमा मरे मुसुवा, टूटहा करसी, पन्नी, खरहरा, बहरी अउ कोला बारी के जम्मो कचरा ल पन्नी म भरके लानथें अउ कोंटा-कांटी म उलअ के पल्ला हो जथे। अइसनहे ” इहां गाड़ी रखना मना हावय” जिहां लिखाय रहिथें उहिच तीरन जम्मो मनखे मन के गाड़ी ठड़ियाए रहिथे। इंखर एकेच उपाय हावय के उहां ” इहेंच गाड़ी रखना हावय” के बोर्ड लगा देना चाहि।




अइसनहे तुंहला जगा-जगा म सूचना लिखाय बोर्ड देखाउ पर जाहि। अच्छा एकठिन अउ गोठ तुंहला बताय ल भूलागेंव कइ जगह म तुंह बोर्ड ल देखइहा ओमा हमर इहां के डेढ़ हुसियार मन अपन कोतिले कुछ न कुछ जोड़ देथें या फेर काट देथें। अेखर बानगी देखव “इहां थूंकना मना हावय” तव इनमन ओमा ले मना आखर ल काट देथे या फेर मिटाल देथें अउ तहां पच्च ले। आजकाल एकठिन उड नवा बोर्ड कईयों जगह मा देखाड आवत हे जेमा लिखाए रहिथे “इहां मुंहू मा गमछा बांध के आना मना हावय”। काहे के मुंहु मा गमछा बंधवईया मन के तदाद आलकाल बाढ़त जावत हे। टूरा हो के टूरी चाहे दिन हाेवय के रात, घाम होवय के रात, गरमी होवय के जाड़ टूरा टूरी मन बारो महिना आठों काल मुंहु मा गमछा बांधे किंदरत रहत हावय। वइसे घाम के बेरा मा मुंहु मा गमछा बांधे ले फायदा हाेथे। फेर अेखर जादा फायदा अपराधी मन घलव उठावत हावयं। मुंहु मा गमछा बांध के लूटापाट करथें अड पल्ला हो जथें। मुंहु बंधाय ले उनला कोनो नइ चिन पावय। अेखरे खातिर बैंक अउ दुकान जइसे जगह मां “इहां मुंह मा गमछा बांध के अाना मना हावय” लिखाय रहिथे। फेर हमर डेढ़ हुसियार मन कहा मानने वाला हे उन तव मुंहु ल बांधेच के उहां खुसरथे। आघु स्कूल कालेज म नियम बनाय रहिन के टूरी मन ल चुन्नी बांध के आना हे। ओ बखत नारी सेना वाले मन भारी हो हंगामा करे रहिन के- अइसनहा नियम हमर अजादी म बंधन हे, हमर अस्मिता के अपमान हे, परदा परथा गलत हे। फेर आज देख लेवा उही बन दिनरात परदा करके किंदरत हावय। अेखर बर के उपाय लाना चाहि के जम्मो झिन ल मुंहू म गमछा बांधके आना हे तव देखिहा दूसर दिन ले सब्बोझिन के मुंहू ले गमछा हट जाहि। अब एइसे म का हो सकत हे संगी।

विवेक तिवारी
बिलासपुर