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व्यंग्य

व्‍यंग्‍य : कब मरही रावन ?

गांव म हरेक पइत, दसरहा बखत, नाटक लील्ला खेलथे। ये दारी के लील्ला, इसकूल के लइका मन करही। लइका मन अपन गुरूजी ला पूछीन – काये लील्ला खेलबो गुरूजी ? गुरूजी बतइस – राम – रावन जुद्ध खेलबो बेटा। मेंहा रात भर बइठ के पाठ छांट डरे हौं। कोन कोन, काये काये पाठ करहू ? अपन अपन हिसाब ले देख लौ। हां, एक ठिन गोठ जरूर हे, जेन लइका जे पाठ करहू, वो पाठ ल अइसे निभाहू के, देखइया मन के मुहूं, आंखी अऊ कान, खुल्ला के खुल्ला रहि जाय। एकर बर, एक ठिन अभियास करे लागही, जेला कालीच ले सुरू करे बर लागही। लइका मन किथे – काये अभियास गुरूजी ? गुरूजी बतइस – जेला जे पाठ करना हे तेकर आदत के अभियास, अभू ले अइसे करव के, अभिनय के समे, नाटक हा सिरतोन कस लागय।
गुरूजी पूछीस – अभू हाथ उठाओ, राम कोन कोन बनहू ? कक्छा में बइठे, जम्मो लइका के हाथ उठगे। गुरूजी किथे – जम्मो झिन राम बनहू, त बांचे पाठ ल कोन करही जी ? काली अपन अपन महतारी बाप ल पूछ के आवव के, काये पाठ के अभियास करवा सकत हे ओमन।
दूसर दिन – कक्छा म सन्नाटा छाये रहय। गुरूजी के आतेच साठ, गांव के धन्ना सेठ के लइका केहे लागीस – गुरूजी, में राम नि बनो। गुरूजी पूछीस – काबर ? लइका किथे – मोर घर के मन मना करत हे। ओमन कहत हे, में राम के पाठ नि कर सकंव। मोला घर म, राम के अभियास कोन कराही। बाबू ल देखथंव – बिहनिया ले धान तउले के समे केऊ खेप कांटा मारथेच, हमर दई हा हरदी मिरची म ईंटा पथरा पीस के मिलाथे रात ले, गोंदली के जमाखोरी करे बर, हमर बड़े भई पठऊंहा म फजरे ले निंगे रिथे। में पूछेंव तब कहिथें ‌ – अइसन नि करबो त, हमर धंधा में बढ़होत्तरी कइसे होही। हमन बड़े आदमी कइसे बनबो ? इही ल बिहाने ले संझा, महू सीखथंव गुरूजी, राम के आदत सीखे के मोर करा टेम निये, मेंहा राम के पाठ नि निभा सकंव।
गुरूजी, महूं राम नि बनव, गांव के सरपंच के लइका ठाड़ होगिस अऊ केहे लागीस – तेंहा जानत हस गुरूजी, गांव म चुनई के समे आये हे। मोर घर म चेपटी के सीसी अऊ बड़ अकन पइसा सकलाये माढ़हे हाबे। घर म मनखे के खरीदी बिकरी, संझा बिहाने चलत हे। राम के आदत के अभियास त दूर, ओकर नाम लेके फुरसत निये कन्हो ल। हां ते कबे त, रावन भले बन जहूं। ओकर अलग से अभियास करे के कन्हो जरूरत निये। ओकर कस बूता रोज चलत हे हमर घर…..।
एक झिन लइका धिरलगहा किथे – महूं नि बनतेंव तइसे लागथे गुरूजी। गुरूजी पूछीस – तोला काये अड़चन हे रे……। लइका किथे – गुरूजी, मोर बाबू ये गांव के सबले बड़े अधिकारी आय। ओकर बिना पूरा विकासखंड में पत्ता नि हालय। ठेकेदार, नेता, करमचारी अऊ जनता के दे, घींव के रोटी खाथन गुरूजी। बिन रिश्वत के हमर घर आगी नि बरे। उही ल खा‌ – खा के हमू मन भरष्टाचार कस मोटावत हन। हमला तेंहा राम बना देबे, अऊ खेल देखाये के बेरा, रावन के वैभो देख मोर मन ललचागे अऊ तीर धनुस के जगा ओकर कमई म नजर परगे तब …..रावन कइसे मरही गुरूजी……। महू ल माफी दिहौ।
दरोगा के बेटा, बड़ बेरा ले अगोरत रहय। कतका बेर ये चुप होय त, मेंहा गोठियांवव कहिके……। जइसे बइठिस अधिकारी के लइका, तइसे ठाड़ होवत सुरू होगे – गुरूजी मेंहा राम बनिच नि संकंव। राम बन जहूं त कोन ल मारिहौं। रावन हमर दोस्त आय। हमर संस्कार म, अपराधी ल भरपूर सुरकछा देना हे, वोला कइसे भी करके अदालत के चंगुल ले बचाना हे। अब तिहीं बता, अइसन म राम के अभियास कहां करहूं ……। रावन ल मेंहा कइसे मार सकत हंव ?
बड़ डररावत उठिस वो लइका अऊ किथे – महूं राम नि बनो गुरूजी। मोर बाबू के अधिकारी मन, अपने कस करमचारी ल पसंद करथें। कभू निरासरित पेंसन पवइया, कभू इंदिरा आवास हितगराही, त कभू कुआं खनवइया, त कभू रोजगार गारंटी म पइसा कमइया मनखे, खुदे मोर घर म हमर बांटा ल अमरा देथे। राम कस, हमूमन गांव के, जंगल के, गरीब मनखे मन संग मिल बांट के खाथन, फेर अपन कमई के पइसा ल नि बांटन – इहीच करा फरक हो जथे। इही फरक मोला राम बनन नि देवत हे गुरूजी। मोर बाबू किथे के, आदत सुधारे के फेर म, मेंहा सुधर गेंव तब….., जब मोर समे आही, मोर घर के चूल्हा कइसे जलही, मोर तनखा के पइसा कतेक पुर जही गुरूजी। मोला छिमा देबे गुरूजी, में गलत आदत सीख अपन भविस नी बिगाड़ंव ……।
वकील के लइका, पूरा पइंट लिख लिख के धरे रहय। वो किथे – देख गुरूजी, तेंहा मोला रावन बनाबे, त तोला अतका अस फायदा होही। जतका होही ओमे, सिरीफ आधिया दे देबे, वूहू म केस फाइनल होये के पाछू। गुरूजी किथे – काये केस रे बाबू ? लइका किथे – कहींच नि जानस गुरूजी, रावन बनाबे त, मोला मरे बर परही, मोर बाबू, राम ऊप्पर केस करही, सेटलमेंट बर। बड़ अकन पइसा हकनाबो, उही म तोला हिस्सा मिलही गुरूजी। गुरूजी हाँसिस – अरे बुद्धू, सहींच के थोरे मरना हे रावन ल। फेर तें सहींच के मर जबे रावन बनके त, तोला कति करा ले फायदा होही। लइका किथे – वकीली पईंट ल ते का समझबे गुरूजी ? में सहींच मे नि मरंव, फेर मोर बाबू साबित कर दिही के, मोर लइका रावन बने रिहीस, सहींच म मरगे ओहा, फेर देख …….। राम बने म, कन्होच बूंद भर फायदा रहितीस, त उहू ल सोंचतेंव। ले आज सोंच ले गुरूजी, ये ले मोर बाबू के मोबाइल नम्बर। कालीचे गोठिया सकत हस।
सन खाके पटवा म दत गे गुरूजी। वोहा सोंचे नि रिहीस तइसन, तइसन बात सुने ल मिलत रहय। एक झिन लइका किथे – गुरूजी मोरो ल सुन लेते का ? गुरूजी किथे – हां बोल बेटा। लइका किथे – महूं रावनेच बनतेंव गुरूजी……। राम नि बनंव। रावन बनहूं त ओकर लंका बनाये बर, बड़ अकन के टेंडर होही। में रावन बनहूं, त मोर चलही। मोरे बाबू ल ठेका मिलही। अइसे झिन सोंच ……., तहूं ल तोर बांटा देवा देतेंव गुरूजी। ए बछर ठेकादारी म बड़ नकसान होहे हमर, गुरूजी ………., मोला रावन बना के एकर भरपाई करा देतेव … तुंहर बड़ किरपा होतिस।
कोन्हो कुछु बहाना बनाए, कोन्हो कुछु। राम बने बर कन्हो तियार नि होत रहय। एक झिन लइका बांचे रहय। सबले पाछू बइठे रहय वोहा। गुरूजी किथे – भकाड़ू, तेंहा कुछु नि गोठियात हस, राम बनबे रे तेंहा ………। बड़ मुसकल ले खड़ा होइस अऊ किहीस – हव गुरूजी, राम बने के बड़ हिच्छा हे, अपन बाबू ल घला पूछे हंव, फेर कते रावन मोर ले मरही …….. ? मोर करा – न तन म कपड़ा, न पेट म रोटी, न रेहे के छत। ले दे के खड़े होवत हंव त, तिहीं देख ………, कतका झिन मोर गोड़ ईंचत हे, डेना ल हेचकार के बइठ जा तेंहा – ” तें का राम बन सकबे अऊ रावन ल काला मार सकबे “ कहिके कतको झिन कहत हे। मोला कोन संग दिही, रावन मारे बर……। इहां जतका झिन बइठे हे, जम्मो रावन के संगवारी आय। मोर करा हथियार निये, कामेच मारहूं अतका झिन कोरी खइरखा रावन ल……। मोर चलतिस गुरूजी, त एक्को रावन ल नि बचातेंव। मेंहा खाली नाटक – लिल्ला के गोठ नि करत हंव। मेंहा असल जिनगी के रावन ल घला मारतेंव, फेर ये रावन मन, रावन मरगे कहिके, ओकर पुतला लेस के भरमा देथे। हमू मन इंकर बात म आ जथन, अऊ बछर भर फेर चुप बइठ जथन, फेर आ जथे दसरहा, फेर धोखा खा जथन…….।
रावन नी मरीस। बिगन राम बने, फोकटे फोकट रावन के पुतला लेसागे, रावन जीतेच हे, अगले बछर राम के हाथ मरे के, अगोरा म ……..।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा
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