Categories
कहानी

लघुकथा-किसान

एक झन साहब अउ ओकर लइका ह गांव घूमे बर आइन।एक ठ खेत म पसीना ले तरबतर अउ मइलाहा कपडा पहिर के बुता म रमे मनखे ल देखके ओकर लइका पूछथे-ये कोन हरे पापा?
ये किसान हरे बेटा!!-वो साहब ह अपन बेटा ल बताइस।
‘ये काम काबर करत हे पापा?’
“ये अन्न उपजाय बर काम करत हे बेटा!”
‘ये मइलाहा कपडा काबर पहिरे हे पापा?’
“ये गरीब हे ते पाय के अइसन कपडा पहिरे हे बेटा!”
‘अच्छा!!त किसान ह गरीब होथे का पापा?’
“हहो!हमर देस के जादातर किसान गरीब हे बेटा!”
‘तब तो में ह साहब बनहूं पापा!’-लइका ह कथे।
“साबास!!बेटा!तें जरूर साहब बनबे।-अपन छाती तानके साहब ह थे।
लइका फेर तुरते एक ठ सवाल पूछथे-फेर पापा!साहब बनहूं त में ह खहूं काला?किसान के अइसन दुरगति ल देखके जम्मो साहब बनबो कही त अन्न ल कोन उपजही पापा?अउ अन्न नी रही त काला खाबो पापा?
साहब लइका के सवाल ल सुनके मुडी ल गडियादिस।

रीझे यादव
टेंगनाबासा(छुरा)493996

2 replies on “लघुकथा-किसान”

Comments are closed.