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कहानी

नान्हे कहिनी – मन के पीरा

आज बिहनिया जुवार चंपा अउ रमेसरी नल मेर पानी भरे के बेरा म संघरिन त चंपा ह रमेसरी ल ठिठोली करत पूछथे-का होइस बहिनी! काली तो तोला देखे बर सगा उतरे रिहिस का?
रमेसरी ओकर सवाल के अनमनहा जुवाब देवत किथे-हव रे! सगा मन आइन। चहा पीइन अउ फोन नंबर मांगके चलते बनिन।
चंपा फेर पूछथे-अई! का होगे बहिनी। सुंदर -रूप म तो बने हस गोई! फेर बारमी किलास तक पढे तो घलो हस। फेर काबर नखरा मारिस दोगला मन!!
रमेसरी किथे-मोर पढई ह मोर जी के जंजाल होगे हे बहिनी। आज काली के टूरा मन ह सिरिफ गुटका खाके थूंके बर अउ कान म ईयर फोन गोंज के मुबाईल चपके बर सीखे हे। पढई लिखई बर गत नी चलय। आठमी दसमी फेल से लेके अप्पढ तक ह मोला देखथे अउ जादा पढे हे त एकर का जांगर चलत होही किके सोचत रेंग देथे। अब बता एमे मोर का गलती हे?
चंपा ह ओला दिलासा देवत किथे-सिरतोन म दीदी! नारी-परानी के दसा भाजी पाला ले ओपार होगे हे। हर एरा-गेरा ह हमन ल छांट निमार के चल देथे।अउ हमन ल आज घलो छेरी-पठरू बरोबर काकरो संग म बरो दे जाथे। पहिली नोनी मन नी पढय तेकर सेती भुगतय अउ अब पढ लिख डरे हे तभो भुगतत हवय।
अइसने मन के पीरा ल गोठियावत दूनों झन अपन-अपन घर डहर चलदीन।

रीझे यादव
छुरा(टेंगनाबासा)
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