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व्यंग्य

मुद्दा के ताबीज

केऊ बछर के तपसिया के पाछू सत्ता मिले रहय बपरा मनला। मुखिया सोंचत रहय के, कइसनों करके सत्ता म काबिज बने रहना हे। ओहा हरसमभव उपाय करे म लगे रहय। ओकर संगवारी हा देसी तरीका बतावत, एक झिन लोकतंत्र बाबा के नाव बताइस जेहा, ताबीज बांध के देवय। लोकतंत्र बाबा के ताबीज बड़ सरतियां रिहीस। जे मनखे ओकर ताबीज पहिर के, ओकर बताये नियम धरम के पालन करय तेला, ओकर वांछित फल खत्ता म मिलय।

एक दिन लोकतंत्र बाबा तिर पहुंचगे मुखिया हा। बाबा तकलीफ पूछिस। मुखिया कहिथे – तकलीफ कहींच निये बाबा। सिरीफ येके ठिन फिकर रहिथे के, अत्तेक बछर के मेहनत म सत्ता मिले हे हांथ ले झिन छूटय। बाबा किहीस – नी छूटय। उपाय कर देथन फेर, कुछ नियम हे तेला पालन करे बर परही। मुखिया कहिथे – सत्ता ला हांथ म चपक के राखे बर, हरेक नियम धरम अऊ सरत मनजूर हे बाबा। बाबा कहिथे – कोई बहुत बड़का नियम निये गा। एक ठिन ताबीज देवत हंव, येला कभ्भू झिन उतारबे चाहे कतको गरगस लागय। येला टोंटा म लटकाके राखबे अऊ जनता ला जब पाये तब, देखावत रहिबे। मुखिया कहिथे – टोंटा म लटकाना तो ठीक हे बाबा फेर, जनता ला जब पाये तब देखा के, काये करबो ? बाबा कहिथे – निचट भकला अस यार, पहिली बार मुखिया होय के सवाद चिखे हस कस लागथे। मेंहा ताबीज म कुछ अइसे मंत्र बांध के देवत हंव जेला, जतका दिन तक लटकाके देखा सके म सफल रहिबे, ततका दिन तक, दुनिया म कोई माई के लाल, तोर हाँथ ले सत्ता नी नंगा सकय।

मुखिया हा लोकतंत्र बाबा के बात समझिस निही। बाबा हा फोर के बताये लगिस। बाबा किहीस – मंदीर के मुद्दा, आरकछन के मुद्दा, करिया धन के मुद्दा, झीरम के मुद्दा, घोटाला के मुद्दा, देसी बिदेसी के मुद्दा, महंगई के मुद्दा अऊ बिकास के मुद्दा ला, ताबीज म भर के देवत हंव। येला जब तक लटकाये रहिबे तब तक, सत्ता म बने रहिबे। बीच बीच म जनता ला देखाके, आसवस्त करबे के, तुंहर समसिया के भार ला, अपन टॉंटा म लटकाके किंजरत, तुंहरे बर मरत हंव। एक बात अऊ, जे दिन मुद्दा के ताबीज ला लटकाये के बजाय, अपन होसियारी देखाबे ते दिन, बिपक्छ म बइठे बर तियार रहिबे। मुखिया समझगे। बीते समे कस, मुद्दा ताबीज बनके फेर लटकगे, को जनी अवइया कतेक बछर बर ……….. ।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा