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व्यंग्य

परजातंत्र

परजातंत्र उपर, लइकामन म बहेस चलत रहय। बुधारू किथे – जनता के, जनता मन बर, जनता दुआरा सासन ल, परजातंत्र कहिथें अऊ एमा कोई सक निये। भकाड़ू पूछीस – कते देस म अइसन सासन हे ? मंगलू किथे – हमर देस म ……, इहां के सासन बेवस्था, पिरथी म मिसाल आय। भकाड़ू किथे – तोर मिसाल कहूं डहर जाय, हमर देस म का सहींच म परजातंत्र सासन हे ? अरे हव रे …..के घांव बताहूं, इही परजातंत्र के जनम दिन म, हरेक बछर छब्बीस जनवरी के उतसव मनाथन – मंगलू फेर किहीस। भकाड़ू किथे -मैंहा जानत हंव, फेर में सोंचथंव के जइसे बड़े मनखे मन के याद म पुन्यतिथि मनाथन, तइसने परजातंत्र घला बड़का मइनखे रिहीस होही अपन जमाना के, ओकरे याद म ओकर पुन्यतिथि मनावत होबो। बुधारू हाँसत किहीस – हतरे भकाड़ू, निच्चटेच भकला अस यार, कहींच नी जानस, बपरा परजातंत्र ल जीते जियत मार डरे। भकाड़ू किथे – का ? परजातंत्र जियत हे …..? फेर ये तंत्र कतिंहा हे ? बुधारू बतइस – हमर देस म हे अऊ कतिहां रही, ओकरे सासन चलत हे यार, हमर गुरूजी थोरे लबारी मारही तेमा …….। भकाड़ू किथे – भलुक गुरूजी, अबड़ पढ़ लिख के गियानी धियानी बनगे हाबय, फेर मोला लागथे के दुनिया नी घूमे हय ओहा, मेंहा परजा के सासन चलत, कहूंच करा नी अमराये हंव। मंगलू किथे – टूरा चलगेहे का यार, रंग रंग के गोठियावत हे ? भकाड़ू किथे – निही में नी चले हाबंव, तैं बता भलुक, कती जनता के सासन चलत हे, हमर गांव म ? हमर गांव म पइसा के सासन चलथे, बाहुबल के सासन चलथे, पहुंच के सासन चलथे  ….। चुप रे नानुक रेमटा टूरा, जस नाव तस सोंच, बड़ गोठियाथस, तैं गुरूजी ले जादा जानबे – मंगलू टोंकिस ? भकाड़ू सीरियस होके पूछिस – तिहीं बता, रासन कारड बनाये बर, तोर बाबू कतका चक्कर काटीस, अभू तक नी बनीस अऊ तोरे तीर म रहवइया सेठ जेला आवसकता निये, ओकर रासन कारड ल अमराये बर, पंचइत के मुनसी खुदे घर पहुंचगे। सिवदयाल के परिया परे खेत म, पम्प लगाये बर दू बछर ले अवेदन बिजली आपिस म, अतगितान परे हे, अऊ जग्गू दादा के घर म, बिगन योजना के, सरकारी खरचा म, दू ठिन पम्प लगगे। कोंदी काकी घर सौचालय बनाये बर, अधिया के बात करत रिहीन, जबकी हमर बड़े गुरूजी के घर म पहिली ले सौचालय निये का …..उहां कइसे सरकारी सहायता ले दूसर बनगे। छन्नू मारिस टप्पले ‌- अरे भकाड़ू, सेठ पइसा वाला, जग्गू ताकत वाला अऊ बड़े गुरूजी पहुंचवाला, इंकर काम तो होबेच करही।  भकाड़ू किथे – उहीच महूं कहत हंव जी के, कते करा हे, जनता के सासन ? अरे मुरूख ये परजातंत्र हा, उप्पर ले आये हे, उंहीचे होही ओकर सासन – छन्नू तरक दिस। भकाड़ू फेर सवाल करिस – कती उप्पर के बात करथस जी, जनपद म नी देखस, काकर सासन चलत हे, अऊ उप्पर चइघ, जिला पंचइत, बिधानसभा अऊ लोकसभा राज्यसभा म घला दिखत निये का, कते परजा के सासन हे ?



मंगलू किथे – तोर तरक म जनता के सासन निये, सासन कन्हो करय, फेर जनता बर सासन तो हाबेच ना ? हांहिस भकाड़ू – कती जनता बर सासन चलत हे ? कती जोजना अभू तक परजा बर किरियानवित होये हे। सड़क जनता बर बनथे ? वइसना होतीस त, मोर गांव ल सड़क बर तरसत सत्तर बछर नहाकगे। हमर काकी के लइका, नानुक सरदी खांसी म, इलाज के अभाव म, रेंग दीस अऊ हमर मनतरी के सास, लाइलाज केनसर ले कइसे बने होगे ? गांव के सुखावत तरिया बर पानी लाने के चिनता कोन ल हे, अऊ सहर के तरिया म, हमरे नरवा के पानी ले, बोटिंग चलथे। धान हमन उपजाथान, फेर भूख म हमरे लइका मरथे ? पानी हमर, कोइला हमर, भुइंया हमर, मेहनत हमर ….. त बिजली बर, काबर हमन तरसथन ? अब तहीं बता, जनता बर सासन होतीस त, अइसन होतीस का ?



मनगलू किथे – जनता के दुआरा सासन चलथे, तभो ले अतेक पीरा……, दूसर के सासन रहितीस, त का होतीस ? भकाड़ू जवाब दिस – कती जनता के दुआरा सासन चलथे जी ? वा कइसे, जनतामन, जे जनता ल बोट देके जिताथे, उही जनता हा, खुरसी म बइठके सासन चलाथे – मंगलू किथे। भकाड़ू फेर किहीस – कती जनता आज तक जीतीस चुनई म छन्नू …….? जनता जेला वोट देथय, ते जीते नी सकय। बुधारू किथे – हमर गांव के सरपंच चुनई म, तोर घर के मन जेला वोट दे रिहीस, तिही जीतिस, अऊ तैं कइसे किथस के जनता के बोट ले, जनता नी जितय कहिके ? भकाड़ू बतइस – भगवान कसम……, हमर घर के मन, जनता ला बोट देबर सोंचे रिहीन फेर, पइसा के लालच म दूसर ल दे पारीन। छन्नू किथे – तुंहरे कस जनता के बोट म जितइया मनखे सासन करथे, एकर माने जनता के दुआरा सासन तो होइस का ? भकाड़ू फेर तरक करिस – जनता के दुआरा कहां सासन होइस, छन्नू भइया, जनता करा, ओतका ताकत निये के, ओहा जनता ला जिता सकय, ओतो पइसा के ताकत ले जीतत जाथें येमन। छन्नू किथे – फेर जितइया घला जनता ताय का ? भकाड़ू किहिस – जे अपन ले बने खड़े नी हो सकय, ते जनता, काला चुनई लड़ही अऊ काला जितही ?

जम्मो झिन के बोलती बंद होगे अऊ चांव चांव बंद होगे। जम्मो लइका, भकाड़ू ला गियानिक जान, केहे लगिन – त तोर कहना काहे भकाड़ू ……, न जनता के सासन आय, न जनता बर सासन आय, न जनता दुआरा सासन आय, त ओसन म, परजातंत्र के जनमदिन फोकटे फोकट, काबर मनाथन यार……। भकाड़ू किथे – मोर हिसाब ले, छब्बीस जनवरी के दिन ल, परजातंत्र के जयंती घोसित कर देना चाही, काबर के, ये तो उही दिन ले मरगे रिहीस, जे दिन जनम धरीस। चरचा सिरागे, झनडा फहराये के बेरा होगे ……..कतको परजातंत्र के जनम दिन मनावत हे, कतको पुन्यतिथि ………..?

हरिशंकर गजानंद देवांगन, छुरा

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