दू झिन संगवारी रिहीन। अब्बड़ पढ़हे लिखे रिहीन। अलग अलग सहर म रहय फेर एके परकार के बूता करय। दूनों संगवारी एक ले बड़के एक कहिनी कंथली बियंग कबिता लिखय, कतको परकार के अखबार अऊ पतरिका म छपय। हरेक मंच म जावय। फेर दूनों के रहन सहन म धीरे धीरे अनतर बाढ़त रिहीस। एक झिन अबड़ परसिद्ध अऊ पइसा वाला होगिस, ओकर करा गाड़ी बंगला अऊ सरकारी पद होगे। दूसर ल परसिद्धि मिलना तो दूर, अभू घला गोदरी ओढ़इया, चटनी बासी खवइया अऊ फूटहा खपरा के घर ल टपर टपर के रहवइया रिहीस। ताना मार मार के, ओकर सुआरी, ओकर देहें ला अधिया डरे रहय। ओहा खिसियाये के कनहो बेरा के ताकेच म दिखय। लइकामन अपन ददा के कमजोरी के तलास करे लगीन।
अमीरहा संगवारी के गुन के पता लगईन। पता चलीस के ओहा कलम के दुकान चलाथे, तभे अतेक अमीरी के सुख भोगथे। लइकामन पूरा बात ल समझिन निही। बैंक ले करजा लेके अपन ददा बर, कलम के दुकान खोल डरीन। करजा के बियाज अऊ दुकान के किराया पटाये के लइक कमा नी सकीन। भट्ठा बइठगे, करजा म टोंटा बुड़गे। फेर सुरता अइस अमीरहा कका के। एक झिन बतइस के, फकत कलम के दुकान खोले ले कनहो अमीर नी बन सकय जी …….। कतको झिन ले चिन पहिचान बनाये बर परथे ……। लइकामन बिगन बात समझे, फेर वापिस लहुंटगे। ये दारी कतको चिन पहिचान बनाये बर धर लीन। गांव गांव म साहित के अलख जगाके अपन ददा के पहिचान बनाये लगीन। अभू कलम के संग म कापी किताब, अऊ सरी इसटेसनरी समान बेचें लगीन। कतको दिन नहाकगे, फेर वाह रे गरीबी……. ओकर घर ल मंगर कस लीलत रहय। ददा ये दारी असकटागे, लइकामन उपर पुलिसवाला कस खिसियागे। पुरखा मनके बांचे खोंचे सबो चीज बस बेंचागे।
कलम बलदगे। अभू ओकर ढोंग के कलम म, बेईमानी के सियाही हमागे। मिठलबरा के जीभ, धोखा के नीब पहिरे कलम के रेंगना ला कोन मनखे नी देखना चाहे। अभू कपट के ढक्कन म सब तोपागे। अब ओकर कलम, जगा जगा बेंचाये लगीस। ओकर किसमत चमकगे। सहर के बड़ नामी मनखे बनगे। बड़े बड़े आयोजन, ओकर नाव अऊ फोटू बिगन, नी होय धरीस। देस के खियाती पराप्त साहितकार बनगे। बड़े जिनीस पुरसकार, पद पदवी के भागी बनगे ...........।
हरिशंकर गजानंद देवांगन, छुरा