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कहानी

लघुकथा : अमर

आसरम म गुरूजी, अपन चेला मनला बतावत रहय के, सागर मनथन होइस त बहुत अकन पदारथ निकलीस । बिख ला सिवजी अपन टोंटा म, राख लीस अऊ अमरित निकलीस तेला, देवता मन म बांट दीस, उही ला पीके, देवता मन अमर हे । एक झिन निचट भोकवा चेला रिहीस वो पूछीस – एको कनिक अमरित, धरती म घला चुहीस होही गुरूजी …..? गुरूजी किथे – निही…… एको बूंद नी चुहे रिहीस जी …। चेला फेर पूछीस – तुंहर पोथी पतरा ला बने देखव, एक न एक बूंद चुहेच होही …? गुरूजी खिसियागे – अरे भोकवा, एको बूंद चुहितीस त, धरती के कन्हो ला तो मिलतीस अऊ ओला लील के उहू अमर हो जतीस । मोर एक ठिन अऊ सवाल हे गुरूजी – एको बूंद नी चुहे रहितीस त, इहां जनम धरइया राजनीति काबर नी मरे गुरूजी …….? का वोहा देवता आये, जे सरग ले, अमरित पी के आहे …….? कारन खोजे बर, गुरूजी सरग सिधार दीस ……।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा
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