Categories
कहानी

कमरछठ कहानी : मालगुजार के पुण्य

-वीरेन्द्र ‘सरल‘
एक गाँव में एक झन मालगुजार रहय। ओहा गाँव के बाहिर एक ठन तरिया खनवाय रहय फेर वह रे तरिया कतको पानी बरसय फेर ओमे एक बूंद पानी नइ माढ़े। रद्दा रेंगईया मन पियास मरे तब तरिया के बड़े जान पार ला देख के तरिया भीतरी जाके देखे। पानी के बुंद नइ दिखय तब सब झन मालगुजार ला करम छड़हा कहिके गारी देवय। मालगुजार के जीव बिट्टागे रहय। मालगुजार इही संसो फिकर में घुरत रहय।
एक दिन ओला तरिया के देवता ह सपना दिस कि तैहा तोर दुधमुँहा नाती ला लानके मोरा कोरा म सौपबे तभे ये तरिया में पानी भरही। मालगुजार धरम संकट में फँसगे एक कोती तो मोर दुलरवा एक झन नाती अउ दूसर कोती पियास में अउ पानी बर तरसत कतको मनखे अउ आने जीव? काय करना चाही? मालगुजार सोचिस-‘‘ एक के जाय ले कोन्हो हजारो के जीव बांचही तब ओहा पाप नही बल्कि पुण्य होही। ओला कतको अकन महापुरूश मन के सुरता आइस जउन मन अपन जीव ला दे के कतको जीव के रक्षा करे रिहन। मालगुजार अपन मन ला कठोर बना के अपन नाती ला तरिया में सौपे के मन बना डारिस।
बिहान दिन कमरछठ के तिहार रहय। ओहा अपन बहू ला ठगत किहिस-अरे तोर ददा के तबियत ह मनमाने खराब हे कहिके संदेषा आय हे बेटी। तिहार बार के काहे ऐसो नहीं ते पउर घला बन जही। फेर दाई-ददा घेरी-बेरी थोड़े मिलथे। जा तैहा तोर ददा ला एक नजर देख के आजा। मैंहा डोला तैयार करके कहार मन ला बोल देथवं। काबर कि काली तिहार में उपवासिन मन ला नांगर जोताय खेत में नइ रेगे के नियम हे। तैहा मुंढरहा ले चल देबे।
बहू भल ला भल जानिस ओहा तैयार होगे। जल्दी तो आना हे कहिके अपन दुधमुँहा लइका ला नइ लेगिस अउ लकर-धकर डोला चढ़के मइके जाय बर निकलगे।
बहू घर ले निकलिस तहन मालगुजार ह तुरते बिहनिया च ले अपन नाती ला लेगे के तरिया के बीच में छोड़ दिस अउ घर में आके रोय लगिस।
लइका तरिया के कोरा में पहुँचिस तहन ओमे सन-सन पानी ओगरे के षुरू होगे। थोड़ेच बेरा में तरिया ह लबालब भरगे। पुरईन पान में छवागे। मेचका मछरी मन तउरे लगिन। चिरई-चिरगुन मन चहचहाय लगिन। अउ बीच तरिया के एक पुरइ्रन पŸा में मालगुजार के नाती ह गदबद खेले लगिस।
मझनिया जब बहू अपन मइके ले लहुटत रिहिस तब तरिया के तीर में ओला कोन्हो लइका के कुलके के आवाज सनई दिस। ओहा तुरते डोला ला रोकवाके तरिया पार में चढ़िस। पुरइन पŸा ह सर-सर-सर-सर तीर में आगे। बहू ह देखथे-ये दई! ये तो मोरेच लइका आय। येला इहां कोन बैरी ह लान के छोड़ दे हावे। ओहा लइका ला अपन हिरदे में लगा लिस अउ घर आगे।
घर आके देखथे तब ओखर ससुर ह मुड़ धरे मनमाने रोवत रहय। बहू ह पूछिस तब मालगुजार ह सब बात ला साफ-साफ बता दिस। बहू किहिस-ददा! कमरछठ भगवान के किरपा ले तरिया में पानी भरगे अउ तुहर नाती घला जियत-जागत हावे। लेव येला अपन कोरा में खेलावव। बहू ह लइका ला अपन ससुर ला पवा दिस। मालगुजार के मन गदगद होगे। जइसे मालगुजार अउ ओखर बहू के दिन बहुरिस वइसने सबके दिन बहुरे। बोलो कमरछठ भगवान की जय।