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परेम : कहानी

साकुर चैनल ल एति-तेति पेले असन करके बिकास पीठ म ओरमाये अपन बेग ल नहकाइस। बैंक भीतर पांव रखते साठ, अहा! कतका सुघ्घर गमकत, ममहावत ठंढा! जइसे आगि म जरे ल घीव म नहवा दिस। भाटा फूल रंग के पुट्टी अउ गाजरी रंग के पट्टी नयनसुख देवत रहिस। बिकास दूनों बाजू, एरी-डेरी, नजर दौडाइस।खास पहिचान के कोनों नइ रहिन। सब दूर के रिस्तेदार, डहरचलती पहिचान के,जेखर संग फटफटी म बइठे अइसने राम रमौआ हो जात रहिस। बिकास हाथ उठा के, हिलाके एकात झन ल हाय-हलो, राम-राम करिस।बैंक खचाखच भरे रहिस, भादो के तरिया जस लबालब। बैंक के वोतका बड़ जगहा कमे लगै।सब अपन-अपन काम म लगे रहिन- अधिकारी, करमचारी, साहब, बाबू,चपरासी, गिराहिक, एसी अउ कूलर घलोक। “आज तो दबा के भीड़ हे। हं, आज बाजार पाय के साइद” बिकास खुद से गोठियाइस। मावा लोग, माई लोगन के अलग-अलग लाइन लगे रहिस। दूनों म पढ़इया लड़की-लड़का, रोजगार गारंटी वालें अउ रोज के निकलैया – धरैया सेठ महाजन मन घलो बोजाये रहिन। पढ़ई के पइसा मिलत रहिस।मावा लोग के लाइन बाजू आघु म खड़ा होके सेंंध मारिस, “सर, थोकिन एंटरी कर देतेव।” बिकास अपन इस्कूल के पासबुक ल कंपूटर के आघु म बइठे साहेब डाहर बढ़ाइस।कंपूटर बाबू उचटती नजर ले पास बुक डाहर देखिस ” हां, हो जाएगा, थोड़ा रुको।” साहब अपन काम जारी रखिस। खच, खच, खट, खट कभू एति के बटन, कभू वोति के बटन दबावै, कभू बारिकी से कंपूटर ल देखै।सर-सर पन्ना पल्टावै,खट – खट दस्खत मारै, नाम चिल्लावै फलाना बाई, फलाने राम…अउ फेर जवाब पाके झट्ट ले करेंसी देवै।कठफोड़वा के चोंच जुगुत वोखर हाथ, आँखि,पेन चलत रहिस।आज बाजू वाले साहब नइ आये रहिस ते पाय के अउ जादा लकर-धकर रहिस। उपर ले बईसाख के महिना।गंजमंज-गंजमंज होवत रहिस। कतको कूलर चलत रहिस तेनों पसीना अउ पाद के गंध ल भगाए म कभू- कभू फेल खात रहिस।
एक अक मिनट बाद बिकास अउ बोलिस “एक मिनट लगही सर, थोड़ा सा कर देतेव।” “हव न सर, ये दो चार लोगों को निपटा दूँ फिर कर दूंगा।” साहब के बोली खीझे असन रहिस।बिकास के खाता दूसर बैंक म रहिस। ये बैंक म कभू च कभू आवै इस्कूल के नाव से। तेखर सेती जादा पहिचान नइ रहिस। “सर सुब्बह के निकले हौं। डेढ़ बजत हे। परो दिन घलो आये रहेंव, जानत हौ।थोकिन के काम आवै सर। केस बुक म चढ़ाना हे तेखर सेती आवै।” बिकास गुरुजी ल अब्बड़ बेरा होगे रहिस। पेट म मुसुवा मन दंउरी फांदे रहिन।इस्कूल के परभार के दस ठन काम- झंझट।अउ सबले जबर टेंसन तनखा के।कोई टाइम टेबल नहीं। काम कराए बर एकसेक से नियम धरम, अउ तनखा देये बर ? अपना काम बनता…..जनता।…..जय राम जी की…। उपर ले बाईजी के सक, ठोसना ” सढ़े गियारा म छुट्टी होथे कहिथस जी। एक बजे, डेढ़ बजे आथस। दस किलोमीटर बर अतका टाइम! का करत रहिथस जी?” दस किसिम के टेंसन। कतेक ल बतावत फिरै अपन बाई ल के बैंक वाले ल? बिकास जल्दी चाहत रहिस।
गुरुजी सुभाव के मुताबिक फेर चिरउरी करिस। ” सर…” अइसे भी वोला भरोसा रहिस के जेन हिसाब से गुरुजी पद के बखान करे जाथे वो हिसाब से वो ला जगह मिल जही। फेर.. ” देख तो रहे हो सर,मैं खाली थोड़े बैठा हूँ। ” साहब के अवाज म तल्खी रहिस। “ये लोग भी तो सुबह से आये हैं, लाइन में लगे हैं..।” अतका कन बात पैंतीस अक बछर के बिकास ल अपन,गुरुपद के घोर बेइज्जती लगिस। “साले ल नाटक करथें। परसो एंटरी करिस त सहीं जगह म नइ करे रहितीन, पीछू म करे हें। मैं वोखरे आधार म थोड़े चढा दौं। बस,लगे राह इंखरे पीछू? भाव खाथें साले मन। आदमी के अउ कुछु काम नइहे जना-मना तइसे….।” कंपूटर साहब बिकास ल वो मेर ले घुंच के बड़बड़ावत सुनिस। “सर?” बिकास थोकिन घुमके अउ साहब मेर दतगे। साहब तंग आगे रहिस। “आप भी न सर! आपको जल्दी चाहिए था तो जल्दी आना था, लाइन में आना था..।” साहब घलो बड़बड़ाइस। “आप लोग भी न सर. ” बिकास आपे ले बाहिर होये लगिस “नाटक करथौ। परसो सहीं एंटरी कर दे रहेतेस त काबर?….।” काहत बिकास गुरुजी अपन पास बुक ल लाइन म लगे एक झन लइका ल धराये असन करिस। “छोटू, ये ले एंटरी करादे बेटा।” ? सब वो काउंटर डाहर ल देखे लगिन। सब ल नियम धरम सिखइया गुरूजी आज खुद नियम के मजाक बनाये म उतारू होगे रहिस। नीला कमीज,किरीम रंग के पेंठ वाले पचपन- छप्पन के हेंडसम साहब सहे नइ सकिस।अइसे भी गुरुजी के कोई खास कद काठी नइ रहिस। नाटा असन रहिस। गला म पियर रंग के पंछा रखे रहिस। अउ देहाती लगत रहिस। “आपको कराना है तो लाइन में आओ।…बाकी लोग यहाँ झख मारने नहीं खड़े हैं..कब से बोल रहा हूँ हो जाएगा, हो जाएगा…। मानता ही नहीं…।” साहब घलो जम के हउहाइस।पूरा बैंक गूँजगे। सब अकचकागें। का होगे? का होगे? सब के धियान वो काउंटर डाहर होगे। बिकास के मुंह अउ नानक होगे सोल्हाये कोहड़ा बानी। वोहू बड़बड़ाइस ” नाटक करथें… ।” “हटाव-हटाव…।” सब झन गुरुजी ल वो मेर ले हटाइन। झगरा ल बरकाइन।मैनेजर साहब घलो अपन कमरा ले निकल के आगे “क्या हो गया महेस? कस्टमर से ऐसे ही बर्ताव करते हैं..?” अधिकारी अपन करमचारी ल चमकाइस। “देखिए न सर…।” कंपूटर बाबू घलो केचकेचागे। बिकास तब तक बोमियावत बाहिर निकल गे रहिस।
“….नाटक करथें साले मन……।” वोखर गोरिया देह तमतमा गे रहिस। “अरे, पटेल सर!” आघु डाहर ले आवत एक झन सर ह बिकास ल देखके आवाज लगाइस, हाथ उठाइस। वोखर चेहरा म मिले के खुसी छलकत रहिस। “राम-राम” हाथ मिलावत। अउ सब बने? बड़ दिन म दिखेस रे भई!….। “आघु वाले गुरुजी नीकी भली पूछिस। “सब ठीक हे तिवारी जी। बस…।” बिछी कस झार, बिकास के सिर ले अभी तलोक टेंसन उतरे नइ रहिस। “का होगे सर?” तिवारी सर बिकास ल तमकत देख पूछिस। “नाटक करथें साले मन….।” बिकास सुरु से आखिरी तक जम्मो बात ल ओरियाइस। “आपो मन सर कहाँ लगे रहिथौ?” तिवारी गुरुजी पास बुक ल मांगिस, उलट-पुलट के देखिस अउ बैंक डाहर चढ़े लगिस “थोकिन रुकौ गुरुदेव। मैं आवत हौं।” आपो देख लौ सर,फेर कुछ नइ होवै। भाव खाथें….।” बिकास बड़बड़ावत नीचे उतर गे अउ फटफटी इस्टेन्ड म अपन फटफटी म टेक के बइठ गै।
” सर!” तिवारी गुरुजी एंटरी करइया कंपूटर साहब मेर पास बुक ल लमा के बोलिस “थोकिन एंटरी कर देतेव।” साहब दौड़ती आँखि से पासबुक ल देखिस। वोही पासबुक!फेर आदमी ल देखिस। ” वो सरजी परेशान करके रख दिया तिवारी जी। सांति से होता तो अभी तक हो गया होता। जब से आया था बुजुर-बुजुर लगा था..।” साहब चिढ़गे रहिस। तिवारी गुरु जी वो बैंक के पुराना गिराहिक आवै। आना- जाना लगे च रहिथे। अइसे भी वोखर कद बने दबंग असन रहिस। “कर दौ न सर जी?” तिवारी गुरु जी बड़ पियार से लढ़ार के बोलिस। वोखर भाव अउ भाखा, दूनों म मया छलकत रहिस। “ऐसे प्यार से बोलता तो करता नहीं सर? एकदम हुकुम चला रहा था..।” पासबुक ल झोंक के आघु म रखिस। अइसे भी भीड़ अब खमखिरियागे रहिस। दू-तीन झन ल निपटा के एंटरी करके देदिस। “थैंक्यू सर।” तिवारी गुरुजी पासबुक ल धरत अभार मानिस।
” लौ गुरुदेव।” तिवारी सर बिकास ल पासबुक थमाइस। “होगे?” पटेल गुरुजी अचरज म पूछिस। ” हं।” तिवारी गुरुजी सरल भाव से बोलिस। “करहीं नहीं त कहाँ जाहीं। भाव खाथें सा….।” तिवारी गुरुजी घलो जबरन के मुंह बनाइस। फेर थोकिन गम्भीर होके ” का करबे गुरुदेव, दुनिया म हर आदमी टेंसन म हे। सब ल परेम के जरूरत हे…।” “मैं तो परेमे से बोले रहेंव सरजी,सा… ल” बिकास घलो अपन पक्छ रखिस। “छोडव, चलौ गन्ना जूस पीबो? तिवारी गुरुजी उपदेस छोड़ , परस्ताव रखिस। ” नइ लगै सर।धन्यवाद। घर निकलना हे अबेर होगे हे।” “ले चल त, महुँ जात हौं। बैंक म कुछ काम रहिस हे।” काहत तिवारी गुरुजी फेर उपर , बैंक डाहर सीढ़िया चढ़े लगिस। पटेल गुरुजी वोही मेर खड़े रहि गै ठगे असन…

केजवा राम साहू “तेजनाथ”
बरदुली, पिपरिया, कबीरधाम
7999385846