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कविता

माटी के पीरा

मोर माटी के पीरा ल जानव रे संगी, छत्तीसगढ़िया अब तो जागव रे संगी। परदेशिया ल खदेड़व इँहा ले, बघवा असन दहाड़व रे,संगी। मोर माटी के पीरा ल जानव रे संगी छत्तीसगढ़ी भाखा ल आपन मानव रे संगी। दूसर के रददा म रेंगें ल छोडव, अपन रददा ल अपने बनाव रे संगी। छोड़ के अपन […]

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गोठ बात

माटी के महिमा हे करसि के ठंडा पानी

जइसे-जइसे महीना ह आघु बढ़त हे, वइसने गरमी ह अउ बाढ़त जात हे, गरमी ले बांचे के खातिर सब्बो मनखे ह किसिम-किसिम के उपाय करथे, काबर के अब्बड़ गरमी म रहे ले स्वास्थ जल्दी खराब होथे, फेर अइसे गरमी के बेरा म अपन स्वास्थ के बढ़ धियान रखे ल लगथे, काबर के येहि बेरा म […]

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कविता

छतीसगढ़ी भाखा

जागव जी जवान, जागव जी किसान। छत्तीसगढ़ी भाखा ल, अपन मानव जी सियान। माटी के मया ल माटी बर बोहाव, छत्तीसगढ़ी भाखा ल, अपन करेजा म जनाव। महतारी के भुइँया, अपन छत्तीसगढ़ ल जानव आघु बढ़ा के येला,येखर मया ल पाव। जागव जी जवान, जागव जी किसान। अपन महतारी भाखा ल गोठियाव जी सियान। छत्तीसगढ़ीं […]

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कविता

छत्तीसगढ़ी बोलबो

मया के मधुरस करेजा म घोलबो, गुरतुर बोली छत्तीसगढ़ी ल बोलबो। भाखा हे मोर बड़ सुघ्घर-सुघ्घर। सारी जिनगी मिल-जुल के लिखबो, बोली हे हमर बढ़िया भाखा हे, गोठियाये के मन म बड़ अभिलासा हे। सारी जगहा अपन बोली-भाखा ल, बगराबो छत्तीसगढ़ी भाखा गोठियाबो। जुन्ना-नवा परंपरा ल अपनाबो, छत्तीसगढ़ी संस्कृरिति ल सब्बो ल जनाबो। संगी-जहुरिया संग […]

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कविता

प्रभु हनुमान जइसे भगत बनना चाही

पूरा भारत देस के कोंटा-कोंटा म भगवान श्री राम के नाव हे अउ ओखर नाव के संगे-संग श्री राम जी के सबले बड़े भक्‍त हनुमान के नाव सब्बो कोती लेहे जाथे, जइसे श्री राम के बड़े भक्‍त भगवन हनुमान हवयं, वइसने भगत अउ कोनो अब ये दुनिया म नइ हो सके, हनुमान जी ह अपन […]

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कविता

माटी के पीरा

मोर माटी के पीरा ल जानव जी। अपन बोली भाखा ल मानव जी। छत्तीसगढ़िया बोली भाखा ला। अपन जिनगी म उतारव जी। सब्बो छत्तीसगढ़ीया भाई, छत्तीसगढ़ी भाखा गोठियाव जी । हम अपनाबो ता सब अपनाही। अपन भाखा म गुरतुर गोठियाही। जान के माटी के मया ला। माटी के पीरा ला दुरिहा भगाही । मयारू हे […]

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कविता

मोर महतारी

मोर महतारी बढ़ दुलारी, मया हे ओखर मोर बर भारी। अंचरा म रखे के मोला, झुलाथे मया के फुलवारी। महेकत रइथे मोर दाई के, घर अंगना अउ दुवारी।।। जग जानथे महतारी ह, होथे सब्बो ल प्यारी। कोरा म धर के लइका ल, जिनगी करथे उज्यारी। मोर महतारी बढ़ दुलारी, मया भरे हे ओखर म भारी। […]

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कविता गज़ल छंद दोहा मत्तगयंद सवैय्या

छत्तीसगढ़ी गीत-ग़ज़ल-छंद-कविता

होगे होरी तिहार होगे – होगे होरी के, तिहार गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। करु बोली मा,अउ केरवस रचगे। होरी के रंग हा, टोंटा मा फँसगे। दू गारी के जघा, देय अब चार गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। टेंड़गा रेंगइया हा,अउ टेंड़गा होगे। ददा – दाई ,नँगते दुख भोगे। अभो देखते वो , […]

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कविता

रंग डोरी होली

रंग डोरी-डार ले गोरी, मया पिरीत के संग म, आगे हे फागुन मोर नवा-नवा रंग म। झूमे हे कान्हा-राधा के संग म, मोर संग झुम ले तै, रंग के उमंग म। रंग ले भरे गोरी, तोर लाल-लाल गाल हे, होरी म माते, तोर रंग के कमाल हे। फ़ाग गए फगुनिया, जियरा बेहाल हे, रात भर […]

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गोठ बात

सिक्छा ऊपर भारी पड़े हे अंधबिस्वास

विकसित होत गांव-सहर म जतना तेजी ले सिक्छा ह आघु नई बढहे हे, तेखर ले जादा तेजी ले अंधबिस्वास के विकास होईस हे। सबले जादा हमर भारत देस म अंधबिस्वास के मानने वाला मनखे मन हवय। ओहु म अंधबिस्वास ल माने म अनपढ़ मनखे मन ले जादा पढ़े-लिखे मनखे मन मानथे। अउ बाबा-बइगा मनके झांसा […]