आगे आगे नवा साल,आगे आगे नवा साल। डारा पाना गीत गाये,पुरवाही मा हाल। पबरित महीना हे,एक्कम चैत अँजोरी के। दिखे चक ले भुइँया हा,रंग लगे हे होरी के। माता रानी आये हे,रिगबिग बरत हे जोती। घन्टा शंख बाजत हे,संझा बिहना होती। मुख मा जयकार हवे ,तिलक हवे भाल। आगे आगे नवा साल,आगे आगे नवा साल। […]
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छत्तीसगढ़ी गीत-ग़ज़ल-छंद-कविता
होगे होरी तिहार होगे – होगे होरी के, तिहार गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। करु बोली मा,अउ केरवस रचगे। होरी के रंग हा, टोंटा मा फँसगे। दू गारी के जघा, देय अब चार गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। टेंड़गा रेंगइया हा,अउ टेंड़गा होगे। ददा – दाई ,नँगते दुख भोगे। अभो देखते वो , […]
पुजारी बनौं मैं अपन देस के। अहं जात भाँखा सबे लेस के। करौं बंदना नित करौं आरती। बसे मोर मन मा सदा भारती। पसर मा धरे फूल अउ हार मा। दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा। बँधाये मया मीत डोरी रहे। सबो खूँट बगरे अँजोरी रहे। बसे बस मया हा जिया भीतरी। रहौं तेल […]
दुरिहा दुरिहा के घलो,मनखे मन जुरियाय कोनो सँइकिल मा चढ़े,कोनो खाँसर फाँद। कोनो रेंगत आत हे,झोला झूले खाँद। मड़ई मा मन हा मिले,बढ़े मया अउ मीत। जतके हल्ला होय जी,लगे ओतके गीत। सब्बो रद्दा बाट मा,लाली कुधरिल छाय। मोर गाँव दैहान मा,मड़ई गजब भराय। किलबिल किलबिल हे करत,गली खोर घर बाट। मड़ई मनखे बर बने,दया […]
पूस के जाड़
पूस के जाड़, पहाथे लटपट। मोर कुंदरा म घाम, आथे लटपट। मोर बाँटा के घाम ल खाके, सरई – सइगोन मोटात हे। पथरा – पेड़ – पहाड़ म, मोर जिनगी चपकात हे। गुंगवात रिथे दिन – रात, अँगरा अउ अँगेठा। सेंकत रिथे दरद ल, मोर संग बेटी – बेटा। कहाँ ले साल-सुटर -कमरा पाहूं? तन […]
बहारे बटोरे गली खोर ला। रखे बड़ सजाके सबो छोर ला। बरे जोत अँगना दुवारी सबे। दिखे बस खुसी दुख रहे जी दबे। गरू गाय घर मा बढ़ाये मया। उड़े लाल कुधरिल गढ़ाये मया। मिठाये नवा धान के भात जी। कटे रात दिन गीत ला गात जी। बियारी करे मिल सबे सँग चले। रहे बाँस […]
आसो के जाड़
जाड़ म जमगे, माँस-हाड़। आसो बिकट बाढ़े हे जाड़। आँवर-भाँवर मनखे जुरे हे, गली – खोर म भुर्री बार। लादे उपर लादत हे, सेटर कमरा कथरी। तभो ले कपकपा गे, हाड़ -मांस- अतड़ी। जाड़ म घलो,जिया जरगे। मुँहूं ले निकले धूंगिया। तात पानी पियई झलकई, चाहा तीर लोरे सूँघिया। जाड़ जड़े तमाचा; हनियाके। रतिहा- संझा […]
जस गीत : कुंडलिया छंद
काली गरजे काल कस,आँखी हावय लाल। खाड़ा खप्पर हाथ हे,बने असुर के काल। बने असुर के काल,गजब ढाये रन भीतर। मार काट कर जाय,मरय दानव जस तीतर। गरजे बड़ चिचियाय,धरे हाथे मा थाली। होवय हाँहाकार,खून पीये बड़ काली। सूरज ले बड़ ताप मा,टिकली चमके माथ। गल मा माला मूंड के,बाँधे कनिहा हाथ। बाँधे कनिहा हाथ,देंह […]
झरथे झरना झरझर झरझर,पुरवाही मा नाचे पात। ऊँच ऊँच बड़ पेड़ खड़े हे,कटथे जिँहा मोर दिन रात। पाना डारा काँदा कूसा, हरे मोर मेवा मिष्ठान। जंगल झाड़ी ठियाँ ठिकाना,लगथे मोला सरग समान। कोसा लासा मधुरस चाही,नइ चाही मोला धन सोन। तेंदू पाना चार चिरौंजी,संगी मोर साल सइगोन। घर के बाहिर हाथी घूमे,बघवा भलवा बड़ गुर्राय। […]
किरीट सवैया : नाँग नाथे मोहना
खेलन गेंद गये जमुना तट मोहन बाल सखा सँग नाचय। देवव दाम लला मन मोहन देख सखा सबके सब हाँसय। आवय ना मनखे जमुना तट कोइ नहावय ना कुछु काँचय। हावय नाँग जिहाँ करिया जिवरा कखरो नइ चाबय बाँचय। देख तभो जमुना तट मा मनमोहन गेंद ग खेलत हावय। बोइर जाम हवे जमुना तट मा […]