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व्यंग्य

बियंग: करजा माफी

करजा माफी के उमीद म, किसान मन के मन म भारी उमेंद रहय। जे दिन ले करजा माफी के घोसना होय रहय ते दिन ले, कतको झिन बियाज पुरतन, त कतको झिन मुद्दल पुरतन पइसा के, मनदीर म परसाद चढ़हा डरे रहय। दूसर कोती, करजा माफी के घोसना करइया के पछीना चुचुवावत रहय। मनतरी मन के घेरी बेरी बइठक सकलाये लगिस। किसान मन के करजा माफी बर कतेक पइसा चाही अऊ पइसा कतिहां ले आही अऊ ओकर भरपाई कइसे होही, तेकर हिसाब किताब चलत रहय।
एक मनतरी किथे – सहींच म करजा माफी के कन्हो आवसकता निये गा, येहा केवल चुनावी वादा आय, जेला पूरा करना आवस्यक नि रहय।
दूसर किथे – येला पूरा नी करबो त, आगू म बड़का चुनई म कइसे पार पाबो। अऊ ओमा पार नी पाबो त, हमर दिल्ली वाला सियान हा, अढ़ई बछर के जगा, चारे छै महीना म हकाल दिही।

तीसर मनतरी किथे – जनता ला कहि देथन के, बिलकुलेच जुच्छा खजाना मिले हे। जब हमर तिर पइसा सकला जही तब, करजा माफी करबो। जब तक कतको बछर नहाक जही, तब तक दूसर मुद्दा खड़ा हो जही, तहन जनता घला करजा माफी के बात, भुला जही।
एक झिन किथे – जनता नी भुलाये जी, भुला जतिस त हमन ला इहां पहुंचे बर पनदरा बछर नी अगोरे लागतिस। बड़ तरसा दिन बुजा मन, अब जाके अच्छा दिन नसीब होइस हे, जेला कइसनो करके बचा के राखना हे। येला खोना निये, जे केहे हन तेला पूरा करबो, तभे अवइया चुनई म, हमर उपर जनता के बिसवास बने रइहि। पनदरा बछर ले खुरसी के बिछोह अऊ सत्ता के तड़फ म बियाकुल मनखे मन, कइसनो करके करजा माफी करके, अपन साख बचाये के उदिम खोजत, रात दिन उधेड़ बुन म लगे रहय।
तभे एक झिन मनतरी ला उपाय मिलगे। ओहा किथे के – सिरीफ गरीब किसान के करजा ला माफ कर देथन। काबर के, गरीब किसान के करजा हा, गरीबेच कस हे। बहुतेच कम म निपट जबो। जनता ला भरमावत कहत घला बन जही के, गरीब के सरकार आवन हमन, पिछला सरकार कस, अमीर के सरकार नोहन, तेकर सेती अमीर गौंटिया बड़े किसान के, करजा माफ नी करत हन।
दूसर मनतरी कहिथे – अइसन म आकरोस अऊ बिरोध उपजही। हमरे बिपछ म बइठे, कतको किसान बिधायक मनके करजा माफ नी होही त, ओमन हमन ला खुरसी म बइठके जियन नी दिही।

एक मनतरी बहुतेच दिमागी रिहीस, वोहा कहिथे – हरेक वो किसान के करजा माफ करबोन जेहा सिरतोन के गरीब आय।
पहिली मनतरी किथे – उहीच ला तो महू कहत हंव, फेर बड़का किसान के हल्ला मचाये के गुंजइस बन जही, तेला कइसे समहालबो।
दिमागी मनतरी कहिथे – सब समहल जही। गरीब के परिभासा बदल देबो, जम्मो समसिया के समाधान हो जही। जे मनखे हा, यहा कनिहा टोर महंगई म, साल दर साल फसल उगाथे, तेहा गरीब थोरेन आय। साल दर साल धान गहूं दार बोवइया मन, हरेक बछर खातू कचरा पानी बर करजा लेथे अऊ फसल काटके हरेक बछर पटा घला देथे। अइसन मन सकछम किसान आय, गरीब थोरेन आय। इंकर करजा माफ करे के का आवसकता ?. रिहीस बात हमर घोसना पत्र के मुताबिक काम करे के, त मोर बात सुनव, वो जम्मो किसान के करजा माफ करे जाही, जेमन अतेक गरीब हे के, पांच बछर म सिरीफ एक बेर फसल उगाथे।
दूसर संगवारी मनतरी मन, दिमागी मनतरी जी के बात समझिन निही त, दिमागी मनतरी जी हा बात फोर के बतइस – पांच बछर म एक बेर, हमर बर जेहा बोट के फसल लगाके, हमर परदेस ला हमर कस खुसहाल बना दिस, उही जम्मो किसान के करजा माफ कर दे जाय। येमा कन्हो बिरोध नी हो सके। अऊ अवइया चुनई म हमर बर, येकर ले जादा लहलहावत बोट के फसल घला जाम जही। बात जंचगे। केबिनेट म परसताव पास होगे। बोट बोवइया जम्मो किसान के करजा माफ होय लगिस।
सुसइटी के दरवाजा म करजा माफी के बाट जोहत, धान के कटोरा धरे दाना दाना बर लुलवावत, धान गहूं राहेर तिल्ली अऊ उरिद बोवइया किसान के आंखी पथराये लगिस अऊ बोट बोवइया किसान मन धड़ाधड़ करजा माफी के परमान पत्र पाके, दूसर फसल के तियारी म लगगे।
हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा