- भासा कइसना होना चाही?
- कोइली के गुरतुरबोली मैना के मीठी बोली जीवरा ल बान मारे रेे
- अपन
- देवारी तिहार मनाबों
- मया के दीया
- लोक कथा म ‘दसमत कइना’ के किस्सा
- सुरता मा जुन्ना कुरिया
- योग के दोहा
- पेड़ लगावा जिनगी बचावा
- मोर छतीसगढ़ महान हे
- अतेक झन तरसा रे बदरा।
- छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पांचवा सम्मेलन के पहिली दिन
- गरीब बनो अउ बनाओ
- जुग जुग पियव
- लक्ष्मण मस्तुरिया के खण्ड काव्य : सोनाखान के आगी
- ढोंगी बाबा
- ‘छत्तीसगढ़ के कलंक आय लोककला बिगड़इया कलाकार’
- ठेंसा
- मैं गांव मं जनम धरेंव ते बात के मोला गरब हे : डॉ. रमन सिंह
- बुढ़वा लइका पांव पखारत हे तोर
- छत्तीसगढ़ी सन् 1917 म
- छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पांचवा प्रांतीय सम्मेलन के दूसर दिन
- अम्मा, हम बोल रहा हूँ आपका बबुआ
- गीत : सारी
- मेछा चालीसा
- भोले बाबा : सार छंद
- छत्तीसगढ़ी कथा-कंथली : संकलन अउ लेखन – कुबेर
- छत्तीसगढ़ी भासा परिवार के भाषा : विकास अउ साझेदारी
- श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – मया धन
- सबद के धार : पीरा ल कईसे बतावंव संगी
- आल्हा छंद : झाँसी के रानी
- गरीबा महाकाव्य (अठवइया पांत : अरसी पांत)
- देखे हँव
- राखी
- लड़ते पंचायत चुनाव
- छत्तीसगढि़या संगी मन संग जरूरी गुपचुप बात
- सत के मारग बतइया- गुरु घासीदास जी
- छेरछेरा अब आगे
- दौना (कहिनी) : मंगत रविन्द्र
- अकती के तिहार
- सइताहा – कहिनी
- मुक्का उपास
- बलदाऊ राम साहू के छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल
- उत्तर कांड के एक अंश छत्तीसगढी म
- सबो नंदागे
- मोर लीलावती के लीला
- ददा
- मुख्यमंत्री ह ‘रमन के गोठ’ म कैशलेस लेनदेन के बारे म समझाइन
- दोहा गजल (पर्यावरण)
- चॉकलेट के इतिहास
- टेकहाराजा : छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य के नवा अंजोर
- जंवारा बोए ले अन-धन बाढ़थे : सियान मन के सीख
- छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल
- फेर दुकाल आगे
- मोर ददा ला तनखा कब मिलही
- रामनौमी तिहार के बेरा म छत्तिसगढ़ में श्रीराम
- कहिनी : बाढ़ै पूत पिता के धरम
- चरगोड़िया
- फिल्मी गोठ : झन मारव गुलेल
- बात सुनव छत्तीसगढ़ के, बन औषधि के जड़ के
- कहिनी : दूध भात
- आमा के चटनी
- गीत – जागो हिन्दुस्तान
- भूमिका : कथात्मकता से अनुप्राणित कहानियाँ
- देवारी तिहार : देवारी के दीया
- दूसरइया बिहाव
- सुजान कवि के सुजानिक छन्द कविता : छन्द के छ
- का जनी कब तक रही पानी सगा
- फुगड़ी गीत
- राजिम महाकुंभ 2017 : काली ले सुरू
- कहानी – सुरता
- आठे कन्हैया – 36 गढ़ मा सिरि किसन के लोक स्वरूप
- सरगुजिहा व्यंग्य कबिता: लचारी
- पर्यटन मंडल के गिलौली ले मोटल म बढि़स घुमईया मन के भीड़
- छत्तीसगढ़ी संस्कृति के खुशबू ल बगराने वाला एक कलाकार- मकसूदन
- मोला नेता बना देते भोले बाबा
- हीरा मोती ठेलहा होगे
- बियंग: रूपिया के पीरा
- ढेला अऊ पत्ता
- जगत गुरू स्वामी विवेकानन्द जी महराज के जीवन्त संदेश, मंत्र औ समझाईस
- निराला साहित्य समिति, थान खम्हरिया के आयोजन
- अभिनय के भूख कभी नइ मिटय : हेमलाल
- कोपभवन
- लोक कथा : घंमडी मंत्री
- बियंग : पारसद ला फदल्लाराम के फोन
- गज़ल : छत्तीसगढ़ी गज़ल संग्रह “बूड़ मरय नहकौनी दय” ले
- लघु कथा – सोज अंगुरी के घींव
- छत्तीसगढ़ी नाटक – मतदान बर सब्बो झन होवव जागरूक
- साहित्यिक पुरखा मन के सुरता : नारायणलाल परमार
- पुरुस्कार – जयशंकर प्रसाद
- अंधविसवास
- सांस म जीव लेवा धुंगिया
- चुनाव सिरिफ दू साल दूरिहा, बजट होही लोक लुभावन
- बरतिया बर पतरी निही, बजनिया बर थारी
- छत्तीसगढ़ के चिन्हारी गोदना
- तपत कुरू भइ तपत कुरू
- गीत: सुरता के सावन
- मतदान : चौपई छंद (जयकारी छंद)
- जागव जी : अपन बुध लगावौ जी
- छत्तीसगढ़ी के मानकीकरन अउ एकरूपता : मुकुन्द कौशल