- अवइया मुख्यमनतरी कइसन हो ?
- सबो नंदागे
- मिर्चा भजिया खाये हे पेट गडगडाये हे
- लघुकथा : अमर
- बेमेतरा म संविदा पद मन बर 25 मार्च तक आवेदन आमंत्रित
- आँखी के काजर
- लोक रंजनी लोक नाट्य : नाचा
- मत्तगयंद सवैया : किसन के मथुरा जाना
- मटमटहा टूरा
- हे राम : नारायण लाल परमार के नवगीत
- रोवा डारिन रियो म
- दर्रा हनागे
- तैं कहाँ चले संगवारी
- गनेस के पेट
- ब्लाग लिखईया मनखे मन ला दे-बर परही GST
- सावन के बरखा
- नवा बछर म देखावा झन करव तुमन
- पुस्तक समीक्षा : चकमक चिंगारी भरे
- बीता भर पेट
- संसो झन कर गोरी
- दिसाहीनता – सुधा वर्मा
- परकिती के परती आत्मियता के तिहार ये हरेली
- छै महीना बर ‘दंगल’ होईस टैक्स फ्री
- दूध के करजा चुकाले रे
- बेटी : रोला छन्द
- पुस्तक समीक्छा : धनबहार के छांव म
- छत्तीसगढ़िया मन जागव जी
- बंदौ भारत माता तुमला : कांग्रेस आल्हा
- भगत के बस म भगवान – लोककथा
- बिसवास अउ आसथा के केन्द्र – दाई भवानी , विन्दवासिनी अउ बाबा बन्छोरदेव
- कोमल यादव के कविता : बेटी बचावा अउ जाड के बेरा
- नवा बिहान
- मंतर
- छत्तीसगढी गोठ बात : जंवरा-भंवरा
- हमर भाग मानी ये तोर जईसन हितवा हे
- कन्या पूजन
- छत्तीासगढ़ी म परथंम धर्म उपदेशक संत गुरू घासीदास
- पर्यटन : माण्डूक्य ऋषि के तपोभूमि ‘मदकू द्वीप’
- छत्तीसगढी गोठ बात : जंवरा-भंवरा
- देवारी के दीया
- छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल : मितानी
- गति-मुक्ति : छत्तीसगढी कहिनी संग्रह
- व्यंग्य : ममा दाई के मुहुं म मोबाइल
- मजदूर
- जाड़ ह जनावत हे
- कमरछठ कहानी (6) – सोनबरसा बेटा
- आज के सतवंतिन: मोंगरा
- खेत के धान ह पाक गे
- साहित्यिक पुरखा के सुरता : कुञ्ज बिहारी चौबे
- छत्तीसगढ़ी के उपन्यास : मोर बिचार
- नान्हे कहिनी : सिसटाचार
- मोर मयारू गणेश
- सरग असन मोर गांव
- बियंग : बरतिया बाबू के ढमढम
- योग के दोहा
- सिरिफ नौ दिन के बगुला भगत
- गुजरा के कुंदन के “अंतर्राष्ट्रीय अंटार्कटिका” अभियान बर होइस चयन
- कबिता : कइसे रोकंव बैरी मन ल
- प्रयोजनमूलक छत्तीसगढ़ी की शब्दावली – आस्था, अंधविश्वास, बीमारियाँ
- साहित्य म भ्रस्टाचार
- चुनाव अउ मंदहा सेवा
- छत्तीसगढ़ी लोक कथा : जइतमाल के ठेंगा
- पंचलाईट
- मोरे छत्तीसगढ़ के संगवारी
- फुगडी गीत
- छत्तीसगढ़ की संस्कृति पर गांधीवाद का प्रभाव
- बनकैना
- घुरवा के दिन घलो बहुरथे
- कविता : जोंधरा
- बइला चरवाहा अउ संउजिया
- कवित्त छंद
- चिरई चिरगुन अतका तको नईये, वाह रे मनखे
- बसंत उपर एक छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल
- छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल : कइसे मा दिन बढ़िया आही
- चित्रगुप्त हा पेसी के पईसा खावत हे, यम के भंइसा अब ब्लाग बनावत हे.
- गीत-नवा बछर के
- मया के दीया
- कविता : नवां अंजोर अउ जाड़
- जिनगी जीये के रहस्य : महाशिवरात्रि
- कामकाजी छत्तीसगढ़ी मोर बिचार
- फेरीवाला
- बुढ़ुवा कोकड़ा
- मितानी के बिसरत संस्कृति
- आगे हरेली तिहार
- गॉंव कहॉं सोरियावत हे : अंखमुंदा भागत हें
- अतेक झन तरसा रे बदरा।
- परघनी
- भोरहा में झन रईहूँ
- चाइना माडल होवत देवारी तिहार
- मैं आदिवासी अंव
- सरगुजिहा गजल
- दूसरइया बिहाव
- चंदैनी गोंदा के 14 गीत
- माफी के किम्मत
- पितर के बरा
- देवारी तिहार संग स्वच्छता तिहार
- अपन भासा अपन परदेस के पहचान
- सरग ह जेखर एड़ी के धोवन – डॉ. पीसी लाल यादव
- मया के रंग : लघु कथा
- कहां नंदा गे सब्बो जुन्ना खेलवारी मन