- जुन्ना सोच लहुटगे हमर रंग बहुरगे
- शिवशंकर के सावन सम्मार
- मंगल पांडे के बलिदान : 8 अप्रैल बलिदान-दिवस
- बेंदरा बिनास
- होली गीत
- बाल गीत
- हमर योजना दिल ले बनथे अऊ दिल ल जोड़थे : डॉ. रमन सिंह
- गुरतुर बोली बोलव
- गॉंव कहॉं सोरियावत हे : चार आखर – बुधराम यादव
- गनेस के पेट
- गऊ रक्छक : नान्हे कहिनी
- हमर छत्तीसगढ़
- सच्चा चेला
- हाईकू
- बियंग: अच्छे दिन
- तडफ़त छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढिय़ा
- छत्तीसगढ़ी साहित्य में काव्य शिल्प-छंद
- सब हलाकानी हे
- कागज के महल
- किताब कोठी : हीरा सोनाखान के
- छत्तीसगढ़ी व्यंग्य साहित्य को लतीफ घोंघी के अवदान का मूल्यांकन
- तोरे अगोरा हे लछमी दाई
- गजल : दिन कइसन अच्छा
- कबिता : बेटी मन अगुवागे
- छन्द के छ : कुण्डलिया छन्द
- भासा के लड़ाई कहां तक
- रक्षा मंत्रालय में 10वीं पास मजदूर समेत अन्य पदों के लिए वेकेंसी
- लोककथा : अडहा बइद परान घात
- दाई के होगे हलाकानी
- जनकवि कोदूराम ”दलित” की पुत्र वधु श्रीमती सपना निगम के नान्हे कहिनी
- गुड़ी के गोठ – संस्कृति बिन अधूरा हे भाखा के रद्दा
- मैं माटी अंव छत्तीसगढ़ के
- पं.द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’ के गीत
- गीत – बाँसुरिया के तान अउ सूना लागे घर अँगना
- पंडवानी के सुर चिरैया-तीजन बाई
- भईसा गाड़ा के चलान
- तुँहर जउँहर होवय : छत्तीसगढी हास्य-व्यंग संग्रह
- अकती के तिहार
- महाकवि कपिलनाथ कश्यप के ‘रामकथा’ के कुछ अंस
- गजल : कतको हे
- लुए टोरे के दिन आगे
- शिवरीनारायण के मेला
- सइताहा – कहिनी
- जप तप पुन के भूंइया ए हमर छत्तीसगढ़
- हीरा मोती ठेलहा होगे
- बियंग : लहू
- पितर पाख
- पतंजलि के योग दर्शन, बाल्मिकी मूल रामायण, ईशावास्योपनिषद : अनुवाद
- सरगुजिहा व्यंग्य कबिता: लचारी
- आमा के अथान – चौपई छन्द (जयकारी छंद )
- व्यंग्य : कलम
- भोले बाबा
- ढोंगी बाबा
- गाय निकलगे मोर घर ले
- शिवरात्री मनाबो – महादेव में पानी चढाबो
- बिचार : नैतिकता नंदावत हे
- बुद्ध-पुन्नी
- गरमीं के छुट्टी मा ममा गाँव
- छत्तीसगढ़ महतारी
- माटी के दियना
- ये दुनिया हे गोल तैय कुछ मत बोल
- जिनगी जीये के रहस्य : महाशिवरात्रि
- अक्षय तृतीया विशेष : पुतरी पुतरा के बिहाव
- प्रयोजनमूलक छत्तीसगढ़ी की शब्दावली – कहावतें
- कोइली के गुरतुरबोली मैना के मीठी बोली जीवरा ल बान मारे रेे
- मध्यान्ह भोजन अउ गांव के कुकुर
- छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के आयोजन
- नारी सक्ती जगाना हे – दारु भटठी बंद कराना हे
- तॅुंहर जाए ले गिंयॉं
- आगे हरेली तिहार
- छत्तीसगढ़ी तिहार : छेरछेरा पुन्नी
- देवारी तिहार के गाड़ा-गाड़ा बधई
- मोर देश के किसान
- महू तोर संगी : बालमुकुंद शर्मा ‘गूंज’ के गीत
- हरि ठाकुर के गीत: सुन-सुन रसिया
- तीजा तिहार
- जमुना के तीर तीर हो
- खेल से आथे जीवन म अनुशासन : डॉ. रमन सिंह
- किसना के लीला : फणीश्वर नाथ रेणु के कहानी नित्य लीला के एकांकी रूपांतरण
- अश्लीलता के सामूहिक विरोध जरूरी हे
- सुनिल शर्मा “नील” के दू कबिता : कइसे कटही जेठ के गरमी अउ हर घड़ी होत हे दामिनी,अरुणा हा शिकार
- मैं अक्खड़ देहाती अंव
- मोर छत्तीसगढ़ कहां गंवागे
- गांव के पीरा
- प्रयोजनमूलक छत्तीसगढ़ी की शब्दावली – मुहावरे
- व्यंग्य : सरकारी तिहार
- फेसबुक म दोस्ती, बिहाव फेर गहना-गुरिया धरके भाग गए बिहाता
- असमिया धुन मा छत्तीसगढ़िया राग, छत्तीसगढ़ मा होइस पहुना संवाद
- बिमोचन – पुरखा के चिन्हारी
- पुतरी के बिहाव – सुधा वर्मा
- छत्तीसगढ़ म होही ‘पंजाबी अकादमी‘ के स्थापना : डॉ. रमन सिंह
- अक्ती तिहार
- कहानी : मंतर
- दू आखर
- पर्यटन गतिविधियों ल बढ़ावा देहे प्रदेश म लउहे उदीम करे जाही
- छत्तीसगढ़ मं बिहाव के रीति-रिवाज
- पुण्य सकेले के दिन आय अक्ती
- परेवा गीत: बाबूलाल सिरीया दुर्लभ
- गरमी के भाजी
- छत्तीसगढ़ी गज़ल